जोवानी आंख उघडशे. स्वभावसन्मुख थईने निश्चय प्रगट कर तो विभावने–व्यवहारने–जणवानी ताकात
खीलशे. अथवा द्रव्य अने पर्याय एवा बे बोल छे. द्रव्यद्रष्टि प्रगट कर तो पर्यायनुं यथार्थ ज्ञान थाय.
साचुं ज्ञान थतुं नथी. शुद्धस्वभाव कहो, उपादान कहो, निश्चय कहो के द्रव्य कहो–ते तरफ ढळ्या वगर अशुद्धतानुं–
निमित्तनुं–व्यवहारनुं के पर्यायनुं यथार्थ ज्ञान थतुं नथी. अनेकांतनुं फळ सम्यक् एकांत छे एटले के सम्यक्
एकांत वगर यथार्थ अनेकांत होय नहीं.
एम जाणे सद्गुरु उपदेशथी रे, कह्युं ज्ञान तेनुं नाम खास... मूळ०
न जाणे तो सम्यग्ज्ञान थाय नहीं.
जे ज्ञाने करीने जाणीयुं रे तेनी वर्ते छे शुद्ध प्रतीत, कह्युं भगवते दर्शन तेहने रे जेनुं बीजुं नाम समकीत मूळ.
ईन्द्रियोथी के रागथी जाणवानी वात न करी, पण ज्ञानथी जाणवानी वात करी. ईन्द्रियो अने रागना
छे. पहेलांं निमित्तरूपे ज्ञानीनो उपदेश होय छे खरो, पण ते उपदेशवडे आत्मा जाणाय छे–एम नथी. ज्ञानीनो
उपदेश सांभळीने पछी स्वसन्मुख अतीन्द्रियज्ञानवडे पोते एम समज्यो के अहो! हुं आत्मा अखंड उपयोगी
अविनाशी छुं. निमित्तथी जाण्युं नथी, रागथी जाण्युं नथी, व्यवहारथी के भेदथी जाण्युं नथी, पण स्वतरफ वळता
ज्ञानथी जाण्युं छे. जुओ, श्रीमद्ना आ काव्यमां केटलुं रहस्य भर्युं छे! अज्ञानीओ रेकर्डनी जेम मात्र शब्द बोली
जाय छे पण अंदरनो आशय समजता नथी. जेम रेकर्ड बोले छे पण ते रेकर्डने हृदय नथी, तेम अज्ञानीओ
भाषा गोखीने रेकर्डनी जेम बोली जाय छे पण अंदरमां तेने भावनी समजण नथी. पहेलांं अज्ञानपणे बीजी
रीते जाणवानुं मानतो हतो, शास्त्रथी, ईन्द्रियोथी के रागथी जाणवानुं मानतो हतो तेथी अहीं कह्युं के ‘ज्ञाने
करीने जाणीयुं रे...’–शुं जाण्युं? हुं शुद्ध उपयोगस्वरूप अविनाशी आत्मा छुं–एम जाण्युं, अने एम जाण्युं एटले,
होवा छतां तेटलो ज पोताने न स्वीकारतां ‘हुं शुद्ध उपयोगमय शाश्वत छुं’–एम स्वीकारीने पोताना स्वभाव
तरफ वळ्यो, एटले बंने पडखांनुं ज्ञान थईने सम्यक् एकांत थयुं. राग अने ज्ञानस्वभाव बंनेने जाण्या खरा,
पण राग ते हुं नहि ने ज्ञान ते ज हुं–एम ज्ञान तरफ ढळतां सम्यक् एकांत थयुं.
एकत्व कर्युं ते सम्यक् एकांत छे, ते मोक्षमार्ग छे, ते धर्म छे. अवस्थामां राग छे, रागना निमित्तो छे, व्यवहार
छे, परंतु ते बधाने जाणीने शुद्ध अभेद स्वभाव तरफ वळवुं ते ज प्रयोजन छे. अहीं शुद्ध–अशुद्ध, उपादान–
एकता तरफ वाळ्यो छे.