Atmadharma magazine - Ank 080
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: १४८: आत्मधर्म: ८०
(३) राग–व्यवहार होवा छतां निश्चयना अवलंबने धर्म छे. माटे हे भाई! तुं शुद्धस्वभावसन्मुख
थईने तेनुं ज्ञान कर तो तारुं ज्ञान अशुद्धताने यथार्थ जाणशे. स्व–उपादाननी द्रष्टि कर तो पर निमित्तने
जोवानी आंख उघडशे. स्वभावसन्मुख थईने निश्चय प्रगट कर तो विभावने–व्यवहारने–जणवानी ताकात
खीलशे. अथवा द्रव्य अने पर्याय एवा बे बोल छे. द्रव्यद्रष्टि प्रगट कर तो पर्यायनुं यथार्थ ज्ञान थाय.
आ प्रमाणे शुद्ध अने अशुद्ध, उपादान अने निमित्त, निश्चय अने व्यवहार तथा द्रव्य अने पर्याय–एवा
आठ बोल थया; आ आठे बोल जाणवा जेवा छे, पण ते जाणीने एक स्वभाव तरफ वळ्‌या विना अनेकांतनुं
साचुं ज्ञान थतुं नथी. शुद्धस्वभाव कहो, उपादान कहो, निश्चय कहो के द्रव्य कहो–ते तरफ ढळ्‌या वगर अशुद्धतानुं–
निमित्तनुं–व्यवहारनुं के पर्यायनुं यथार्थ ज्ञान थतुं नथी. अनेकांतनुं फळ सम्यक् एकांत छे एटले के सम्यक्
एकांत वगर यथार्थ अनेकांत होय नहीं.
‘मूळमार्ग’ काव्यमां श्रीमद् कहे छे के–
छे देहादिथी भिन्न आतमारे, उपयोगी सदा अविनाश...
एम जाणे सद्गुरु उपदेशथी रे, कह्युं ज्ञान तेनुं नाम खास... मूळ०
अंर्तस्वभाव तरफ वळीने ज्ञाता आनंदकंद त्रिकाळ उपयोगस्वरूप अविनाशी आत्मानुं ज्ञान करे तेने
ज अहीं सम्यग्ज्ञान कह्युं छे. पर्याय अने निमित्त वगेरेने ज जाणवामां रोकाय पण स्वसन्मुख थईने स्वभावने
न जाणे तो सम्यग्ज्ञान थाय नहीं.
वळी सम्यग्दर्शन संबंधमां कहे छे के–
जे ज्ञाने करीने जाणीयुं रे तेनी वर्ते छे शुद्ध प्रतीत, कह्युं भगवते दर्शन तेहने रे जेनुं बीजुं नाम समकीत मूळ.
ईन्द्रियोथी के रागथी जाणवानी वात न करी, पण ज्ञानथी जाणवानी वात करी. ईन्द्रियो अने रागना
अवलंबन वगर अतीन्द्रिय ज्ञानवडे जे आत्मस्वभावने जाण्यो तेनी शुद्ध प्रतीति वर्ते छे, तेनुं नाम सम्यग्दर्शन
छे. पहेलांं निमित्तरूपे ज्ञानीनो उपदेश होय छे खरो, पण ते उपदेशवडे आत्मा जाणाय छे–एम नथी. ज्ञानीनो
उपदेश सांभळीने पछी स्वसन्मुख अतीन्द्रियज्ञानवडे पोते एम समज्यो के अहो! हुं आत्मा अखंड उपयोगी
अविनाशी छुं. निमित्तथी जाण्युं नथी, रागथी जाण्युं नथी, व्यवहारथी के भेदथी जाण्युं नथी, पण स्वतरफ वळता
ज्ञानथी जाण्युं छे. जुओ, श्रीमद्ना आ काव्यमां केटलुं रहस्य भर्युं छे! अज्ञानीओ रेकर्डनी जेम मात्र शब्द बोली
जाय छे पण अंदरनो आशय समजता नथी. जेम रेकर्ड बोले छे पण ते रेकर्डने हृदय नथी, तेम अज्ञानीओ
भाषा गोखीने रेकर्डनी जेम बोली जाय छे पण अंदरमां तेने भावनी समजण नथी. पहेलांं अज्ञानपणे बीजी
रीते जाणवानुं मानतो हतो, शास्त्रथी, ईन्द्रियोथी के रागथी जाणवानुं मानतो हतो तेथी अहीं कह्युं के ‘ज्ञाने
करीने जाणीयुं रे...’–शुं जाण्युं? हुं शुद्ध उपयोगस्वरूप अविनाशी आत्मा छुं–एम जाण्युं, अने एम जाण्युं एटले,
‘हुं रागी छुं, हुं पर निमित्तथी समजुं छुं’ एवी जे मिथ्यामान्यता हती ते टळी गई. अने अवस्थामां रागादि
होवा छतां तेटलो ज पोताने न स्वीकारतां ‘हुं शुद्ध उपयोगमय शाश्वत छुं’–एम स्वीकारीने पोताना स्वभाव
तरफ वळ्‌यो, एटले बंने पडखांनुं ज्ञान थईने सम्यक् एकांत थयुं. राग अने ज्ञानस्वभाव बंनेने जाण्या खरा,
पण राग ते हुं नहि ने ज्ञान ते ज हुं–एम ज्ञान तरफ ढळतां सम्यक् एकांत थयुं.
नीचली अवस्थामां राग तद्न टळी जतो नथी, रागादि भावो थाय छे खरा, पण ते रागादि होवा छतां
तेनाथी आत्माने जाणतो नथी, पण ज्ञानथी ज जाण्यो छे. रागथी जुदो पडीने ज्ञानने पोताना स्वभावमां
एकत्व कर्युं ते सम्यक् एकांत छे, ते मोक्षमार्ग छे, ते धर्म छे. अवस्थामां राग छे, रागना निमित्तो छे, व्यवहार
छे, परंतु ते बधाने जाणीने शुद्ध अभेद स्वभाव तरफ वळवुं ते ज प्रयोजन छे. अहीं शुद्ध–अशुद्ध, उपादान–
निमित्त, निश्चय–व्यवहार अने द्रव्य–पर्याय एवा चार प्रकारे बब्बे बोल समजावीने आत्माने स्वभावनी
एकता तरफ वाळ्‌यो छे.
अहीं कोई कहे के आ बधा प्रकारो जाणीने पछी शुं करवुं? तो तेने एम समजाव्युं छे के आ बधुं जाणीने
सम्यक् एकांत एवा निजपदनी प्राप्ति करवा माटे––
(१) अशुद्धतानो आश्रय छोडीने शुद्ध आत्मानो आश्रय करवो.