Atmadharma magazine - Ank 080
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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जेठ: २४७६ : १५३:
ध्यानना अभ्यासवडे जाण! शुद्धात्मा ते ध्याननो विषय छे.
वीर सं. २४७३ भादरवा सुद १३ दसलक्षणी पर्वनो उतमअकिंचन्य दिन (९)
[] त्ध् म्ग्र्ि . : आत्मध्यानथी ज सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान,
सम्यग्चारित्र ने केवळज्ञान पमाय छे. कर्म, शरीर, वाणी, शुभाशुभ भाव के पर्याय–ए बधानुं लक्ष छोडीने जेणे
पोतानी अवस्थाने अंतरस्वभावमां एकाग्र करी तेओ ज सम्यग्दर्शनादि पाम्या छे. आत्मानी समजणथी
कंटाळीने आंख बंध करीने ध्यान करवा मंडी जाय तेने साचुं ध्यान न होय, पण स्वरूपनी अरुचिरूप
आर्त्तध्यान होय. पहेलांं यथार्थ समजवुं जोईए, सत्समागमे श्रवण करीने तत्त्वनो अविरुद्ध निर्णय करवो
जोईए, पछी ज आत्मानुं ध्यान थई शके. पर लक्षे तो आत्मानी ओळखाण थती नथी, पुण्यथी पण थती नथी,
अने वर्तमान पर्यायना लक्षे पण थती नथी; पण वर्तमान पर्यायने त्रिकाळी स्वभावमां वाळीने ध्यान करवाथी
ज यथार्थ ओळखाण थाय छे ने सम्यग्दर्शनादि प्रगटे छे.
[] त् . : जेने त्रिकाळ स्वभावमां बंधन ज नथी,–सदाय मुक्त
स्वरूप ज छे, एवो शुद्ध निर्मळ चिद्रूप आत्मा छे, तेमां परिणामने लीन करवा ते ध्यान छे. कह्युं छे के–
‘अन्यथा वेदपाण्डित्यं शास्त्रपाण्डित्यमन्यथा।
अन्यथा परमं तत्त्वं लोकाः क्लिश्यन्ति चान्यथा।।’
–यशस्तिलक अ. प गा. प१
शास्त्र जुदां छे ने आत्मा जुदो छे. शास्त्रमांथी आत्मा प्रगटतो नथी. शास्त्रना लक्षे सम्यग्ज्ञान थतुं
नथी. शास्त्रोमां तो विकल्पोनुं वर्णन छे, अने आत्मानो स्वभाव तो विकल्पातीत छे. नय–प्रमाणना विकल्पो
आत्मामां नथी. शास्त्रज्ञाननी पंडिताई जुदी चीज छे ने आत्मा परमतत्त्व जुदी चीज छे. तेम ज लोक जे क्लेश
पामे छे ते जुदी चीज छे. शास्त्रना भणतरथी जे पंडिताई थाय तेनी अपेक्षा आत्माने नथी. शास्त्रज्ञान तो
परावलंबी विकल्पवाळुं छे, आत्मा निर्विकल्प छे. मोटा वादविवाद करीने जीत मेळवे तेथी आत्मानुं ज्ञान थतुं
नथी. आत्मा परमतत्त्व छे ते केवळ ज्ञानआनंदरूप छे. परनी अपेक्षा कहो तो राग आवे अने राग त्यां दुःख
होय; आत्मा तो परमानंदस्वरूप छे.
[] न् न् . : जे जीव पोताना चैतन्यस्वभाव सन्मुख वळे नहि अने बहारना
ज साधनोथी चैतन्यनी समजण मानीने त्यां अटकी रहे, तेने भगवान आचार्यदेव कहे छे के अरे भाई! तुं तारा
अंर्तस्वभावने शोध. तारुं तत्त्व बहारमां नथी पण अंतरमां छे, तेने अंर्तसन्मुख थईने शोध. बहारमां भिन्न
कारकोनी शोध करीने तुं अनादिथी रखडी रह्यो छे. श्री प्रवचनसार अ० १ गा० १६ मां कह्युं छे के–‘निश्चयथी
परनी साथे आत्माने कारकपणानो संबंध नथी, के जेथी शुद्धात्मस्वभावनी प्राप्तिने माटे सामग्री (–बाह्य
साधनो) शोधवानी व्यग्रताथी जीवो (नकामा) परतंत्र थाय छे.’ आचार्यदेव कहे छे के चैतन्यतत्त्वने माटे
चैतन्यथी भिन्न कोई साधन नथी; माटे हे भव्य! तारा स्वतंत्र तत्त्वने ओळखीने ठर. अंतरस्वरूपनो सहज
मार्ग जेमांथी न नीकळतो होय ते बधुं पडतुं मूकी दे. अंतरतत्त्व जुदुं छे अने बहारनां साधनो जुदां छे.
[] प्र, स्त्रज्ञ त्ज्ञ . : अंतरमां परम तत्त्वना भाव समजवानुं
प्रयोजन छे. कोईने गाथाना शब्दो याद न रहे तो कांई नहि. गाथाना शब्दो शास्त्रमां छे, पण ते शब्दोनो भाव
शास्त्रमां नथी, भाव तो आत्मामां छे. ए आत्मतत्त्वने जाण्या विना लोको बिचारा मफतना अन्य मार्गमां
कलेशित थई रह्या छे, एम श्री आचार्य देवनी करुणा छे.
उपादेय छे–ए भावार्थ छे. ।।२३।।
[] द्धत् ल् : आ शास्त्रमां वारंवार शुद्धात्मानुं वर्णन कर्युं छे. जेने
जेनो रस होय ते वारंवार तेनुं रटण करे, अने बीजी वात आवे तो य तेने ढीली करी नांखे. आ शास्त्रमां
शुद्धात्माने ज वारंवार वर्णव्यो छे अने तेनी ज एकाग्रतानो उपदेश कर्यो छे. भव्य जीवोने कल्याणनुं कारण ते
ज छे. वारंवार शुद्धात्मानो ज उपदेश सांभळवा माटे जे जीव ऊभो छे अने ते शुद्धात्मानुं श्रवण करतां जेने
कंटाळो आवतो नथी ते जीवने शुद्धात्मानी रुचि थई छे, ने बीजी रुचि टळी गई छे;