जेठ: २४७६ : १५५:
रहेलो छे. देहमां रहेलो पोतानो आत्मा सिद्ध जेवो ज छे, तेने ओळखाववा देहने सिद्धालय कह्युं छे. माटे तुं
बाह्य लक्ष छोडीने सिद्धालयमां बिराजमान तारा चैतन्यस्वभावने अंतरलक्षवडे अवलोक.
[१६८] अात्मा पोते परमात्मा छे पण अज्ञानी पोताने जाेतो ज नथी. : – आत्मा सिद्ध जेवो छे एम
कहेतां अज्ञानीनुं लक्ष, पोताना आत्मा उपर जवाने बदले ऊंचे सिद्ध भगवान उपर जाय छे, पण ते पोतामां
पोताना स्वभावसन्मुख जोतो नथी. अज्ञानी जीवने क्यांय पोते द्रष्टिमां ज आवतो नथी. ज्यां सिद्ध
भगवाननी वात आवे त्यां, ‘आ मारी वात नहि पण महावीर भगवान वगेरे सिद्ध थया तेमनी वात छे’ –
एम परमां ज द्रष्टि करे छे. एटले ते शुभरागमां ज अटकी जाय छे. ज्ञानी तो सदाय पोताना स्वभावने ज
मुख्य करे छे. सिद्ध भगवाननी वात आवे त्यां, ‘मारो स्वभाव ज आवो छे, सिद्धना अने मारा स्वभावमां
कांई फेर नथी’ एम ज्ञानी स्वद्रष्टि करे छे. बीजा सिद्ध भगवानने जाण्या तेनुं सामर्थ्य सिद्ध जेटलुं ज छे. सिद्ध
भगवाननो विश्वास जे ज्ञानमां कर्यो ते ज्ञानमां सिद्धपणुं समाय तेटली मोटप छे, पण अज्ञानीने पोताना
ज्ञानसामर्थ्यनो विश्वास नथी.
[१६९] शुद्धात्मस्वभाव त्रणलोकथी अारािधत छे. : – आ गाथामां कह्युं छे के सिद्ध भगवान त्रणलोकथी
आराधित छे; एटले के सिद्ध जेवो पोतानो शुद्धस्वभाव ज त्रणलोकना जीवोथी आराधित छे, पण रागादि
विकार ते आराधित नथी.
प्रश्न:– त्रणलोकमां तो अनंता–अज्ञानी जीवो पण छे, तेओ तो आत्मस्वभावने आराधता नथी पण
रागादिने ज आराधे छे. छतां अहीं सिद्धभगवान त्रणलोकथी आराधित छे एम केम कह्युं? सिद्धभगवाननो
विरोध करनारा पण घणा जीवो होय छे?
उत्तर:– अहीं आचार्य भगवानने पोताने शुद्धात्मानी उत्कट आराधना वर्ते छे तेथी तेओश्रीनी द्रष्टिमां
त्रण जगतना आराधक जीवो ज देखाय छे; माटे द्रष्टिनी व्यापकताथी कह्युं के त्रणलोकमां सिद्धभगवान
आराधित छे. त्रणलोकना स्वामी एवा ईन्द्रो, चक्रवर्तीओ वगेरे तेने आराधे छे. जेओ सिद्धभगवानने (शुद्ध
आत्माने) आराधता नथी पण विकारने आराधे छे तेने आचार्यदेव जीव ज गणता नथी. तेनी द्रष्टि ज
विकारमां अने जडमां एकाकार छे तेथी तेने जड गणे छे. ते जीवने पोताने पण पोतानुं चेतनपणुं भासतुं नथी
पण विकारपणुं अने जडपणुं भासे छे. ।। २प।।
[१७०] तात्पयर् शुं? : – ए रीते, बहिरात्मा, अंतरात्मा अने परमात्माना स्वरूपनुं कथन कर्युं अने तेमां
परमात्मा सिद्धभगवान जेवो पोतानो त्रिकाळी परमात्मस्वभाव छे ते ज ध्यान करवा योग्य छे एम बताव्युं.
पोताना परमात्मस्वभावनुं ध्यान ए ज सर्वनो सार छे. आ ग्रंथमां शुद्धात्माना ध्याननी मुख्यताथी कथन छे.
शुद्धात्माना ध्यानथी ज सम्यग्दर्शन थाय छे, तेनाथी ज सम्यग्ज्ञान थाय छे, तेनाथी ज सम्यग्चारित्र अने
केवळज्ञान थाय छे. माटे शुद्धात्मानुं ध्यान ए ज बधा शास्त्रोनुं तात्पर्य छे.
[१७१] तुं तारा अात्माने ज िसद्धपणे ध्याव : – जेवा सिद्धभगवान प्रगटरूप परमात्मा छे एवा ज
परमात्मा शुद्ध निश्चयनयथी आ देहमां पण शक्तिरूप छे अर्थात् दरेक आत्मा स्वभावथी सिद्ध परमात्मा ज छे,
माटे तेनुं ज ध्यान करवाथी प्रगटरूप सिद्धदशा थाय छे–एम हवे कहे छे–
(गाथा २६)
जेहउ णिम्मलु णाणमउ सिद्धिहि णिवसइ देव।
तेहउ णिवसइ बंभु परु देहहं मं करि मेउ।। २६।।
भावार्थ:– जेवा सिद्धभगवान भावकर्म–द्रव्यकर्म–नोकर्मनी उपाधिरहित निर्मळ, ज्ञानमय, परम आराध्य
देवाधिदेव, केवळज्ञानादि प्रगटस्वरूप कार्यसमयसार सिद्धिमां वसे छे तेवो ज आ आत्मा सिद्ध जेवा सर्व लक्षणो
सहित परमब्रह्म, शुद्धबुद्ध स्वभावरूप परमात्मा शक्तिरूपे शरीरमां वसे छे; माटे हे शिष्य! तुं सिद्धभगवानमां
अने तारामां भेद न कर, अर्थात् अन्य सिद्धभगवाननुं लक्ष छोडीने तुं तारा शुद्धबुद्ध परिपूर्ण स्वभावने ज ध्याव.
ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा
राजकोटथी विहार करीने पू. गुरुदेवश्री गढका गामे पधार्या त्यारे वैशाख सुद प ना रोज राजकोटना
भाईश्री नानचंद अनुपचद महेता तथा तेमना धर्मपत्नी कमळाबेन–ए बंनेए सजोडे आजीवन ब्रह्मचर्य–
प्रतिज्ञा पू. गुरुदेवश्री पासे अंगीकार करी छे. आ बदल तेमने धन्यवाद!