रागथी धर्म थाय के शरीरनी क्रिया आत्मा करे–ए वात कोई ज्ञानीने संमत नथी.
तेनी तेने अनंतकाळथी खबर नथी. हुं कोण छुं ने मारुं स्वरूप शुं छे?–ते विषे ज भ्रांति रही गई छे. मारुं सुख
जाणे के बहारमां होय! एम माने छे, एटले पोताने ज विषे भ्रांति छे. देव–गुरु–शास्त्रने विषे भ्रांति रही गई
छे–एम न कह्युं, केम के साचा देव–गुरु–शास्त्रने तो मान्या, पण पोताना आत्मा विषे भ्रांति कदी टाळी नथी.
परने विषे भ्रांति रही गई छे. एम न कह्युं, पण स्वकोण ते विषे भ्रांति रही गई छे. आत्माने भूलीने परथी
लाभ मानी रह्यो छे, एटले उपादानस्वभावमां भ्रांति रही गई छे, पण निमित्तमां भूल रही गई छे–एम नथी.
बीजी रीते कहीए तो व्यवहार संबंधमां भूल तो टाळी, पण आत्मानो स्वभाव शुं ते जाण्यो नहि एटले निश्चय
छे ते पोताना स्वरूपमां भ्रांति छे. पुण्यने आत्मानुं स्वरूप माने तो ते पण आत्मा विषे भ्रांति छे. जीवे
अनंतकाळमां बीजुं बधुं कर्युं छे पण आत्मानो स्वभाव शुं–ते विषे भ्रांति कदी टाळी नथी. पोता विषे भ्रांति
रही गई छे. पोते एटले कोण? विकारवाळो पोताने मान्यो ते पण भ्रांति छे. आत्मा क्षणिक विकार जेटलो
नथी, विकाररहित तेनो स्वभाव छे, ते स्वभावमां भ्रांति रही गई छे. जीवे शुभभाव अनंतवार कर्या छे, पण
भ्रांतिरहित थईने शुद्धात्माने कदी जाण्यो नथी.
गयो छतां भ्रांति टळी नहि. अनंतकाळमां त्याग, व्रत वगेरे कर्युं, पण आत्मस्वभवानी विचारणानुं स्थळ बाकी
रही गयुं छे. पोताने विषे शुं भ्रांति रही गई? ते एक अद्भुत विचारणानुं स्थळ छे. बीजा बधा विचारोमां
डहापण कर्युं छे, पण आत्मानी यथार्थ विचारणा कदी नथी करी. पहेलांं आत्मस्वभावनी वात करीने पछी तेनुं
निमित्त पण बतावशे. अनंतकाळनी भ्रांति केम टळे. तेनो उपाय बतावशे.
हृदयथी अवलोकन करवुं, तेनी मन, वचन, कायानी प्रत्येक चेष्टानां अद्भुत रहस्यो फरी
फरी निदिध्यासन करवां; तेओए सम्मत करेलुं सर्व सम्मत करवुं.
अने ए ज सर्व शस्त्रनो, सर्व संतना हृदयना, ईश्वरना घरनो मर्म पामवानो महामार्ग
छे अने ए सघळानुं कारण कोई विद्यमान सत्पुरुषनी प्राप्ति अने ते प्रत्ये अविचळ श्रद्धा
ए छे. अधिक शुं लखवुं? आजे गमे तो तेथी मोडे अथवा वहेले, ए ज सूज्ये, ए ज
प्राप्त थये छुटको छे. सर्व प्रदेशे मने तो ए ज सम्मत.