Atmadharma magazine - Ank 080
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: १५६ : आत्मधर्म : ८०
ज्ञानीने शुं संमत छे?
“ज्ञानीओए संमत करेलुं सर्व संमत करवुं”
‘आत्मस्वभावमां अभेदद्रष्टि ते ज ज्ञानीने संमत छे’
आ श्रीमद् राजचंद्रनो एक पत्र वंचाय छे. तेमां तेओ लखे छे के ज्ञानीओए संमत करेलुं सर्व संमत
करवुं. ज्ञानीओने शुं संमत छे? आत्मस्वभावमां अभेदद्रष्टि ते ज सर्वे ज्ञानीओने संमत छे. ए सिवाय कोई
रागथी धर्म थाय के शरीरनी क्रिया आत्मा करे–ए वात कोई ज्ञानीने संमत नथी.
‘अनंतकाळथी पोताने पोता विषेनी ज भ्रांति रही गई छे’ श्रीमद्नुं २३ मा वर्षे आ लखाण छे.
आत्मा अनंतकाळथी छे, आ शरीरनो संबंध नवो थाय छे, पण आत्मा नवो थतो नथी. आत्मा पोते कोण छे
तेनी तेने अनंतकाळथी खबर नथी. हुं कोण छुं ने मारुं स्वरूप शुं छे?–ते विषे ज भ्रांति रही गई छे. मारुं सुख
जाणे के बहारमां होय! एम माने छे, एटले पोताने ज विषे भ्रांति छे. देव–गुरु–शास्त्रने विषे भ्रांति रही गई
छे–एम न कह्युं, केम के साचा देव–गुरु–शास्त्रने तो मान्या, पण पोताना आत्मा विषे भ्रांति कदी टाळी नथी.
परने विषे भ्रांति रही गई छे. एम न कह्युं, पण स्वकोण ते विषे भ्रांति रही गई छे. आत्माने भूलीने परथी
लाभ मानी रह्यो छे, एटले उपादानस्वभावमां भ्रांति रही गई छे, पण निमित्तमां भूल रही गई छे–एम नथी.
बीजी रीते कहीए तो व्यवहार संबंधमां भूल तो टाळी, पण आत्मानो स्वभाव शुं ते जाण्यो नहि एटले निश्चय
संबंधी भूल कदी टाळी नथी. देव–गुरु–शास्त्रनी कृपा थई जाय तो मारा आत्मानुं कल्याण थई जाय–एम माने
छे ते पोताना स्वरूपमां भ्रांति छे. पुण्यने आत्मानुं स्वरूप माने तो ते पण आत्मा विषे भ्रांति छे. जीवे
अनंतकाळमां बीजुं बधुं कर्युं छे पण आत्मानो स्वभाव शुं–ते विषे भ्रांति कदी टाळी नथी. पोता विषे भ्रांति
रही गई छे. पोते एटले कोण? विकारवाळो पोताने मान्यो ते पण भ्रांति छे. आत्मा क्षणिक विकार जेटलो
नथी, विकाररहित तेनो स्वभाव छे, ते स्वभावमां भ्रांति रही गई छे. जीवे शुभभाव अनंतवार कर्या छे, पण
भ्रांतिरहित थईने शुद्धात्माने कदी जाण्यो नथी.
‘आ एक अवाच्य अद्भुत विचारणानुं स्थळ छे.’ वाणीथी न कही शकाय एवुं अद्भुत विचारणानुं
आ स्थळ छे. अहीं आत्मस्वभावना विचारनी अपूर्वता बतावे छे. एवुं शुं बाकी रही गयुं के अनंतअनंतकाळ
गयो छतां भ्रांति टळी नहि. अनंतकाळमां त्याग, व्रत वगेरे कर्युं, पण आत्मस्वभवानी विचारणानुं स्थळ बाकी
रही गयुं छे. पोताने विषे शुं भ्रांति रही गई? ते एक अद्भुत विचारणानुं स्थळ छे. बीजा बधा विचारोमां
डहापण कर्युं छे, पण आत्मानी यथार्थ विचारणा कदी नथी करी. पहेलांं आत्मस्वभावनी वात करीने पछी तेनुं
निमित्त पण बतावशे. अनंतकाळनी भ्रांति केम टळे. तेनो उपाय बतावशे.
अनंतकाळथी पोताने पोता विषेनी ज भ्रांति रही गई छे; आ एक अवाच्य–
अद्भुत विचारणानुं स्थळ छे. ज्यां मतिनी गति नथी त्यां वचननी गति क्यांथी होय?
निरंतर उदासीनतानो क्रम सेववो; सत्पुरुषनी भक्ति प्रत्ये लीन थवुं. सत्पुरुषोनां
चरित्रोनुं स्मरण करवुं, सत्पुरुषोनां लक्षणोनुं चिंतन करवुं सत्पुरुषोनी मुखाकृतिनुं
हृदयथी अवलोकन करवुं, तेनी मन, वचन, कायानी प्रत्येक चेष्टानां अद्भुत रहस्यो फरी
फरी निदिध्यासन करवां; तेओए सम्मत करेलुं सर्व सम्मत करवुं.
आ ज्ञानीओनां हृदयमां राखेलुं, निर्वाणने अर्थे मान्य राखवा योग्य, श्रद्धवा
योग्य फरी फरी चिंतववा योग्य, क्षणे क्षणे–समये समये लीन थवा योग्य परम रहस्य छे.
अने ए ज सर्व शस्त्रनो, सर्व संतना हृदयना, ईश्वरना घरनो मर्म पामवानो महामार्ग
छे अने ए सघळानुं कारण कोई विद्यमान सत्पुरुषनी प्राप्ति अने ते प्रत्ये अविचळ श्रद्धा
ए छे. अधिक शुं लखवुं? आजे गमे तो तेथी मोडे अथवा वहेले, ए ज सूज्ये, ए ज
प्राप्त थये छुटको छे. सर्व प्रदेशे मने तो ए ज सम्मत.