एटले पर तरफना ज्ञाननो उघाड, अथवा पर तरफना वलणवाळुं ज्ञान–एम अहीं अर्थ समजवो. सम्यक्
मतिज्ञान वडे तो आत्मा जणाय छे, पण पर तरफ वलणवाळा ज्ञानना उघाड वडे आत्मा जणातो नथी.
लीसोटा मारे,–एम कटके कटके घसे तो तेल न नीकळे. पण वच्चे अंतर पड्या वगर घसे तो तेल नीकळे. तेम
अहीं निरंतर उदासीनतानो क्रम सेववानुं कह्युं छे. पर प्रत्येनी रुचि कंईक घटे तो अंतरना विचार तरफ वळे ने?
आ वात नास्तिथी करी छे. पर प्रत्ये वैराग्य दशा लावीने अंतरनी विचारणामां निरंतर रोकावुं जोईए. अहीं
निरंतर पर प्रत्ये उदासीनता सेववानुं कह्युं; तो शुं खावुं–पीवुं कंई न करवुं? तेम कोई पूछे तो कहे छे, के–जेम
वेपारनो लोलुपी सूतो होय के खातो होय, पण साथे तेने वेपारनी लोलुपतानो भाव तो पड्यो ज छे. तेम
धर्मनी रुचिवाळाने ऊंघमां पण पर प्रत्येनी उदासीनता खसे नहीं; धर्मनी रुचिवाळो उदासीनताना क्रममां
आंतरो पडवा देतो नथी. खावुं–पीवुं के वेपार वगेरेनो राग वर्ततो होवा छतां अंतरनी रुचिमां ते प्रत्येनी
उदासीनता एक क्षण पण खसती नथी.
भाव छे. बे पैसानी तावडी लेवा जाय त्यां पण टकोरा मारीने परीक्षा करे छे. तो अनंतकाळनी भ्रांति टाळीने
आत्मानुं कल्याण प्रगट करवा माटे सत्पुरुषनी परीक्षा करीने ओळखवा जोईए. सत् एटले आत्मस्वभाव,
तेनी जेने ओळखाण थई छे ते सत्पुरुष छे. संसार प्रत्ये निरंतर उदास थवुं अने सत्पुरुषनी भक्ति प्रत्ये लीन
थवुं–एम बे वात करी.
रहेतुं हशे? कोई बहारनी क्रियामां के शुभाशुभ रागमां सत्पुरुषोनुं चरित्र नथी. बहारमां फेरफार न देखाय पण
धर्मीने अंतरनी दशामां रुचिनुं वलण स्वभाव तरफ वळी गयुं छे. जेम नाना हीरानी किंमत लाखोनी होय, ते
झवेरी ज जाणे, तेम आत्मानुं चरित्र अंर्तद्रष्टिथी ज ओळखाय. धर्मी आत्मानुं चरित्र शुं? ते शरीरनी दशामां
के वस्त्रमां नथी, आहार–शुद्धिमां के वस्त्रना त्यागमां पण चरित्र नथी;–ए तो बधुं अज्ञानीने पण होय छे.
सत्पुरुषने अंतरमां शुं फेर पड्यो छे ते जाण्या विना तेमना चरित्रनुं ज्ञान थाय नहीं. सत्पुरुषनुं अंतरनुं चरित्र
शुं? ‘अमुक गाममां रहेता हता ने झवेरातनो वेपार करता हता, जिज्ञासुओने पत्र लखता हता के उपदेश देता
हता’ –एमां शुं सत्पुरुषनुं चरित्र छे? ए तो बधी बाह्य वस्तु छे, तेमां सत्पुरुषनुं चरित्र नथी पण अंतरना
स्वभावने जाणीने त्यां ठर्या छे अने रागादि भावोनी रुचि टळी गई छे, ते ज सत्पुरुषोनुं चरित्र छे; तेने
ओळखे तो तेनुं खरुं स्मरण थाय.
बहारमां त्याग थयो के शुभराग थयो ते सत्पुरुषनुं खरुं लक्षण नथी. शरीर देखाय छे ते देव–गुरु नथी, ते तो
जड छे; देव के गुरु तो आत्मा छे, अने अंतरमां श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र स्वरूप छे, ते ज तेनुं लक्षण छे, ते लक्षण
वडे सत्पुरुषने ओळखे तो पोतानो आत्मा तेवो थाय.
लक्षण नथी.