Atmadharma magazine - Ank 080
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: १५८: आत्मधर्म: ८०
–एम लक्षण वडे सत्पुरुषने ओळखीने तेनुं चिंतवन करवुं.
आ प्रमाणे अंतरनी वात करीने हवे बहारनी वात करे छे: ‘सत्पुरुषोनी मुखाकृतिनुं हृदयथी
अवलोकन करवुं. तेनां मन–वचन–कायानी प्रत्येक चेष्टानां अद्भुत रहस्यो फरी फरी निदिध्यासन करवां’
शरीर–मन–वाणीनी क्रिया तो जड छे पण तेनी पाछळ अनाकुळ स्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान छे तेनुं अद्भुत
रहस्य छे. मन–वचन–कायानी जे प्रवृत्ति थाय छे तेनुं कर्तापणुं ज्ञानीने ऊडी गयुं छे, तेने तेमां कदी सुखबुद्धि
थती नथी अने भेदज्ञान क्यारेय खसतुं नथी. आवुं ज्ञानीनुं अद्भुत रहस्य छे, ते वारंवार विचारवा योग्य
छे. सत्पुरुषनी मुखाकृतिनुं हृदयथी अवलोकन अने वारंवार तेमना समागमनी भावनामां पोताने सत्
समजवानी रुचि छे.
हवे कहे छे के ‘तेओए संमत करेलुं सर्व संमत करवुं.’ ज्ञानीओए शुं संमत कर्युं छे? आत्माना
स्वाश्रय सिवाय त्रणकाळमां धर्म नथी, एटले स्वाश्रयभाव ते ज ज्ञानीने संमत छे. देव–गुरु–शास्त्रनो
आश्रय करवो ते ज्ञानीने संमत नथी. आत्मानो रागरहित ज्ञाता स्वभाव छे तेनी रुचि, तेनी श्रद्धा, तेनुं
ज्ञान अने तेनो आश्रय करवो ते ज ज्ञानीने संमत छे. आ प्रमाणे ओळखीने तेओए समंत करेलुं सर्व संमत
करवुं. शुभ के अशुभ कोई पण पराश्रित भावथी आत्माने धर्म थाय–एवी मान्यता ज्ञानीओने संमत नथी.
आत्माने जे भावथी नुकशान थाय ते एक पण भाव ज्ञानीने संमत थाय नहीं. ज्ञानीने आत्मानो
विकाररहित स्वभाव ज संमत छे. एक ज्ञानी एक मार्ग बतावे अने बीजा ज्ञानी बीजो मार्ग बतावे–एम कदी
बने नहि, सर्वे सत्पुरुषोनो एक ज मार्ग छे. आत्मस्वभावने ओळखीने तेनो आश्रय करवो–ए ज मुक्तिनो
पंथ छे, अने ए ज मार्गमां सर्वे ज्ञानीओनी संमति छे.–ए प्रमाणे ओळखीने ज्ञानीओए संमत करेलुं सर्व
संमत करवुं. ज्ञानी पासेथी श्रवण करतां पोताने गोठे तेटलुं माने अने बीजी वात न रुचे–तो ते जीवे
ज्ञानीओए कहेलुं सर्व संमत कर्युं नथी; पण पोतानो स्वच्छंद पोष्यो छे. देव–गुरु–शास्त्रना आश्रये जे
पुण्यभाव थाय तेनो आश्रय करवानुं पण धर्मीने मान्य नथी, पण तेनो आश्रय छोडवानुं मान्य छे.
ज्ञानीओए मान्य करेलुं सर्व मान्य करवुं; तेमां जो क्यांय पोतानी कल्पनानो स्वच्छंद राख्यो तो तेणे
ज्ञानीओने ओळख्या नथी, अने तेमनुं कहेलुं मान्युं नथी. अत्यार सुधी जीवे पोतानी भ्रांतिथी ज ज्ञानीने
पोतानी द्रष्टिए कल्प्या छे. जो ज्ञानीने ज्ञानीनी रीते ओळखे तो तेने भेदज्ञान अने मुक्ति थया विना रहे
नहीं. ज्ञानीनी ओळखाण करवामां परनी महत्ता नथी पण पोताना आत्मानी महत्ता छे. पहेलांं तो
अनंतकाळथी आत्मानी भ्रांति रही गई छे–एम ओळखे, अने पछी उपर कह्या प्रमाणे पात्र थईने सत्पुरुषने
ओळखे, तो अवश्य आत्मानी भ्रांति टळी जाय.
ज्ञानी एम कहेता नथी के तुं अमारो आश्रय करीने रोकाई जा. पण तुं तारा आत्माने सिद्ध जेवा
परिपूर्ण स्वभावे ओळखीने तेनो आश्रय कर–एम ज्ञानीना हृदयनुं रहस्य छे. सर्वे धर्मात्माओए आ ज संमत
कर्युं छे अने ए ज संमत करवा योग्य–होंशथी मान्य करवा योग्य छे.
‘आ ज्ञानीओए हृदयमां राखेलुं–निर्वाणने अर्थे मान्य राखवा योग्य, श्रद्धवा योग्य, फरी फरी चिंतववा
योग्य, क्षणे क्षणे–समये समये लीन थवा योग्य परम रहस्य छे अने ए ज सर्व शास्त्रनो, सर्व संतना हृदयनो,
ईश्वरना घरनो मर्म पामवानो महामार्ग छे.’ जुओ तो खरा, केटली द्रढता पूर्वक वात करी छे. धर्मी जीवोए जे
मान्य कर्युं, ते ज मान्य राखवुं ते परम रहस्य छे. धर्मी जीवोए शुं मान्य कर्युं,–शुं आदर्युं अने शुं छोड्युं, ते
ओळख्या वगर पोते तेनी श्रद्धा केवी रीते करे? अने तेनुं चिंतवन पण कई रीते करे?
ज्ञानीओने बराबर ओळखीने, तेमणे संमत कर्या प्रमाणे आत्माना वीतरागी स्वभावनो आश्रय
करवो; सर्व शास्त्रनो अने सर्व संतोना हृदयनो मर्म पामवानो आ एक ज मार्ग छे. निर्वाणने अर्थे एटले
आत्मानी मुक्तिने अर्थे मान्य करवा योग्य आ ज महामार्ग छे. वळी ईश्वरना घरनो एटले सर्वज्ञ भगवानना
मार्गनो अथवा आत्माना स्वभावनो मर्म पामवानो आ महा–