गमे तो तेथी मोडे अथवा वहेले, ए ज सुज्ये–ए ज प्राप्त थये छूटको छे. भाई, तने तारा स्वरूपनी ज भ्रांति
छे, ते भ्रांति टाळ्या वगर छूटको नथी अने ए भ्रांतिने छेदवा माटे, ज्ञानीओए जे संमत कर्युं ते ज संमत करवुं
ए ज मार्ग छे. ए मार्ग सूज्ये ज सर्व संतोना हृदयने पामी शकाय छे. वळी छेवटे विद्यमान सत्पुरुषनी प्राप्ति
थवानुं कह्युं छे. पूर्वे थई गयेला सत्पुरुष नहि पण पोताने साक्षात् विद्यमान सत्पुरुषनी प्राप्ति थाय अने तेमना
वचननुं सीधुं श्रवण करतां तेमना प्रत्ये अविचळ श्रद्धा जागे. आमां समज्या वगर सत्पुरुषने मानवानी वात
नथी, पण सत्पुरुषने ओळखीने, ते कहे छे तेवा निरालंबी पोताना आत्मस्वभावनी ओळखाण करे तेणे
संतोए मानेलुं मान्युं कहेवाय. अने ए ज निर्वाणनो मार्ग छे.
कि मे करिष्यत क्रूरौ शुभाशुभ निशाचरो।
रागद्वेष परित्याग–महामंत्रेण किलितो।।
थयेला तेम ज क्रूर एवा शुभाशुभ कर्मरूपी निशाचरो मारुं शुं करशे?–कांई ज नहीं. अहीं मारा आत्मामां
स्वभावनी द्रष्टिथी शुद्धतानो पाक थवा मांडयो छे, तो पूर्वना बंधायेला क्रूर मोहादि कर्मोनो पाक मने शुं करी
शकशे? धर्मीनी द्रष्टि कर्मना उदय तरफ नथी पण पोताना मुक्तस्वभाव तरफ छे. तेथी स्वभावद्रष्टिना जोरे तेने
कर्मो खरी ज जाय छे.
प्रतिकूळ संयोग वच्चे पडेलो नारकी जीव पण कोईवार पोताना स्वभाव तरफ वळतां अपूर्व आत्मज्ञान पामी
जाय छे. तेणे पूर्वे सत्समागमे चैतन्य तत्त्वनी वात सांभळी होय पण ते वखते दरकार न करी होय अने
वर्तमानमां ते वात याद करी, वैराग्य पामीने स्व तरफ वळतां आत्माने समजी जाय छे. नरकमां ते जीवने पूर्व
भवनुं स्मरण थतां ते एम विचारे छे के अहो, मनुष्यपणामां मने ज्ञानी मळ्या हता, तेमनी पासेथी में चिदानंद
स्वभावनी वात सांभळी हती, पण में ते वखते दरकार न करी! ए प्रमाणे अंतरविचारमां उतरतां, संयोगद्रष्टि
छोडीने स्वभावनी द्रष्टिथी समजी जाय छे के हुं मुक्तस्वरूप छुं; ए प्रमाणे ते जीव त्यां सम्यग्दर्शन पामी जाय
छे. त्यां ते जीवने नरकमां क्रूर अशुभ कर्मनो तीव्र उदय होवा छतां ते कहे छे के पूर्वे बंधायेला क्रूर शुभाशुभ कर्म
मने शुं करशे? मारी द्रष्टि मारा मुक्तस्वभाव उपर पडी छे ते द्रष्टिथी मने छोडाववा कोई शुभाशुभ कर्म समर्थ
नथी. हुं मारा स्वभावमां जाग्यो त्यां कर्मो मने शुं करशे? कर्मनो विपाक जडमां छे, मारा आत्मामां तो