एनी मानेली मान्यतानी अर्थक्रिया करी शकतो नथी; माटे ते अभिप्राय त्रिकाळ मिथ्या छे. जेमां त्रिकाळ नियम
लागु पडे एने सिद्धांत कहेवाय; माटे ते नियम प्रमाणे परमां परनो व्यापार नहि होवाथी ते अध्यवसान परनी
अर्थक्रिया करवामां असमर्थ छे, माटे परने बंधावुं ने मूकावुं एवो अभिप्राय त्रिकाळ जूठो छे.
माटे एनो अभिप्राय मिथ्या छे.
शके ने अवळो भाव पण तारामां करी शके. परनुं कांई पण करवानुं तारामां कांई पण समर्थपणुं नथी.
पोतानी धारेली धारणा प्रमाणे थतुं नथी माटे अनर्थने करे छे आत्मा सिवाय शरीर, वाणी, मननुं हुं करुं, अने
बीजा पर पदार्थोनुं पण हुं करुं ते अभिप्राय केवळ अनर्थरूप छे. केटलाक एम माने छे के ‘छोकरा–छोकरीने
ठेकाणे पाडी बधी सरखाई करीने पछी धर्म करशुं;’ ते अभिप्राय किंचित्मात्र लाभरूप नथी, एकलो अनर्थरूप
छे. परनुं तुं कांई पण करी शकतो नथी, माटे पर तारे आधीन नथी, तुं परने आधीन नथी; तो हवे तारे खोटी
मान्यताथी अनर्थना केटला विचार करवा छे? अने तारे तारुं केटलुं बगाडवुं छे? तुं एनो ओशियाळो नथी, ए
मान्यता प्रमाणे थतुं नथी; तो हवे विषयादिमां सुखबुद्धि राखीने तारे तारुं केटलु बगाडवुं छे? तारे तारुं
बगाडवुं छे के सुधारवुं छे? माटे भाई! चिदानंद आत्मानी प्रतीत करी, तेनुं ज्ञान करी, तेमां ठर! ते तारा
हाथनी वात छे, ते ज मुक्तिनो मार्ग छे.
(२) अधर्मी जीव कर्ता अने विकारी अवस्था तेनुं कार्य.
(३) जड–पुद्गल कर्ता अने जडनी अवस्था तेनुं कार्य.
(१) धर्मी जीव विकारीभावोनो के शरीरादि जडनी क्रियानो कर्ता थतो नथी.
(२) अधर्मी जीव विकारनो कर्ता थाय छे अने जड शरीरादिनी क्रिया हुं करुं छुं–एम माने छे, पण
आ प्रमाणे कर्ता–कर्मनुं स्वरूप समजीने, शरीरादि जड पदार्थना कार्यनो हुं कर्ता–ए मान्यता छोडवी, तेम
द्रष्टिथी निर्मळ अवस्थारूपी कार्य प्रगट करवुं–तेनुं नाम धर्म छे, धर्मी जीव तेनो कर्ता छे.