Atmadharma magazine - Ank 080
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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भाई! तुं तारुं सुधार!
हुं परने करी शकुं एवी जेणे मान्यता करी तेणे परने अने पोताने एक मान्यां छे. हुं बीजाने केळवणी
आपी शकुं छुं–एम मान्युं तेणे बे जुदा पदार्थने एक मान्या. आने बंधावुं अने आने मूकावी दउं. एवो भाव
एनी मानेली मान्यतानी अर्थक्रिया करी शकतो नथी; माटे ते अभिप्राय त्रिकाळ मिथ्या छे. जेमां त्रिकाळ नियम
लागु पडे एने सिद्धांत कहेवाय; माटे ते नियम प्रमाणे परमां परनो व्यापार नहि होवाथी ते अध्यवसान परनी
अर्थक्रिया करवामां असमर्थ छे, माटे परने बंधावुं ने मूकावुं एवो अभिप्राय त्रिकाळ जूठो छे.
शुं अज्ञानभावे राग–द्वेष थाय तेथी जीव बीजानुं करी शके? सुखी–दुःखी बीजाने करी शके? जीवन–मरण
बीजानां करी शके? शुं बंध–मुक्ति बीजानी करी शके? –न करी शके. तेथी एनी धारेली मान्यता प्रमाणे न थयुं,
माटे एनो अभिप्राय मिथ्या छे.
हुं आकाशना फूलने चूटुं छुं, हुं आकाशना फूलने तोडुं छुं ते अभिप्राय तद्न मूर्खाई भरेलो छे. तेम हुं
बीजाने जीवाडुं–मारुं, बद्ध–मुक्त करुं ते अभिप्राय पण तद्न मूर्खाई भरेलो छे. तुं सवळो भाव तारामां करी
शके ने अवळो भाव पण तारामां करी शके. परनुं कांई पण करवानुं तारामां कांई पण समर्थपणुं नथी.
आचार्यदेवे आकाशना फूलनो केवो सरस न्याय आप्यो छे! जेम ‘आकाशना फूलने तोडुं’ ते भाव मिथ्या
छे, तेम ‘हुं परने जिवाडुं–मारुं, बद्ध–मुक्त करुं’ ते भाव पण आकाशना फूल तोडवा जेवो मिथ्या छे. ते भावथी
पोतानी धारेली धारणा प्रमाणे थतुं नथी माटे अनर्थने करे छे आत्मा सिवाय शरीर, वाणी, मननुं हुं करुं, अने
बीजा पर पदार्थोनुं पण हुं करुं ते अभिप्राय केवळ अनर्थरूप छे. केटलाक एम माने छे के ‘छोकरा–छोकरीने
ठेकाणे पाडी बधी सरखाई करीने पछी धर्म करशुं;’ ते अभिप्राय किंचित्मात्र लाभरूप नथी, एकलो अनर्थरूप
छे. परनुं तुं कांई पण करी शकतो नथी, माटे पर तारे आधीन नथी, तुं परने आधीन नथी; तो हवे तारे खोटी
मान्यताथी अनर्थना केटला विचार करवा छे? अने तारे तारुं केटलुं बगाडवुं छे? तुं एनो ओशियाळो नथी, ए
तारो ओशियाळो नथी; तारो भाव तारामां स्वतंत्र छे, एनो भाव एनामां स्वतंत्र छे. परनुं कांई तारी धारेली
मान्यता प्रमाणे थतुं नथी; तो हवे विषयादिमां सुखबुद्धि राखीने तारे तारुं केटलु बगाडवुं छे? तारे तारुं
बगाडवुं छे के सुधारवुं छे? माटे भाई! चिदानंद आत्मानी प्रतीत करी, तेनुं ज्ञान करी, तेमां ठर! ते तारा
हाथनी वात छे, ते ज मुक्तिनो मार्ग छे.
समयसार–बंधअधिकार गा. २६६ उपर पू. गुरुदेवश्रीना प्रवचनमांथी
कोण कर्ता अने शुं तेनुं कार्य?
(१) धर्मी जीव कर्ता अने निर्मळ अवस्था ते तेनुं कार्य.
(२) अधर्मी जीव कर्ता अने विकारी अवस्था तेनुं कार्य.
(३) जड–पुद्गल कर्ता अने जडनी अवस्था तेनुं कार्य.
(१) धर्मी जीव विकारीभावोनो के शरीरादि जडनी क्रियानो कर्ता थतो नथी.
(२) अधर्मी जीव विकारनो कर्ता थाय छे अने जड शरीरादिनी क्रिया हुं करुं छुं–एम माने छे, पण
जडना कार्यने ते करी शकतो नथी.
(३) शरीरादि जड पदार्थो आत्मानी अवस्थामां विकार करावतां नथी, तेम ज धर्म पण करावतां नथी.
आ प्रमाणे कर्ता–कर्मनुं स्वरूप समजीने, शरीरादि जड पदार्थना कार्यनो हुं कर्ता–ए मान्यता छोडवी, तेम
ज क्षणिक विकारनो हुं कर्ता ने ते मारुं कार्य–एवी बुद्धि पण छोडीने, त्रिकाळी निर्विकार चैतन्यस्वभावनी
द्रष्टिथी निर्मळ अवस्थारूपी कार्य प्रगट करवुं–तेनुं नाम धर्म छे, धर्मी जीव तेनो कर्ता छे.