अनेकांत एटले शुं? वस्तुमां नित्य–अनित्य वगेरे बब्बे परस्पर विरुद्ध धर्मो रहेला छे, तेनुं नाम अनेकांत छे.
आत्मा स्वभावे शुद्ध छे, अवस्थाए वर्तमान अशुद्ध छे–ईत्यादि प्रकारे बब्बे पडखां जाणीने एक स्वभाव तरफ
वळवुं ते ज प्रयोजन छे, अने तेनुं नाम सम्यक् एकांत छे. आत्मा स्वभावे शुद्ध अने अवस्थाए अशुद्ध–एम
बब्बे पडखां जाणीने तेना विकल्पमां अटकी रहे अने शुद्धस्वभाव तरफ वळे नहीं, तो तेने निजपदनी प्राप्ति
थाय नहीं, अने तेणे खरेखर अनेकांतने जाण्यो न कहेवाय.
अनेकांत ते सर्वज्ञभगवाननो मार्ग छे, सर्वज्ञनो मार्ग एटले निजपदनो मार्ग. त्रिकाळी स्वभावे शुद्ध अने
वर्तमान पर्याये अशुद्ध–एवुं अनेकांतनुं ज्ञान अंर्तस्वभावसन्मुख थईने निजपदनी प्राप्ति करवा सिवाय बीजा
कोई हेतुए उपकारी नथी. जुओ, आमां विचारवा जेवुं ऊंडु रहस्य छे.
आवशे क्यांथी? प्राप्तनी प्राप्ति होय एटले के जो शक्तिरूपे शुद्धता होय तो पर्यायमां व्यक्त थाय; जो शुद्धता न
ज होय तो प्रगटे नहीं. माटे शक्तिरूपे आत्मानो स्वभाव शुद्ध छे, अने प्रगट अवस्थामां अशुद्धता छे. जो
अवस्थामां अशुद्धता न होय तो वर्तमानमां शुद्धता होय एटले प्रगट परमानंदनो अनुभव होवो जोईए. माटे
आत्मा एकांत शुद्ध के अशुद्ध नथी पण द्रव्यस्वभावे शुद्ध अने पर्यायमां अशुद्ध–एवो अनेकांत छे.
आत्मसिद्धिमां कह्युं छे के–
तो असंग चैतन्यना परम आनंदनो अनुभव वर्ततो होत. माटे अवस्थामां विकार अने निमित्तनो संग छे.
छतां ‘असंग छे परमार्थथी.’ अंर्तस्वभावनी द्रष्टिथी जोतां सम्यक् चिदानंद प्रभु असंग छे. जो परमार्थे असंग
न होय तो कदी असंग थाय नहीं. अने जो व्यवहारे पण असंग होत तो पूर्णानंदनो अनुभव व्यक्त होत. जे
पुण्य–पाप, क्रोध वगेरेनी लागणीओ थाय छे ते कांई जडने थती नथी, पण चेतननी अवस्थामां पोते ज करे छे.
जो चेतन शुद्ध ज होय तो भूल कोनी? अने संसार कोनो? जो चेतननी अवस्थामां भूल न होय तो आ
समजवानो उपदेश कोने? आत्मा शक्तिरूपे त्रिकाळ शुद्ध परिपूर्ण होवा छतां वर्तमान अवस्थामां मलिन थई
रहेलो छे. जो ते मलिनता न होत तो अत्यारे परमात्मा होत. वळी जो अशुद्धता ज तेनुं स्वरूप होत तो ते कदी
टळी शकत नहीं. परमार्थे आत्मा असंग–शुद्ध छे, अने निजभाने ते प्रगटे छे.
‘स्वभावे शुद्ध अने अवस्थाए अशुद्ध’ एम बे पडखां जाणीने तेनी सामे ज जोया करे अने शुद्धस्वभाव तरफ
न वळे तो तेने निजपदनी प्राप्ति थती नथी ने अशुद्धता टळती नथी. पण ‘त्रिकाळ स्वभावे हुं शुद्ध छुं, ने
क्षणिक पर्यायमां अशुद्धता छे’ एम बने पडखांने जाणीने, जो त्रिकाळी शुद्ध स्वभाव तरफ वळे तो निजपदनी
प्राप्ति थाय छे, ने अशुद्धता टळे छे.