नथी–एम समजीने जो उपादान तरफ वळे तो अनेकांत कहेवाय. अनादिनो अज्ञानी जीव साचुं आत्मभान
पोतानी लायकातथी ज्यारे प्रगट करे त्यारे तेने आत्मज्ञानी सद्गुरु ज निमित्तरूपे अवश्य होय. साचुं निमित्त
न होय तेम बने नहीं, तेम ज निमित्त कांई करी दे–एम पण बने नहीं. श्रीमद् कहे छे के–
पायाकी ये बात है, निज छंदन को छोड, पीछे लाग सत्पुरुषको तो सब बंधन तोड.
ते गुरुगम वगर समजाय नहीं. जीव ज्यारे सम्यग्ज्ञान पामे छे त्यारे. ते पोतानी लायकातथी ज पामे छे,
नहीं अने अज्ञानी निमित्त होय नहीं. जेम चार मण चोखा लेवा जाय त्यां अढी शेरनो कोथळो भेगो होय,
पण चार मण चोखा भेगो अढी शेरनो कोथळो रंधाय नहीं, तेम ज बारदान तरीके कोथळो न होय एम पण
बने नहीं. तेम चैतन्यस्वभावने जाणवामां ज्ञानी निमित्त तरीके होय छे, ते बारदान छे–बहारनी चीज छे. ते
निमित्त कांई समजावी देतुं नथी. ज्ञानी सिवाय अज्ञानी निमित्त होय नहीं, ने आत्माना आनंदना
अनुभवमां निमित्त कांई करे नहीं. जेम ऊंचुं केसर लेवा जाय त्यां बारदान तरीके शणीयानो कोथळो न होय
पण सारी बरणी के पेटी होय. तेम अपूर्व सत्यस्वभावनी समजण प्रगट करवामां निमित्तरूपे साचा देव–
गुरु–शास्त्र होय, अज्ञानी न होय.
अने निमित्त बंनेने जाणीने एक उपादानस्वभावसन्मुख वळवुं ते प्रयोजन छे. उपादान छे अने निमित्त छे–
एम जाणीने जो तेना ज लक्षे रोकाय, ने निमित्तनुं लक्ष छोडीने पोताना उपादाननी द्रष्टि प्रगट न करे तो
निजपदनी प्राप्ति थाय नहीं. पोताना स्वभाव तरफनी एकता प्रगट कर्या विना अनेकांतनुं पण साचुं ज्ञान
थाय नहीं.
(३) अखंड चैतन्यस्वभाव तरफ वळतां पहेलांं, ‘साचा देव–गुरु–शास्त्र शुं कहे छे’ एवो परसन्मुख
व्यवहार बंनेनुं यथार्थ ज्ञान थतुं नथी. स्वभाव तरफ ढळतां रागनो आश्रय तूटे त्यारे अनेकांत थाय छे. अखंड
ज्ञानस्वभाव ते निश्चय, अने शुभराग ते व्यवहार. निश्चयज्ञानस्वभाव तरफ वळतां स्व–परप्रकाशक ज्ञान
सामर्थ्य खील्युं, ते ज्ञान शुभरागने व्यवहार तरीके जाणी ले छे.