Atmadharma magazine - Ank 081a
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: द्वितीय अषाढ: २४७६ आत्मधर्म : १८९:
आत्मा शुं काम करी शके छे अने शुं काम नथी करी शकतो? तथा आत्मा शुं काम करे तो तेने धर्म थाय
अने शुं काम करे तो तेने अधर्म थाय? –तेनी आ वात छे. पहेलांं तो आत्मा पोता सिवाय कोई पर पदार्थमां
कांई काम करी शकतो ज नथी, एटले देहादि पर पदार्थनी कोई क्रियाथी आत्माने धर्म के अधर्म थतो नथी. कर्तानुं
ईष्ट ते कर्म. कर्तानुं कर्म (–कार्य) पोतामां ज होय, परमां न होय. धर्मी–कर्तानुं कर्म शुं? परनी अवस्थाने तो
कोई जीव करी शकतो नथी; ने धर्मी जीव क्षणिक पुण्य–पापना विकारी भावोने पण खरेखर पोताना कर्म तरीके
स्वीकारतो नथी; आत्माना निर्मळ श्रद्धा–ज्ञानरूप कार्य ते ज तेनुं कर्म छे, ए सिवाय बीजा कार्यने धर्मी करतो
नथी. अज्ञानी जीव विकारने पोतानुं स्वरूप मानीने तेनो कर्ता थाय छे, अने जडनुं कार्य हुं करी शकुं एम ते
माने छे, ते ऊंधी मान्यतानो ते अधर्मी जीव कर्ता थाय छे पण जडना कार्यने तो ते करी शकतो नथी.
जेम कस्तुरीआ हरणने पोतानी डूंटीमां सुगंधी भरी छे पण तेनो विश्वास छोडीने बहारमां भटके छे,
तेम आत्मानी शांति पोतामां ज भरी छे पण तेने न मानतां बाह्यमां अने शुभाशुभ विकारमां सुख मानीने
अज्ञानी पराश्रयमां भटके छे; ने स्वभावनी श्रद्धा करतो नथी.
प्रश्न:– आत्माना स्वभावमां सुख–शांति भरेल छे ते वात साची, पण तेनी श्रद्धा ज्ञाननुं निमित्त मळवुं
जोईए ने?
उत्तर:– श्रद्धा–ज्ञान करनारो पोते ज्यारे स्वसन्मुख थईने पोतानी पात्रताथी श्रद्धा–ज्ञान प्रगट करे छे
त्यारे सत्देव–गुरु वगेरे पर चीज ते परने कारणे निमित्त तरीके होय छे. निमित्त न होय तेम बनतुं नथी. पण
आत्माने ताबे थईने निमित्तने आववुं पडे एम मानो तो पदार्थनी स्वतंत्रता रहेती नथी. तेम ज निमित्तो
आत्माने कांई करी द्ये–एम पण नथी. जो पोते जाते जागीने श्रद्धा–ज्ञान करे तो थाय छे, पोते न जागे तो बीजुं
कोई तेने श्रद्धा–ज्ञान करावी देवा समर्थ नथी. निमित्त छे खरुं, पण निमित्त उपादानमां कांई करतुं नथी. एक
चीजनुं स्वतंत्रपणे पोतामां कार्य थाय त्यारे बीजी चीजनी तेना कारणे हयाती होय तेने निमित्त कहे छे, पण
उपादान निमित्त एकबीजामां कांई करे ए मान्यता सत्यनुं खून करनारी छे.
प्रश्न:– जो निमित्त कांई न करी शकतुं होय तो सत्समागम अने श्रवण वगेरे शा माटे?
उत्तर:– आत्मानो जे स्वभाव छे तेनी द्रष्टि अने ज्ञान करवानी लायकात पोते ज्यारे प्रगट करे त्यारे
सत्समागम अने श्रवण–मनननो विकल्प तेने होय, पण ते सत्समागमने लईने के विकल्पने लईने तेने श्रद्धा–
ज्ञानरूपी कार्य थाय छे एम नथी. ते जीव पोते स्वतंत्रपणे स्वसन्मुख थईने समयक् श्रद्धा–ज्ञान प्रगट करे छे
त्यारे तेने सत्समागम वगेरे निमित्त कहेवाय छे. परंतु जो सत्समागम वगेरे निमित्तने लीधे ज श्रद्धा–ज्ञान
थवानुं मानी ल्ये तो ते निमित्तनुं लक्ष छोडीने कदी स्वभाव तरफ वळे नहि ने तेने सम्यक् श्रद्धा–ज्ञान प्रगटे
नहि. एक चीज पोते पोतामां कार्य करे त्यारे बीजी चीज निमित्त तरीके भले हो, पण बंनेनुं कार्य स्वतंत्र छे,
एकना कारणे बीजामां कार्य थतुं नथी.
जीव पोते समजे त्यारे ज्ञानीनी वाणी निमित्तरूपे होय, पण वाणीथी ते समजतो नथी. जो वाणीथी
ते समजतो होय तो एक वाणी सांभळनारा बधाने सरखुं समजाई जवुं जोईए, पण एम तो देखातुं नथी.
बधा पोतपोताना ज्ञानना क्षयोपशमनी योग्यता प्रमाणे समजे छे. जो वस्तुस्वभावनी स्वतंत्रतानी आ
वात एकवार पण जीव समजे तो स्वाश्रयभावे परमात्मदशा प्रगट करे अने पछी तेने फरीथी अवतार न
होय. जेम माखणमांथी घी थाय, पण घीमांथी फरीने माखण न थाय. तेम अवतारवाळा जीवनी मुक्ति थाय
पण मुक्त थया पछी फरीने अवतार न थाय. जीव अत्यार सुधी मुक्ति पाम्यो नथी, तो अत्यार सुधीना
अनंतकाळमां तेणे शुं कर्युं? अनंतकाळथी अज्ञानभावे पुण्य तेम ज पाप करीने ते स्वर्गादि चार गतिमां
रखडयो छे. संसारमां रखडतां जीवे एकला पाप ज नथी कर्या, परंतु पुण्य पण अनंतवार करीने स्वर्गमां
अनंतवार गयो छे. अनंतकाळमां पुण्य पण कर्यां छे, परंतु पुण्य–पापरहित आत्मस्वभावनुं आराधन एक
क्षण पण कर्युं नथी. स्वभावने चूकीने विकारनुं आराधन करे छे ते ज तेनो अपराध छे, ते अपराध कोई
कर्मे कराव्यो नथी; अने कर्म जीवने संसारमां रखडावतां नथी पण पोते पोताना