जोईए के हे जडकर्म! तुं खसी जजे! परंतु शुं जडने उपदेश होय? चैतन्यने संबोधीने उपदेश छे के हे भव्य, तुं
विकारनी रुचि छोडीने आत्मानी रुचि कर. हवे जो चैतन्यमां ते रुचि करवानी स्वतंत्रता न होय तो ते उपदेश
जीवे कदी प्रीतिथी विचार पण नथी कर्यो. जो चैतन्यनी प्रीति लावीने आ वात विचारे तो अंतरमां आ वात
बेठा वगर रहे नहि, अने आ वात बेसे तेने अल्पकाळमां मुक्ति थया विना रहे नहि.
पण तेम नथी. पोते ज परनी प्रीति करी छे अने ते पोते पलटी शके छे, तेथी तेने उपदेश आप्यो छे. पोते ऊंधी
प्रीति करी त्यारे कर्मनो उदय निमित्तरूप हतो अने पोते ज्यारे ऊंंधी प्रीति टाळीने सवळी प्रीति प्रगट करी त्यारे
ऊंधी प्रीतिना निमित्तरूप कर्म पण स्वयं टळी गयुं.
तुं आत्मानी प्रीति कर.
हे भाई! जो खरेखर अध्यवसानना निमित्ते जीवो कर्मथी बंधाय छे अने मोक्षमार्गमां स्थित मुकाय छे,
शुं काम कर्युं? केटलाक एम कहे छे के में फलाणा जीवने एवो हेरान कर्यो के में एनो बधो माल लई लीधो, धन
तो एनी पासे छे नहि अने माल बधो लई लीधो, एटले हवे ते हेरान थई थईने मरी जशे. अरे भाई! तारो
एने हेरान करवानो भाव छे छतां ते जीव आत्माने ओळखी पुरुषार्थ करी आत्मामां ठरीने शांति करशे तो
मुक्ति लेशे. हवे तारा भावे एमां कर्युं शुं? तारे तो बीजा जीवने दुःखी करी बंधन कराववानो भाव हतो, छतां
तारा भावे शुं काम कर्युं? कांई काम कर्युं नहि. माटे बीजाने बंधन करावुं एवो जे तारो अभिप्राय ते फोगट छे–
मिथ्या छे.
लईए के ते सामो समजी ज जाय. अरे भाई! तुं गमे तेम करे तोपण सामो जीव समजे ते तेना पोताथी ज
समजे छे, लेशमात्र ताराथी समजतो नथी. जो बीजाथी बीजा समजता होय तो अनंता तीर्थंकरो अनंतकाळमां
थई गया तेमणे घणुं समजाव्युं छतां पण तुं केम समज्यो नहि? तीर्थंकरदेवथी तो ऊंचो समजावनार जगतमां
कोई होय ज नहि. माटे,