Atmadharma magazine - Ank 081a
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: द्वितीय अषाढ : २४७६ आत्मधर्म : १९१ :
स्वभाव तरफ ढळवानुं रहेतुं नथी तेम ज ‘तुं आम कर’ एवो उपदेश करवानुं पण रहेतुं नथी.
‘हे जीव! तुं आत्मानी प्रीति कर’ –आवो उपदेश करवानुं क्यारे होय? –के जो जीव पोतानी अवस्था
बदलवामां स्वतंत्र होय तो ज एवो उपदेश होय. जो जडकर्म जीवने रोकतुं होय तो तो ते जडने उपदेश देवो
जोईए के हे जडकर्म! तुं खसी जजे! परंतु शुं जडने उपदेश होय? चैतन्यने संबोधीने उपदेश छे के हे भव्य, तुं
विकारनी रुचि छोडीने आत्मानी रुचि कर. हवे जो चैतन्यमां ते रुचि करवानी स्वतंत्रता न होय तो ते उपदेश
निरर्थक करे छे. चैतन्यनी स्वतंत्रता छे तेथी ज तेने उपदेश छे. अहो, आवा पोताना स्वाधीन चैतन्य तत्त्वनो
जीवे कदी प्रीतिथी विचार पण नथी कर्यो. जो चैतन्यनी प्रीति लावीने आ वात विचारे तो अंतरमां आ वात
बेठा वगर रहे नहि, अने आ वात बेसे तेने अल्पकाळमां मुक्ति थया विना रहे नहि.
अहीं आचार्यभगवान चैतन्यनी प्रीति करवानो उपदेश कहे छे के हे भव्य! तुं ज्ञानस्वभावी आत्मानो
निर्णय करीने तेनी सदा प्रीति कर. जो कोईक पर तेने प्रीति करावतुं होय तो ते पर पलटे त्यारे प्रीति पलटे,
पण तेम नथी. पोते ज परनी प्रीति करी छे अने ते पोते पलटी शके छे, तेथी तेने उपदेश आप्यो छे. पोते ऊंधी
प्रीति करी त्यारे कर्मनो उदय निमित्तरूप हतो अने पोते ज्यारे ऊंंधी प्रीति टाळीने सवळी प्रीति प्रगट करी त्यारे
ऊंधी प्रीतिना निमित्तरूप कर्म पण स्वयं टळी गयुं.
अहीं ‘सदा’ आत्मानी प्रीति कर एम कह्युं छे. जे रुचि अर्थात् प्रीति अने ज्ञान आत्मस्वभाव तरफ
वळ्‌या ते रुचि अने ज्ञान नित्य टकी रहे छे. नित्यस्वभावनी द्रष्टि अने एकाग्रता करीने तेनी प्रीति, ज्ञान अने
आनंद प्रगट्यां ते आत्मा साथे अभेदपणे नित्य रहे छे. तारा स्वभावनी प्रीति करवानुं तारा हाथमां छे माटे
तुं आत्मानी प्रीति कर.
अज्ञानीओनो
निष्फळ मिथ्या अभिप्राय
सौ जीव अध्यवसान कारण कर्मथी बधाय ज्यां ने मोक्षमार्गे स्थित जीवो मुकाय, तुं शुं करे भला?ा२६७ा
हे भाई! जो खरेखर अध्यवसानना निमित्ते जीवो कर्मथी बंधाय छे अने मोक्षमार्गमां स्थित मुकाय छे,
तो तुं शुं करे छे? (तारो तो बांधवा–छोडवानो अभिप्राय विफळ गयो.)
हे भाई! बापु! तारी शक्ति तारामां छे. तुं एम माने छे के हुं परने बंधावुं ने हुं परने मुकावुं, एवी
तारी मिथ्याबुद्धि ज तने बंधन कर्ता छे. पर जीव एना खोटा अभिप्रायथी बंधन करे छे, एमां तारा अभिप्राये
शुं काम कर्युं? केटलाक एम कहे छे के में फलाणा जीवने एवो हेरान कर्यो के में एनो बधो माल लई लीधो, धन
तो एनी पासे छे नहि अने माल बधो लई लीधो, एटले हवे ते हेरान थई थईने मरी जशे. अरे भाई! तारो
एने हेरान करवानो भाव छे छतां ते जीव आत्माने ओळखी पुरुषार्थ करी आत्मामां ठरीने शांति करशे तो
मुक्ति लेशे. हवे तारा भावे एमां कर्युं शुं? तारे तो बीजा जीवने दुःखी करी बंधन कराववानो भाव हतो, छतां
तारा भावे शुं काम कर्युं? कांई काम कर्युं नहि. माटे बीजाने बंधन करावुं एवो जे तारो अभिप्राय ते फोगट छे–
मिथ्या छे.
वळी सामो जीव मोक्ष करे ते पण तेना कारणे करे छे. ते सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी एकता करीने
मुक्ति एनी मेळे पामे छे, तेमां तें शुं कर्युं? घणा एम कहे छे के–आपणे सामा जीवने समजाववानी एवी रीत
लईए के ते सामो समजी ज जाय. अरे भाई! तुं गमे तेम करे तोपण सामो जीव समजे ते तेना पोताथी ज
समजे छे, लेशमात्र ताराथी समजतो नथी. जो बीजाथी बीजा समजता होय तो अनंता तीर्थंकरो अनंतकाळमां
थई गया तेमणे घणुं समजाव्युं छतां पण तुं केम समज्यो नहि? तीर्थंकरदेवथी तो ऊंचो समजावनार जगतमां
कोई होय ज नहि. माटे,