जुदुं तत्त्व छे, ते परना कारणे बंधाय छे ने मुकाय छे–एम जे माने छे ते आत्माने ओशियाळो बनावे छे. आत्मा
पोते स्वतंत्र तत्त्व छे, एने बंधावुं–मुकावुं ते पोताना हाथमां छे. पोताना पुरुषार्थवडे पोतानी मुक्ति थाय त्यारे
भगवानने निमित्त कहेवाय छे. भगवानना समवसरणमां ईंद्रो आवे छे अने ईंद्रो पोते ज समवसरण रचे छे.
एवा जीवो पण बेठेला होय छे के त्यांथी ध्वनि सांभळीने बहार जईने ऊंधा पडे छे; भगवाननी सभामां ईंद्रो
अने चक्रवर्ती वगेरे होय छे अने आवा ऊंधा पडनार जीवो पण होय छे. भगवान जो तारी देता होय तो बधा
समजी जवा जोईए; पण बधा समजी जता नथी, जेनी लायकात होय ते समजे छे. परंतु समजे त्यारे तेने विनय
आव्या वगर रहेतो नथी, विनयथी निमित्त उपर आरोप करीने कहे छे के हे जिनेन्द्रदेव! आपे मने तार्यो, हे
नाथ! तरणतारण आप छो, आपे मने तार्यो, आपे मने उगार्यो, आपना दिव्यध्वनि वडे हुं समज्यो, आपना
दर्शनथी हुं संसारसागर तर्यो. एम, पोते पोताना पुरुषार्थवडे समजे त्यारे सामा निमित्त उपर भक्तिभाव
आव्या वगर रहेतो नथी, विनयभाव आव्या वगर रहेतो नथी, एवुं साधकनुं स्वरूप छे.
थई गया छे; भगवानने एक पण रागनो विकल्प नथी छतां तेमनी सभामां ढोर, मनुष्य ने विद्याधरो धर्म
पामी जाय छे, तेथी सिद्ध थाय छे के कोई कोईने मुक्त करी शकतुं नथी ने कोई कोईने तारी पण शकतुं नथी.
भगवाननी सभामां ढोर पण आत्मधर्म पामी जाय छे अने अहीं केटलाक मनुष्य थईने पण धर्मनो अनादर
करे छे. बहार जईने कहे छे के आवी ते वात होती हशे? रोटलानी वात नहि, पैसानी वात नहि ने त्रणे टाणां
एक आत्मानी ज मांडी छे! एम करीने धर्मनी आस्रातना करे छे, अने विराधक थाय छे. ते पण पोताना
कारणथी, बीजाना कारणथी नहि.
त्यां ते वखते ज स्वरूपमां लीन थया, ने लीन थया के तरत ज केवळज्ञान प्रगट थयुं ने तरत ज मोक्ष थयो.
सामो वेरी देव जाणे के आने नरकमां लई जाउं. उपसर्ग देनारा देवने एम विचार आवे के आने आवा ऊंडा
पाणीमां गूंगळावी नांखुं, मूंझवी नांखुं. परंतु मुनिराज तो चिदानंद ज्ञातानुं चोसलुं जुदुं पाडीने, रागनो अंश
हतो तेने तोडीने, वीतरागता करी केवळज्ञान पामी मुक्तिने पाम्या; अने उपसर्ग देनारा देवे रौद्र ध्यानना भूंडा
परिणाम कर्यां तेथी अशुभ कर्म बांधी दुर्गतिमां जाय. कोईने एम थाय के देवमां बहु सुख हशे, परंतु देवमां पण
राग–द्वेष ने ईर्षाना बधा भावो पड्या छे. सुख तो आत्माना स्वभावमां छे, देवमां सुख छे नहि.
सिद्धांत थयो के कोईना परिणाम वगर कोई कोईने बंधावी–मुकावी शकतुं नथी.
अधिकारीपणुं पोतामां आवतुं नथी. माटे बीजानी मुक्ति कराववानी त्रेवड पोतामां नथी. हुं बीजानी मुक्ति
करावी दउं एवो अभिप्राय स्व–परमां एकत्व–बुद्धि थया विना संभवे नहि.