Atmadharma magazine - Ank 081a
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: १९८: आत्मधर्म : द्वितीय अषाढ: २४७६
• अज्ञानी जीव बाह्यसंयोगमां सुख शोधे छे •
आ एकत्व अधिकारनी २९मी गाथा छे; तेमां श्री पद्मनंदी आचार्यदेव कहे छे के अनुकूळ–प्रतिकूळ
संयोगोनो संबंध थवा छतां धर्मी महात्माओने राग–द्वेष त्याजय छे. अने अज्ञानी जीव तो अनुकूळ–प्रतिकूळ
प्रसंगना संबंध वगर पण राग–द्वेष करे छे. धर्मी जीवनी द्रष्टि पोताना एकत्व चैतन्यस्वभावमां ठरी छे, तेथी
कोई पण संयोगने ईष्ट के अनिष्ट मानीने तेमने राग–द्वेष थता नथी. अने अज्ञानी जीवने एकत्वस्वभाव
उपर द्रष्टि नथी पण संयोग उपर ज द्रष्टि छे तेथी बाह्यमां अनुकूळ–प्रतिकूळ संयोग न होय तोपण परमां ईष्ट–
अनिष्टपणानी कल्पना करीने ते राग–द्वेष करे छे. ज्ञानीने स्वभावबुद्धि छे ने अज्ञानी ने संयोगबुद्धि छे ते वात
आचार्यदेवे समजावी छे. स्वभावबुद्धिमां ज्ञानीने राग–द्वेषनी उत्पत्ति थती नथी, ने संयोगबुद्धिमां अज्ञानीने
राग–द्वेष टळता नथी.
आत्माना पोताना स्वभावमां सुख छे, तेने भूलीने अज्ञानी जीव संयोगमां गोते छे. जेम कस्तूरीमृगने
पोतानी डूंटीमां ज सुगंध भरी छे पण तेने पोतानो विश्वास नथी तेथी बहारमांथी सुगंध शोधवा माटे भटके छे,
तेम सिद्धभगवान जे सुखने पाम्या ते सुख आत्माना स्वभावमां ज छे, पण अज्ञानीने पोताना आत्माना
महिमानो विश्वास बेसतो नथी, तेथी बाह्य संयोगमांथी सुख लेवा मांगे छे. परंतु बहारना कोई संयोगोमां
आत्मानुं सुख नथी. धर्मी जीवनी द्रष्टि संयोगमांथी सुख शोधवानी नथी, पोताना सहज ज्ञान–स्वभावमां ज
सुख छे एनुं तेने भान छे, तेमज सिद्ध भगवान जेवा अंशे सुखनो अनुभव तेने थयो छे. आत्मा शरीर–मन–
वाणी वगेरे परसंयोग रहित पोते सुख–आनंद ने ज्ञानस्वरूप छे, राग ते आत्मानुं कायमी स्वरूप नथी. आम
अंतरमां आत्मानुं भान थतां रागरहित शांति प्रगटे छे, ते ज धर्म छे. धर्म अने सुख कांई जुदा नथी. धर्म
अत्यारे करे अने तेनुं सुख भविष्यमां मळे–एम नथी, पण जे क्षणे धर्म करे ते क्षणे ज आत्मामां सुख प्रगटे छे.
लोको सुखने ईच्छे छे पण सुखना कारणने तेओ आदरता नथी; अने दुःखने जरा पण ईच्छता नथी
पण तेना कारणमां सदा लाग्या रहे छे. लोको सुखी थवा मांगे छे, परंतु सुखी थवानो उपाय तो आत्मानी
साची समजण करवी ते छे, तेने तेओ समजता नथी अने लक्ष्मी वगेरेमां सुख मानीने ते माटे चोवीसे कलाक
झांवा नांखे छे, अने बहु तो पुण्यने सुखनुं कारण मानीने त्यां अटकी जाय छे. सच्चिदानंदमूर्ति आत्मानुं भान
अनंतकाळमां एक सेकंड पण कर्युं नथी. पोताना स्वभावमां सुख छे पण तेनो विश्वास नथी अने परमां सुख छे
एम मान्युं छे तेथी जगत सुख माटे पैसा–आबरू–स्त्री वगेरे बहारमां झांवा नांखे छे. आत्माना स्वभावमां
सुख छे पण तेने न जाणतां अज्ञानीनी द्रष्टि संयोग उपर छे; एटले के मारामां सुख नथी अने संयोगमां मारुं
सुख छे–एवी ऊंधी मान्यता छे, ते ऊंधी मान्यता ज तेने महा दुःखनुं कारण छे. धर्मी जीव समजे छे के संयोग
ते हुं नथी, तेमां मारुं सुख नथी. मारा असंयोगी–एकत्व चैतन्यस्वभावमां ज सुख छे.
आत्मा अनादिअनंत वस्तु छे; तेने कदी कोईए नवो बनाव्यो नथी तेम ज तेनो कदी नाश थई जतो
नथी. आत्मा सदाय ज्ञानस्वरूपी छे. जेम मीठुं खारुं छे, साकर मीठी छे, खडी धोळी छे, कोलसो काळो छे, तेम
आत्मा ज्ञानस्वरूप वस्तु छे. आत्मवस्तुनो शुं स्वभाव छे ते कदी जाण्यो नथी. आत्मानो परथी भिन्न केवो
स्वभाव छे तेनी साची समजण ते सुखनुं कारण छे अने मिथ्या समजण ते दुःखनुं कारण छे. लोको दुःख टाळीने
सुखी थवा मांगे छे परंतु ऊंधी समजण टाळीने साची समजण करता नथी. ए उपाय कर्या विना दुःख टळीने
सुख क्यांथी थाय? जेनो जे रस्तो होय ते रस्तो लेवो जोईए. भावनगर जवुं होय अने भावनगर पूर्व
दिशामां होय, तेने बदले पश्चिम तरफ चालवा मांडे तो भावनगर आवे नहि. भावनगरना रस्ते ज भावनगर
आवे. तेम जीवोने सुख जोईए छीए. ते सुख तो आत्मामां छे, आत्मानी समजणना रस्ते सुख थाय. पण
आत्माने छोडीने बहारना रस्ते कदी सुख थाय नहीं.
दरेक आत्मा सुख लेवा ईच्छे छे. अज्ञानभावे परने दुःखी करीने पण पोते सुख लेवा मांगे छे. बधी