Atmadharma magazine - Ank 081a
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 3 of 21

background image
: १८२ : आत्मधर्म : द्वितीय अषाढ : २४७६
श्री शंत्रुजय सिद्धक्षेत्रनी यात्रा
सौराष्ट्रमां ठेरठेर विहार अने धर्मप्रभावना करीने पाछा फरतां पू. गुरुदेवश्री श्री शंत्रुजय सिद्धक्षेत्रनी
यात्राए पधार्या हता. अने प्रथम अषाड सुद ४ ना दिवसे मुमुक्षुसंघ सहित ए पवित्र सिद्धक्षेत्रनी यात्रा करी
हती. संघमां गामेगामना अनेक मुमुक्षुओ पधार्या हता अने संघसहित महान उल्लासथी यात्रा थई हती.
श्री शत्रुंजय पर्वत उपर युधिष्ठिर, भीम अने अर्जुन ए त्रण पांडवो तथा बीजा आठ करोड
संतमुनिवरो मुक्ति पाम्या छे. पांच पांडवोने वैराग्य थतां श्री नेमिनाथ भगवान पासे दीक्षा लईने मुनि थाय
छे, अने शत्रुंजय पर्वत उपर आवीने ध्यानस्थ छे. ते वखते दुर्योधननो भाणेज वैरबुद्धिथी आवीने तेओने
धगधगता लोढाना दागीना पहेरावे छे, तेथी तेमनुं शरीर बळी जाय छे. ते वखते युधिष्ठिर, भीम अने
अर्जुन–ए त्रण मुनिवरो तो अंतकृत केवळी थईने मुक्ति पामे छे अने देवो तेमना ज्ञान तथा निर्वाण
कल्याणकने ऊजवे छे. नकुल तथा सहदेव–आ बे मुनिराज सर्वार्थसिद्धि वैमानमां उपजे छे. आ रीते शंत्रुजय
सिद्धक्षेत्र ते पांडवोनुं मुक्तिधाम छे. ए पर्वत उपर पांडवोए शांतिथी उपसर्ग सहन कर्यो हतो. आजे ए
सिद्धक्षेत्र उपर श्री शांतिनाथ भगवाननुं जिनमंदिर छे, तेम ज पालीताणा शहेरमां पण श्री शांतिनाथ
भगवाननुं जिनमंदिर छे.
अषाड सुद ४ ना दिवसे भकितपूर्वक ए गिरिराजनी यात्रा थई हती. उपरना मंदिरमां लगभग दोढ
कलाक सुधि आध्यात्मिक भावभरेली भकित तेमज पूजनादि खूब उत्साहथी करवामां आव्यन हता. अने अषढ
सुद ५ ना दिवसे शहेरना जिनमंदिरे भक्ति राखवामां आवी हती.
अनंतानुबंधी
कषाय

(१) आत्माना पवित्र स्वरूपनो अणगमो अने विकारनी रुचि ते अनंतानुबंधी क्रोधकषाय छे.
(२) पुण्यवडे अने परवस्तुवडे आत्मानी मोटाई मानवी–एवी जे परमां अहंबुद्धि ते अनंतानुबंधी
मानकषाय छे.
(३) आत्माना सहज स्वभावनो सरळ मार्ग छे तेने न मानतां, आडाई–वक्रता करीने ‘पुण्य के
शरीरनी क्रिया करतां करतां धर्म थशे’ एम मानवुं ते अनंतानुबंधी मायाकषाय छे. अथवा, स्वभाव समजी
शकाय तेवो सरळ होवा छतां ‘स्वभाव समजवो कठण छे’ एम मानीने स्वभाव समजवामां आड मारवी ते
अनंतानुबंधी मायाकषाय छे.
(४) अने पुण्यभावने तथा परवस्तुने पोतानां मानीने तेने ग्रहण करवानी बुद्धि ते अनंतानुबंधी
लोभकषाय छे. मिथ्यात्व पूर्वकना आवा कषायभाव ते बंधननुं मुख्य कारण छे. परथी अने विकारथी जुदा
शुद्धात्मानी साची ओळखाण थतां आवा अनंतानुबंधी क्रोधादि कषाय जाय छे.
–नियमसार प्रवचनो.
ब्रह्मचर्य – प्रतिज्ञा
प्रथम अषाड सुद ६ ना रोज पू. गुरुदेवश्री सोनगढ पधार्या ते दिवसे बपोरे राणपुरना भाईश्री
पोपटलाल वलमजी खत्री तथा तेमना धर्मपत्नी मणीबेन–ए बंनेए सजोडे आजीवन ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा पू.
गुरुदेवश्री पासे अंगीकार करी छे. आ माटे तेमने धन्यवाद!