केवा हशे पांडव मुनिराज अहो एने वंदन लाल...
केवा हशे कोटि मुनिराज अहो एने वंदन लाल...
राजपाट त्यागी वसे अघोर जंगलमां... (२)
जेणे छोड्यो स्नेहीओनो साथ... अहो एने वंदन लाल...
–जेणे छोड्यो जादवकुळनो साथ... अहो एने वंदन लाल...
राजपाट त्यागी वसे अघोर जंगलमां... (२)
जेणे छोड्यो वासुदेव–बळदेवनो साथ... अहो एने वंदन लाल...
जेणे कर्यो वन जंगलमां (–पर्वतमां) वास... अहो एने वंदन लाल...
त्रिलोकीनाथ एवा नेमिनाथ देवना... (२)
चरणमां कर्यो जेणे निवास... अहो एने वंदन लाल...
शत्रु के मित्र नहि कोई एना ध्यानमां... (२)
वसे ए स्वरूप–आवास... अहो एने वंदन लाल...
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रना ए घारक... (२)
करे कर्मोने बाळीने खाख... अहो एने वंदन लाल...
प्रमत्त–अप्रमत्त भावमां ए झूलता... (२)
आत्मआनंदमां रमनार... अहो एने वंदन लाल...
ज्ञानमां विचरता ने देश–परदेश फरता... (२)
प्रकाशे अणमुलो मुक्ति मार्ग... अहो एने वंदन लाल...
राग के द्वेष नहि कोई एना ध्यानमां... (२)
मात्र करे आत्मा केरुं ध्यान... अहो एने वंदन लाल...
मात्र करे आत्मानुं कल्याण... अहो एने वंदन लाल...
धन्य आ देशने ज्यां टोळे टोळां मुनिराजना... (२)
दर्शन करतां जाय भव आताप... अहो एने वंदन लाल...
राजपाट त्यागी वस्या उन्नत पर्वतमां... (२)
जेणे छोड्यो जादवकुळनो साथ... अहो एने वंदन लाल...
परिषहोमां जेणे उपेक्षा करीने... (२)
जलदी कर्यो सिद्धिमां निवास... अहो एने वंदन लाल...
गुरुराजे देखाडया मुनिओनां धाम आ... (२)