स्त्रीने मरती बचावी शकतो नथी, ईच्छाथी लक्ष्मी मेळवी शकतो नथी, माटे ईच्छा परपदार्थमां कांई करी शकती
नथी. ईच्छानुं कार्यक्षेत्र परमां बिलकुल नथी. छतां हुं परनुं करी दउं एवी मान्यताने लीधे ते स्वनी प्रीति तरफ
वळतो नथी.
माने छे; तेथी भिन्न चैतन्य ज्ञाताने भूलीने परनी अने पोतानी एकत्वबुद्धिने लीधे जीव दुःखी छे. जीव परनी
रुचिमां अटक्यो छे ने स्वनी रुचि करतो नथी तेथी ज संसार छे.
भूलीने, ते क्षणिक विकार जेटलो पोताने मानीने अज्ञानी तेनी रुचि करे छे; अनंतकाळमां एक सेंकड पण
निर्विकार ज्ञानस्वरूप आत्माने ओळखीने तेनी रुचि करी नथी. जेम डुंगर उपर वीजळी पडे अने तेना टुकडे
टुकडा थई जाय पछी ते फरी संधाय नहि, तेम जो एकवार पण आत्मानुं भान प्रगट करीने अज्ञानने टाळे तो
ते जीवनी मुक्ति थाय ने तेने फरीथी अवतार रहे नहि.
धंधा वगेरेनी अशुभ लागणी हती, ते पलटीने शुभ लागणी थई, वळी ते शुभ लागणी पलटीने अशुभ थई
जशे. ए प्रमाणे ते शुभ अने अशुभ लागणीओ कृत्रिम नवी नवी थया करे छे, ते कोई लागणीओ आत्मा
साथे कायम रहेती नथी, माटे ते आत्माना कायमी स्वरूपनी चीज नथी, पण आत्माना स्वरूपथी भिन्न छे.
शुभ–अशुभ विकाररहित शुद्ध चैतन्यस्वरूप आत्मा केवो छे तेनी अनंतकाळमां एक सेकंड पण रुचि करी नथी.
अभिमानथी अनादिथी रखडे छे. अहीं आचार्यदेव कहे छे के ज्ञानस्वभावी आत्माने ओळखीने तेनी प्रीति
करवी ते ज उत्तम सुखनो उपाय छे. ‘हुं आने बचावुं’ एवा रागभावथी वहाला कुटुंबी जनोने बचावी शकातां
आत्मानो स्वभाव नथी तेम ज तेने लीधे परमां कांई थतुं नथी. आत्माना ज्ञानसहित परमां जेम थाय तेम
जाणे–एवो आत्मानो ज्ञानस्वभाव छे, पण तेमां कांई फेरफार करे एवी ताकात आत्मामां नथी. कोई मरे के
बचे, वस्तु आवे के जाय–ते बधुं ते ते वस्तुओमां तेनो चालु वर्तमान काळ छे. वस्तुनुं वर्तमान ते त्रिकाळी
वस्तुना कारणे ज थाय छे; छतां मारे कारणे तेनुं वर्तमान थाय एम अज्ञानी माने छे ते भ्रांति छे. कोई पण
वस्तु वर्तमान वगर होय नहि, वर्तमान कहो के कार्य कहो के अवस्था कहो. दरेक वस्तुनुं वर्तमान कार्य
स्वतंत्रपणे थया ज करे छे. हुं ज्ञाता छुं ने ते मारुं ज्ञेय छे, ज्ञातानुं कार्य परमां नथी. –आ वात एक समय पण
यथार्थपणे मानी नथी.
पर होय तो आत्मामां कांईक थाय, ने आत्मा होय तो शरीरादि परमां कांईक थाय ए मान्यता मिथ्या छे.
बदलवा माटे तेने बीजानी जरूर पडे. आवुं स्वतंत्रपणुं समज्या सिवाय बीजो कोई शांतिनो उपाय नथी.