आत्मानी प्रीति थाय नहि. देह अने आत्माने भिन्न जाणीने तारी रुचिनी दिशा पलटी नांख, देहनी रुचि
छोडीने ज्ञानस्वभावी आत्मानी रुचिकर. तारी रुचिनी दिशा पलटातां तारी दशा फरी जशे. ज्ञानस्वभावे तुं
परिपूर्ण छे, तारे परनी मददनी जरूर नथी, ने परने तारी मददनी जरूर नथी.
छे. वस्तुनुं बदलवुं तेना पोताथी होय के परथी होय? वस्तुनुं बदलवुं जो परथी कहो तो ते वस्तु स्वतंत्र
साबित थती नथी. आ वात समज्या वगर जीव परथी लाभ–नुकसान माने छे, ते जे कांई भाव करे ते बधो
अधर्म–भाव छे. ज्यां सुधी परथी भिन्न चैतन्यनी प्रीति करे नहि त्यां सुधी धर्मभाव प्रगटे नहि.
बीजाने शुं करे? आत्मा तो पुस्तकने ऊंचुं न करे, परंतु हाथ पण पुस्तकने ऊंचुं करतो नथी. हाथ अने
पुस्तकनो एक बीजामां अन्योन्य अभाव छे, तो ते एकबीजाने शुं करे? एक द्रव्यनो बीजा द्रव्यमां अत्यंत
अभाव छे. एक आत्मा जगतना बीजा बधा आत्माओ अने जड वस्तुओना अभावथी ज टकेलो छे. तेम ज
जगतनो एकेक रजकण पण बीजा अनंता पदार्थोना अभावथी ज टकेलो छे. पोताना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावरूप
स्वचतुष्टयथी दरेक पदार्थसत् छे, ने परना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावनो तेनामां अभाव छे. जो परनो तेनामां
अभाव न होय तो वस्तु पोताना स्वरूपे टकी शके नहि. दरेक पदार्थ परना अभावथी ने पोताना स्वभावथी
टकी रह्यो छे, ने दरेक समये तेनी अवस्था–तेनुं वर्तमान कार्य –ते पदार्थने पोताने आधीन थया करे छे.
अशुद्धता टळतां जडकर्मो स्वयं टळी जाय छे, आत्मा तेने टाळतो नथी. आत्माए कर्म टाळ्यां एम कहेवुं ते फकत
निमित्तनुं कथन छे. निर्जरा एटले आत्मानी शुद्धि; ते क्यारे प्रगटे? तेनी वात आ गाथामां करी छे के
ज्ञानस्वभाव छे ते ज आत्मा छे एम जाणीने तेनी प्रीति कर, तेमां लीन था, एम करवाथी तने उत्तम सुख
थशे. उत्तम सुख कहो के आत्मानी शुद्धता कहो.
नथी. ‘पापथी तो दुःख थाय परंतु पुण्यथी सुख अने धर्म थाय’ –आम अज्ञानी माने छे, पण ते मान्यता
मिथ्या छे. पापनी जेम पुण्य पण विकार छे–आस्रव छे–दुःखरूप छे, तेनाथी धर्म थतो नथी. आत्मानो स्वभाव
सहज आनंदरूप छे, पण तेने भूलीने बहारना लक्षे आकुळता ऊभी करी छे. स्वभावनुं भान करतां जे आनंद
प्रगटे छे ते पोताना स्वभावमांथी ज प्रगटे छे, क्यांय बहारना संयोगमांथी आवतो नथी. काचा चणामां
स्वभावथी मीठाश भरेली छे ते ज तेने सेकतां प्रगटे छे. रेती, अग्नि के कडाया वगेरेमांथी ते मीठाश आवी
नथी, पण चणामांथी ज आवी छे. चणाना स्वभावमां रेती वगेरे संयोगनो अभाव छे. परमाणुनी अवस्थानो
एक बीजामां अन्योन्य अभाव छे, ने चैतन्यनी अवस्थानो जडमां अत्यंत अभाव छे. चणानो मीठो स्वभाव
ध्रुव छे तेना आधारे तूराशनो व्यय थईने मीठाशनी उत्पत्ति थई छे, ते प्राप्तनी प्राप्ति छे. वस्तुमां जे स्वभाव
न होय तेमांथी आवे नहि. स्वभावमां होय तो अवस्थामां प्रगटे, संयोगमांथी अवस्था प्रगटी नथी. चणानी
मीठास तेना स्वभावमांथी प्रगटी छे, संयोगमांथी प्रगटी नथी. जो लाकडुं, अग्नि वगेरे संयोगमांथी ते मीठाश
आवती होय तो कांकराने सेकतां तेमां पण मीठाश आववी जोईए! पण कांकरामां ते स्वभाव नथी, तेथी तेमां
मीठाश आवती नथी, लोको बाह्य संयोगने जुए छे ने ते संयोगथी कार्य थवानुं माने छे, परंतु पदार्थना
स्वभावथी कार्य थाय छे, ते स्वभावने