Atmadharma magazine - Ank 082
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: २१० : आत्मधर्म–८२ : श्रावण : २००६ :
करवाथी शुं थयुं? आत्मानी ओळखाण वगरना मनुष्य देहनी के व्रतादिनी परमार्थ मार्गमां कांई गणतरी नथी.
आत्मनी ओळखाणने लीधे ज मनुष्यदेहनी उत्तमता कहेवामां आवी छे.
‘आ संसार बहु दुःखथी भरेलो छे. एमांथी ज्ञानीओ तरीने पार पामवा प्रयोजन करे छे. मोक्षने साधी
तेओ अनंत सुखमां बिराजमान थाय छे. ए मोक्ष बीजा कोई देहथी मळनार नथी. देव, तिर्यंच के नरक ए
एकेक गतिथी मोक्ष नथी, मात्र मानवदेहथी मोक्ष छे.’
आ संसार बहु दुःखथी भरेलो छे. अज्ञानभावने लीधे जीव चार गतिमां रखडे छे. देव, मनुष्य, तिर्यंच
अने नरक ए चार गति छे. तेमां मनुष्यदेह अनंतकाळे मळे छे. अने मनुष्य देहमां पण सत्समागम मळवो तो
महा मोंघो छे. मनुष्य भव पामीने पण जीवे पोताना आत्मानी दरकार करी नहि अने बहारमां देह–कुटुंब वगेरे
परनी वातमां रोकाणो, अने मानवजीवन व्यर्थ गूमाव्युं. ‘घरना छोकरा घंटी चाटे ने पाडोशीने आटो’ एनी
जेम पोताना आत्माने समजवानी दरकार करी नहि अने पाडोशी एटले पर वस्तु तेणे जाणवामां तथा तेनुं
अभिमान करवामां रोकाणो. पोताना आत्मानी तो समजण करतो नथी अने परनुं भलुं हुं करी दउं–एम माने
छे. अरे भाई! पर वस्तुमां आत्मानो अधिकार चालतो ज नथी. शरीरमां रोग थाय तेने टाळवानी ईच्छा
होवा छतां ते टळतो नथी, रोग लाववानी ईच्छा न होवा छतां रोग थाय छे. माटे आत्मानी ईच्छा परमां काम
आवती नथी. परथी आत्मा जुदो छे, एटले आत्मा कोई बीजानुं भलुं के बूरुं करी शकतो नथी. छतां परने
पोतानुं मानी तेनी ममता करे छे तेथी जीव दुःखी छे.
जुओ, श्रीमद् राजचंद्र सोळ वर्षनी युवान वयमां तो आखा संसारने दुःखमय वर्णवे छे. आ संसार बहु
दुःखथी भरेलो छे, कोई मोटा राजा होय के शेठीया होय, तेथी तेने सुखी कह्या नथी. शरीरथी भिन्न चैतन्यमूर्ति
आत्मानुं जेने भान नथी अने परनी ममता करे छे ते बधा जीवो आ संसारमां बहु दुःखी छे; राज्य, लक्ष्मी,
स्त्री, पुत्र, आबरू वगेरे होवा छतां परनी ममताने लीधे ते जीव दुःखी ज छे. रोग के निर्धनतानुं दुःख जीवने
नथी, पण अंतरमां पोतानो आत्मा सुखथी भरेलो छे तेनो महिमा करतो नथी, ने परनो महिमा करीने तेनी
ममता करे छे तेथी ज दुःख छे. जीवनो ममत्वभाव ज संसार छे अने तेनुं ज दुःख छे,
पर वस्तुमां संसार के
दुःख नथी. जीव पर भवमां जाय त्यारे शरीरादि परवस्तुओ तो अहीं ज पडी रहे छे, ते जीवनी साथे जती
नथी. जीव पोताना ममता भावने साथे लई जाय छे, ते ममता भाव ज संसार छे.
आ दुःखमय संसारथी तरीने पार थवानुं प्रयोजन ज्ञानी साधे छे अने मोक्षदशा प्रगट करे छे. आत्मानुं
परिपूर्ण सुख मोक्षदशामां प्रगटे छे. आत्माना स्वभावमां सुख भर्युं छे, तेने ओळखीने तेमां एकाग्र थतां
मोक्षदशामां ते सुख परिपूर्ण प्रगट थाय छे. जेम चणामां स्वाद भर्यो छे तेथी तेने शेकतां ते स्वाद प्रगटे छे, ने
पछी तेने वावो तो ते ऊगतो नथी. तेम चैतन्यपिंड आत्मामां सुखस्वभाव भर्यो छे, तेनी श्रद्धा अने
एकाग्रताना जोरे मोक्षदशामां ते सुख प्रगटे छे, अने पछी ते आत्माने अवतार होतो नथी. आवी मोक्षदशा
प्रगटवानो अवसर आ मनुष्यपणामां ज छे. पहेलांं तो मनुष्यदेहमां आत्मानी रुचिथी सत्समागमे
आत्मस्वभावनी ओळखाण करे के हुं शुद्ध छुं, पवित्र छुं, ज्ञान–आनंदथी भरपूर छुं, विकारी भावो थाय छे ते
दुःख छे, ते मारुं स्वरूप नथी. कोई संयोगथी मने सुख–दुःख नथी–ए प्रमाणे भान करीने पछी आत्मामां ठरतां
रागद्वेषनो अभाव थईने मोक्षदशानुं सुख प्रगटे छे. मोक्ष थवानी ताकात आ आत्मामां ज भरी छे. शक्तिपणे
आ आत्मा ज परमात्मा छे.
‘अप्पा सो परमप्पा’ आत्मा ज स्वभावथी परमात्मा छे. तेनुं भान करीने पोते ज
प्रगटरूप परमात्मा थई जाय छे. ते आ मनुष्यभवमां ज थई शके छे. अने एटला माटे ज ज्ञानीओए
मानवदेहने उत्तम कह्यो छे.
दरेक आत्मा, परमात्मा जेवो सच्चिदानंदनी मूर्ति छे. बहारना देहमां फेरफार छे तथा वर्तमान हालतमां
फेरफार छे, पण स्वभावे तो बधा आत्मा प्रभु छे. अपूर्णता कोई आत्मानुं खरुं स्वरूप नथी. जेम सोनाना
१०० लाटा उपर जुदी जुदी जातना वस्त्र वींटया होय पण अंदर सोनुं तो बधामां सरखुं ज छे. तेम दरेक
आत्मा भिन्न भिन्न चैतन्यधातुनो पिंड छे. बाह्यमां नानुं–मोटुं शरीर अने वर्तमान क्षणिक अवस्थामां
अधूराश छे तेने लक्षमां न लेतां त्रिकाळी स्वभावनी