: श्रावण : २००६ : आत्मधर्म–८२ : २११ :
द्रष्टिथी जुओ तो दरेक आत्मानो स्वभाव परिपूर्ण छे. जेटली ताकात सिद्ध परमात्मामां छे तेटली ज ताकात
एकेक आत्मामां छे. पण अज्ञानी जीव तेने भूलीने शरीर अने विकारभाव जेटलो ज पोताने माने छे, तेथी
संसारमां रखडे छे. ज्ञानीओ तो पोताना परिपूर्ण आत्मस्वभावनी ओळखाण करीने तेना आश्रये मोक्ष
पामवानुं साधन करे छे, ने संसारनो पार पामी जाय छे.
आत्मानी ओळखाण करीने मोक्ष पामवानुं साधन आ मनुष्यदेहमां ज छे. ए सिवाय बीजी गतिमां
आत्मानुं भान थई शके छे पण मोक्षदशानुं पूरुं साधन थई शकतुं नथी. पुण्य करे तो स्वर्गमां जाय, ने पाप करे
तो नरकमां जाय तथा माया कपटना भाव करे तो तिर्यंचमां जाय, त्यां कोई कोई जीवो आत्मानुं भान प्रगट करे
छे पण मोक्षदशा प्राप्त थाय एवो पूर्ण पुरुषार्थ त्यां थई शकतो नथी. शरीरना कारणे मोक्षदशा नथी अटकती, पण
त्यां जीवनी पोतानी लायकात ज तेवा प्रकारनी होय छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते मोक्षनो उपाय छे, तेनो
परिपूर्ण प्रयत्न आ मनुष्यभवमां ज थाय छे, एटले मोक्षदशानी प्राप्ति आ मनुष्यभवमां ज थाय छे. आवो
मनुष्यदेह पामीने पण अज्ञानी जीव तेने विषय–भोगमां व्यर्थ गाळे छे. पं. श्री बनारसीदासजी कहे छे के–
ज्यों मतिहीन विवेक विना नर, साजि मतंगज इंधन ढोवै;
कंचन भाजन धूल भरे शठ, मूढ सुधारससों पग धोवै.
बाहित काग उडावन कारण, डार महामणि मूरख रोवै;
त्यों यह दुर्लभ देह ‘बनारसी’ पाय अजान अकारथ खोवै.
(–बनारसी विलास पृ. १९)
जेम कोई मतिहीन अने विवेक वगरनो माणस हाथीने अंबाडी वगेरेथी शणगारीने तेनी पासे लाकडा
उपडावे, तथा मूर्ख माणस सोनाना भाजनमां धूळ भरे अने मूढ जीव सुधारसने पीवाने बदले तेनाथी पग
धूए, तेम अज्ञानी जीव आ दुर्लभ मनुष्यदेह पामीने व्यर्थ गुमावे छे.
कोई माणस उपर राजा प्रसन्न थयो अने तेने एक सोनानी अंबाडीथी शणगारेलो हाथी ईनाममां
आप्यो. पण मूर्ख जीवे ते हाथीनो उपयोग लाकडाना भारा उपडावमां कर्यो. हाथी उपर पोते बेसतो नथी पण
भारा उपडावे छे. तेम मूढ अज्ञानी जीवो आ दुर्लभ मनुष्यदेह पामीने आत्मार्थ साधवाने बदले तेने व्यर्थ खोवे
छे. उत्तम मानव भव पामीने मूढ जीवो पोतानुं आत्महित साधता नथी अने हुं परनुं कल्याण करी दउं–एम
व्यर्थ अभिमान करीने मनुष्यभव हारी जाय छे.
मनुष्यपणुं पामीने घणुं धन भेगुं थाय तेनाथी कांई आत्मानी महत्ता वधी जती नथी अने निर्धनपणुं
होय तेथी कांई आत्मानी महत्ता घटी जती नथी. जेम निर्धन के सधनने जन्म अने मरणनो एक ज मार्ग छे,
तेम धर्मनो अने मोक्षनो मार्ग पण बधा जीवोने माटे एक ज प्रकारनो छे. सधनने धर्म थाय अने निर्धनने न
थाय–एम नथी. केमके सधनपणाथी के निर्धनपणाथी धर्म थतो नथी, पण आत्मानुं भान करे तो धर्म थाय छे.
निर्धन होय के सधन, पण जे आत्मानुं भान करे तेने ज धर्म थाय छे. मात्र मानवदेहथी मोक्ष थाय छे तेथी ते
मानवदेहने उत्तम कहेवाय छे.
‘त्यारे तमे पूछशो के सघळां मानवीनो मोक्ष केम थतो नथी? एनो उत्तर पण हुं कही दउं छुं. जेओ
मानवपणुं समजे छे तेओ संसार शोकने तरी जाय छे. मानवपणुं विद्वानो एने कहे छे के, जेनामां विवेक बुद्धि
उदय पामी होय; ते वडे सत्यासत्यनो निर्णय समजीने परम तत्त्व, उत्तम आचार अने सत्धर्मनुं सेवन करीने
तेओ अनुपम मोक्षने पामे छे.’
मोक्षनुं साधन आ मानवभवमां ज थाय छे, परंतु बधाय मानवोनो मोक्ष थई जतो नथी.
मनुष्यपणामां जेओ विवेक बुद्धि (एटले के स्व–परनुं यथार्थ ज्ञान) प्रगट करीने आत्माने समजे छे तेओनो ज
मोक्ष थाय छे. सत्य अने असत्यनो निर्णय करीने जेओ परम तत्त्वने–एटले के आत्माना शुद्ध स्वभावने समजे
छे, तथा रागद्वेषरहित आत्माना निर्दोष स्वभावमां एकाग्रतारूप जे उत्तम आचार तेनुं पालन करे छे तेओ ज
मोक्ष पामे छे.
‘मनुष्यशरीरना देखाव उपरथी विद्वानो तेने मनुष्य कहेता नथी, परंतु तेना विवेकने लईने कहे छे.’
आत्मानो निर्दोष स्वभाव शुं अने विकार शुं? तेनो जे विवेक करे छे ते ज खरेखर मनुष्य छे. पण हाथ–पग
वगेरेनी आकृति उपरथी खरेखर ज्ञानी मनुष्यपणुं कहेता नथी. जेने स्व–परनो विवेक नथी तेना मानवपणाने