Atmadharma magazine - Ank 082
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २००६ : आत्मधर्म–८२ : २१३ :
वीर सं. २००६ ना फागण सुद १२ ना मंगलदिने राजकोट शहेरमां भगवान श्री सीमंधरप्रभु
वगेरे जिनबिंबोनी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा थई. तेम ज चांदीमां कोतरेला श्री प्रवचनसारजी
शास्त्रनी प्रतिष्ठा थई, ते दिवसे पू. गुरुदेवश्रीनुं समयसार गा. ७२ उपर मंगल–प्रवचन.
(पंचकल्याणक विधानमां निर्वाणकल्याणक पण ए ज दिवसे उजवायो हतो.)
(४९) भगवान शुं करवाथी मोक्ष पाम्या?
आजे भगवाननी प्रतिष्ठानो मांगळिक दिवस छे. पंचकल्याणकमां आजे भगवाननो मोक्षकल्याणक थयो.
श्री सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र उपर चंद्रप्रभ भगवान मोक्ष पाम्या अने देवोए तेमनो निर्वाणकल्याणक उजव्यो, ए
द्रश्य थयुं हतुं. भगवान शुं करवाथी मोक्ष पाम्या? ते वात अत्यारे कहेवाय छे. भगवाने पर जीवोनुं कांई कर्युं
नथी, पण पोताना आत्मामां प्रथम भेदज्ञान प्रगट कर्युं अने तेना प्रतापे केवळज्ञान प्रगट करीने भगवान मोक्ष
पाम्या छे.
(५०) भेदज्ञान ते ज मोक्षनो उपाय छे
भेदज्ञान ते ज मोक्षनो उपाय छे–एम अहीं ७२ मी गाथामां श्री कुंदकुंदाचार्यदेव कहे छे–
आत्मा नित्य ज्ञानानंद पवित्र वस्तु छे, तेनी अवस्थामां पलटो थतां जे शुभ–अशुभ लागणी थाय ते
सेवाळनी जेम अशुचिरूप छे. जेम पाणीमां सेवाळ थाय छे ते पाणीनो स्वभाव नथी पण मेल छे, तेम
आत्मानी अवस्थामां जे पुण्य–पापना भावो थाय छे ते आत्मानो स्वभाव नथी पण मलिनभावो छे–अशुचि
छे. आत्माना ज्ञानस्वभावने अनुभवतां ते पवित्रस्वरूपे अनुभवाय छे अने पाप तेम ज पुण्य ए बंने भावो
आत्मामां मेलपणे अनुभवाय छे. शरीर अशुचिमय छे ते तो आत्माथी सदाय भिन्न, जड छे. आत्मानी
अवस्थामां थती पुण्य–पापनी लागणी ते पण अपवित्र छे, मेल छे, अशुचि छे; अने भगवान आत्मा तो
ज्ञानानंद–मूर्ति पवित्र छे, निर्मळ छे, शुचि छे. आ प्रमाणे आत्मा अने विकारने जुदा जुदा जाणीने, विकारी
भावोथी पाछो फरीने आत्मा पोताना स्वभाव तरफ वळे छे. ए रीते विकारथी निवृत्त थतां आत्माने कर्मनुं
बंधन थतुं नथी. आ रीते आत्मा अने विकारनुं भेदज्ञान ते ज मुक्तिनो उपाय छे.
(५१) श्री आचार्यदेव आत्मानी प्रभुता बतावे छे.
प्रभो! तारो स्वभाव सर्वज्ञ छे. सर्वज्ञभगवान करतां तारी शक्ति कांई ओछी नथी, जेटली शक्ति
सर्वज्ञ–भगवानमां छे तेटली शक्ति तारा स्वभावमां पण भरी छे. ते शक्तिनुं भान करीने तेमां ठर, तो
तारामां पण सर्वज्ञदशा प्रगटे. विकार ते ज हुं–एवी तुच्छबुद्धि ते भवभ्रमणनुं कारण छे. ने विकारथी भिन्न
आत्मस्वभावनुं भान करवुं–ते भेदज्ञान मुक्तिनो उपाय छे. भगवान्! तारो आत्मा सदाय ज्ञानमूर्ति निर्मळ
छे, क्षणिक शुभ–अशुभ लागणी जेटलो तुं नथी. तारी प्रभुता तारामां भरी छे. सर्वज्ञनी वाणीमां पण तारा
स्वभावना गाणां पूरा आवता नथी, एवो तारा स्वभावनो महिमा छे. मूळ सूत्रमां आस्रवोने अशुचिपणे
वर्णव्यो छे, तेमांथी गूलांट मारीने आचार्यदेवे टीकामां आत्माना पवित्र स्वभावनी वात काढी छे. आस्रवो
अशुचि छे, तो तेनी सामे भगवान आत्मा शुचि छे,–एम अस्तिनास्तिथी वर्णन कर्युं छे. पुण्य अने पाप ए
बंने भावो आस्रव छे; ते आस्रवो तो मलिन स्वभाववाळा छे ने भगवान आत्मा तो सदाय पवित्र
स्वभाववाळो छे.–एम अहीं आचार्यदेव आत्मानी प्रभुता बतावी विकारथी भेदज्ञान करावे छे.
(५२) मुक्तिनो उपाय भेदज्ञान
विकार छे ते आत्मानी पर्यायमां थाय छे खरो, आत्मानी पर्यायमां विकार छे ज नहि–एम नथी; परंतु
ते क्षणिक विकारभावने ज आत्मानुं स्वरूप मानी लेवुं ते अज्ञान छे. जेम सेवाळ अने पाणीने एक मानीने
कोई सेवाळवाळुं पाणी पीए तो ते मूर्ख गणाय.