Atmadharma magazine - Ank 082
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: २०८ : आत्मधर्म–८२ : श्रावण : २००६ :
तो तेने कहे छे के भाई! तेमां संतोष मानवो छोडीने तुं आत्मामां ज संतुष्ट था. ज्ञानस्वभाव छे ते ज कल्याण
छे–एम निश्चय कर्या वगर कदी आत्मामां संतोष थशे ज नहि. जे देहनी क्रिया अने विकारनी रुचिमां धर्म
मानीने, तेमां संतोषाई गयो छे ने तेथी आगळ खसतो नथी तेने आचार्यदेव कहे छे के ज्ञानमात्रथी–एटले
एकला आत्माथी ज सदाय तुं संतुष्ट था, तेमां ज कल्याण छे. जेटलुं ज्ञान छे तेटलुं ज सत्य कल्याण छे–एम
जेणे नक्की कर्युं ते तेमां ज संतुष्ट थाय छे, पुण्य–पाप विकल्प आवे पण तेनाथी ते संतुष्ट थतो नथी.
‘तुं आत्मानी रुचि करीने तेमां संतुष्ट था’–एम कह्युं, तो पूर्वे तेवुं करनारा थई गया छे, वर्तमानमां छे,
ने भविष्यमां थशे. तेमां जे पूर्ण सर्वज्ञ थया ते देव छे, ते पूर्णताने साधी रहेला गुरु छे, ने तेनुं कथन करनारी
वाणी ते शास्त्र छे. आवुं कहेनारा देव–गुरु–शास्त्र ते ज धर्ममां निमित्तरूप होय. ए सिवाय बीजुं विपरीत कहे
तो ते देव–गुरु–शास्त्र सत्य नथी. तारी पर्याय स्वतंत्र नथी, तुं आत्मानी रुचि नहि करी शके, तने कर्मो नडशे–
आम माननारा तथा कहेनारा बधा मिथ्याद्रष्टि छे. साचा देव–गुरु–शास्त्र अने ते तरफनो राग–एवा निमित्त
अने व्यवहार छे खरा, पण खरेखर तेने निमित्त अने व्यवहार क्यारे कहेवाय? ज्यारे आत्मा तेनी रुचि
छोडीने स्वभावनी रुचि करीने तेमां संतुष्ट थाय त्यारे तेने निमित्त अने व्यवहारनुं खरुं ज्ञान थाय छे, अने
त्यारे ज तेने माटे निमित्त अने व्यवहार एवो आरोप आवे छे. जो निमित्त अने व्यवहारनी रुचि छोडीने
आत्मानी रुचि तरफ न वळे तो तेने माटे निमित्त ते खरेखर निमित्त नथी ने व्यवहार ते खरेखर व्यवहार
नथी. आत्मानी रुचि करीने तेमां संतुष्ट थतां पर तरफनो अमुक विकल्प तो तूटयो अने विकल्पथी जुदो पडीने
पोते जाग्यो, त्यारे ते निमित्तने, ने रागने व्यवहार तरीके जाणे छे. पोते जाण्या वगर रागने व्यवहार तरीके
कोण जाणे? राग तो पोते आंधळो छे, ते कांई व्यवहारने के निश्चयने जाणतो नथी.
‘तुं आत्मानी प्रीति कर, तेमां संतुष्ट था ने तेमां ज तृप्त था, तेथी तने उत्तम सुख थशे.’–एम अहीं
कह्युं, एटले एवुं कहेनारा साचा निमित्तनो पण आमां स्वीकार आवी जाय छे, तथा सांभळनार पात्र श्रोता छे
ए वात पण आवी जाय छे, तेने संबोधीने वात करी छे. अहीं तो ‘तुं उत्तम सुखने पामीश ज’ आवुं
कहेनाराने ज निमित्त तरीके लीधा छे. हे भव्य! ‘तने उत्तम सुख थशे’ एवुं कहेनारा अमे निमित्त छीए, तो
तने पण निमित्तने निमित्त कहेवानो अवसर जरूर आवशे अर्थात् तारा उपादानमां उत्तम सुख थशे. तुं पोते
आत्मानी रुचिथी उत्तम सुखने पामीश अने त्यारे तने आवुं कहेनाराने निमित्त कहेवानो वखत आवशे. आम
उपादान निमित्तनी संधि वर्ते छे. तने कह्युं के तुं आम कर तेथी उत्तम सुखने पामीश. अने तुं उत्तम सुखने
पामीश त्यारे आवुं कहेनारा अमने निमित्त कहीश. तुं उत्तम सुख पामीश ए ज वात लीधी, ‘नहि पामी शक’
ए वात लीधी नथी.
जुओ, आ आत्माना कल्याणनी वात छे. कल्याण कहो के सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र कहो के मोक्षनो पंथ
कहो; आ ज्ञानमात्र आत्मानी रुचि करवी ने तेमां ठरवुं ते ज कल्याणना पंथ छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते
त्रणे कल्याण छे.
‘अहो! हुं ज्ञानमात्र छुं’–आवी प्रीति करीने तेमां जे संतुष्ट थयो–तृप्त थयो तेने पुण्य–पाप थाय तो
तेमां ते प्रीति करतो नथी, तेमां संतुष्ट थतो नथी. पाप भावमां तो सुख नथी मानतो ने पुण्यमां पण ते सुख
मानतो नथी. तुं आत्मामां संतुष्ट था, तेथी तुं उत्तम सुखने पामीश’ एम अस्तिनी वात लीधी. कर्मप्रकृति टळशे
त्यारे तने सुख थशे–एवी वात न लीधी. केमके तेनी सामे जोवानुं शुं काम छे? कर्म सामे के अमारा सामे
(–निमित्त सामे) जोवाथी तारे शुं प्रयोजन छे? तेनी द्रष्टि छोडीने, तुं तारा आत्मा सामे जोईने तेमां ज प्रीति
पाम, तेमां ज संतुष्ट था. एम करवाथी तारा अंतरमां ज तने अपूर्व उत्तम सुखनो अनुभव थशे. तेमां तारे
कोईने पूछवुं नहि पडे.
सांभळनारने सांभळती वखते श्रवण तरफनो अने निमित्त तरफनो विकल्प छे, पण त्यां तेने रुचि
करावीने ऊभो राखवा मांगता नथी, ते निमित्त अने विकल्प तरफनी रुचि छोडावीने अंतरस्वभावनी रुचिमां
वळवानुं कहे छे. भाई, तुं ज्ञानमात्र छो, तारा आत्माने ज्ञानमात्रपणे लक्षमां ले. ज्ञानमात्र स्वभावमांथी
विकार प्रसवतो नथी, ने विकारमांथी ज्ञानमात्र स्वभाव प्रसवतो नथी, माटे तुं श्रवण तरफना विकल्पथी संतोष
न पाम, पण सदाय ज्ञानस्वभावनी ज प्रीति करजे, ने तेमां ज संतुष्ट ने तृप्त थजे. ए ज कल्याणनो पंथ छे, ए
ज निर्जरा अने उत्तमसुखनो उपाय छे.