Atmadharma magazine - Ank 083
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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* महा पवित्र दश लक्षणी पर्व *
भादरवा सुद पांचमथी चौदस सुधीना दस दिवसोने ‘दस लक्षणी पर्व’ कहेवाय छे. सनातन
जैनशासनमां एने ज पर्युषण पर्व कहे छे. शास्त्रोमां तो दसलक्षणी पर्व वर्षमां त्रण वार आववानुं वर्णन छे,
परंतु वर्तमानमां भादरवा मासमां ज तेनी प्रसिद्धि छे. वीतरागी जिनशासनमां आ धार्मिकपर्वनो अपार
महिमा छे.
जैनशासननुं आ पवित्र पर्व अनादिकाळथी छे. आ पर्व संबंधी इतिहास आ प्रमाणे छेः दरेक काळमां
अवसर्पिणी काळनो पांचमो आरो पूर्ण थतां छठ्ठा आरानो प्रारंभ थाय छे अने लोको अनार्यवृत्तिवाळा, हिंसक अने
मांसाहारी थई जाय छे. त्यार पछी उत्सर्पिणीकाळना प्रारंभमां × अषाड वदी १ थी शरू करीने ४९ दिवसो सुधी
अमुक प्रकारनो वरसाद, पवन आवे छे अने फळ–फूलादि पाके छे. ते देखीने लोकोना मनमां आर्यबुद्धि पेदा थाय छे
अने त्यारथी तेओ मांसाहार वगेरे हिंसक वृत्तिओने छोडीने ते फळ–फूलथी जीवननिर्वाह चलावे छे. ए प्रमाणे
भादरवा सुद पांचमना दिवसे चिरकाळथी चाली आवती अनार्यता अने हिंसकवृत्ति पलटीने लोकोमां आर्यता,
सरळता, क्षमाभाव प्रगट थाय छे; तेथी ते दिवसथी शरू करीने दस दिवस सुधी दस लक्षणी पर्व मानवामां आवे छे.
भादरवा सुद प थी १४ सुधीना दस दिवसोने अनुक्रमे १–उत्तमक्षमा २–मार्दव अर्थात् निरभिमानता ३–
आर्जव अर्थात् सरळता ४–शौच अर्थात् निर्लोभता प–सत्य ६–संयम ७–तप ८–त्याग ९–अकिंचन्य अने
ब्रह्मचर्य धर्मना दिवसो मानवामां आवे छे. अने ए दस दिवसो दरमियान आ दस धर्मोना स्वरूपनुं वर्णन,
तेना माहात्म्यनुं चिंतवन, तेनी प्राप्तिनो अभ्यास तथा भावना करवामां आवे छे.
चारित्र दशामां झुलता मुनिवरोने उत्तम क्षमादि दस प्रकार होय छे. भादरवा सुद प थी १४ सुधीना दस
दिवसोमां आ दस धर्मनी क्रमे क्रमे भावना भाववामां आवे छे, तेथी ते दिवसोने ‘दस लक्षणी पर्व’ कहेवाय छे;
परंतु ए ध्यान राखवुं जोईए के आ भादरवा सुद प वगेरे दिवस ते तो काळद्रव्यनी पर्याय छे, तेनामां कांई
उत्तमक्षमादि धर्म रहेता नथी, परंतु आत्मामां सम्यग्दर्शनपूर्वक वीतरागभाव प्रगट करवो ते ज उत्तमक्षमादि धर्मनुं
पर्व छे, अने ते धर्म आत्मा गमे त्यारे प्रगट करी शके छे. तिथिना आधारे धर्म नथी पण आत्माना आधारे धर्म छे.
पर्व एटले मंगलकाळ, पवित्र अवसर, खरेखर पोताना आत्मस्वभावनी प्रतीतिपूर्वक निर्मळ
वीतरागीदशा प्रगट करवी ते ज आत्मानो मंगळकाळ छे ने ते ज पवित्र अवसर छे. ज्यां एवुं भावपर्व होय
त्यां बाह्य द्रव्य–क्षेत्र–काळने उपचारथी पर्व कहेवाय छे. खरेखर तो आत्माना शुद्धभावमां ज पर्व छे, रागादिमां
के बाह्य पदार्थोमां पर्व नथी–आवुं भेदज्ञान राखीने ज दरेक कथननो भावार्थ समजवो जोईए. पर्वनुं प्रयोजन
आत्माना वीतरागभावनी वृद्धि करवानुं छे.
परंतु, वर्तमानमां घणा लोको तो उत्तमक्षमादि धर्मनुं सत्य स्वरूप शुं छे ते ज नथी जाणता; अने ते
जाणवानी दरकार कर्या वगर मात्र रूढि अनुसार दस दिवसो ऊजवीने पोताने कृतकृत्य मानी ले छे. एटले
आत्माना उत्तमक्षमादि धर्मनुं स्वरूप नहि जाणवाथी ते धर्मनी साची उपासना तेओ करी शकता नथी, अने
आत्मकल्याणथी तो तेओ वंचित ज रहे छे. आत्मानुं स्वरूप समजीने जे पोतामां उत्तमक्षमादि धर्मनी आराधना
प्रगट करे तेणे ज यथार्थ रीते दस लक्षणी पर्व ऊजव्युं कहेवाय.
वीर सं. २४७३ ना दस लक्षणी पर्वना दिवसोमां, श्री पद्मनंदी आचार्यदेवरचित पद्मनंदी–पचीसीमांथी
उत्तमक्षमा वगेरे दस धर्म उपर पू. गुरुदेवश्रीए खास प्रवचनो कर्या हता. ते प्रवचनो ‘दस लक्षणधर्म’ नामना
पुस्तकरूपे प्रसिद्ध थया छे. दस धर्मोनुं यथार्थ स्वरूप अपूर्व रीते तेमां समजाव्युं छे.
दंसण मूलो धम्मो अर्थात्
धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे–एवुं भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवनुं महासूत्र छे; ते सूत्र अनुसार आ उत्तम क्षमादि
दस धर्मोनुं मूळ पण सम्यग्दर्शन ज छे–ए वात आ प्रवचनोमां यथार्थ रीते समजाववामां आवी छे. तथा आ
उत्तमक्षमादि दस धर्मो, जो के मुख्यतः मुनिओना धर्मो छे तोपण गृहस्थ–श्रावकोने पण सम्यग्दर्शनपूर्वक ए
उत्तमक्षमादि धर्मोनी आराधना कई रीते होई शके छे ते पण आ प्रवचनोमां बताव्युं छे.
आत्मार्थी जीवो!
आ दस लक्षणी पर्व दरमियान ‘दसलक्षणीधर्म’ उपरना पू. गुरुदेवश्रीना प्रवचनोनी अवश्य स्वाध्याय
करो, अने ते–द्वारा उत्तम क्षमादि दस धर्मनुं यथार्थ स्वरूप समजीने पोताना आत्मामां तेनी आराधना प्रगट करो.
× जैनशासनना नियम प्रमाणे नूतन युगनो प्रारंभ अने नूतन वर्षनी शरूआत आषाढ वद एकमथी
ज थाय छे.