परंतु वर्तमानमां भादरवा मासमां ज तेनी प्रसिद्धि छे. वीतरागी जिनशासनमां आ धार्मिकपर्वनो अपार
महिमा छे.
मांसाहारी थई जाय छे. त्यार पछी उत्सर्पिणीकाळना प्रारंभमां × अषाड वदी १ थी शरू करीने ४९ दिवसो सुधी
अमुक प्रकारनो वरसाद, पवन आवे छे अने फळ–फूलादि पाके छे. ते देखीने लोकोना मनमां आर्यबुद्धि पेदा थाय छे
अने त्यारथी तेओ मांसाहार वगेरे हिंसक वृत्तिओने छोडीने ते फळ–फूलथी जीवननिर्वाह चलावे छे. ए प्रमाणे
भादरवा सुद पांचमना दिवसे चिरकाळथी चाली आवती अनार्यता अने हिंसकवृत्ति पलटीने लोकोमां आर्यता,
सरळता, क्षमाभाव प्रगट थाय छे; तेथी ते दिवसथी शरू करीने दस दिवस सुधी दस लक्षणी पर्व मानवामां आवे छे.
ब्रह्मचर्य धर्मना दिवसो मानवामां आवे छे. अने ए दस दिवसो दरमियान आ दस धर्मोना स्वरूपनुं वर्णन,
तेना माहात्म्यनुं चिंतवन, तेनी प्राप्तिनो अभ्यास तथा भावना करवामां आवे छे.
परंतु ए ध्यान राखवुं जोईए के आ भादरवा सुद प वगेरे दिवस ते तो काळद्रव्यनी पर्याय छे, तेनामां कांई
उत्तमक्षमादि धर्म रहेता नथी, परंतु आत्मामां सम्यग्दर्शनपूर्वक वीतरागभाव प्रगट करवो ते ज उत्तमक्षमादि धर्मनुं
पर्व छे, अने ते धर्म आत्मा गमे त्यारे प्रगट करी शके छे. तिथिना आधारे धर्म नथी पण आत्माना आधारे धर्म छे.
त्यां बाह्य द्रव्य–क्षेत्र–काळने उपचारथी पर्व कहेवाय छे. खरेखर तो आत्माना शुद्धभावमां ज पर्व छे, रागादिमां
के बाह्य पदार्थोमां पर्व नथी–आवुं भेदज्ञान राखीने ज दरेक कथननो भावार्थ समजवो जोईए. पर्वनुं प्रयोजन
आत्माना वीतरागभावनी वृद्धि करवानुं छे.
आत्माना उत्तमक्षमादि धर्मनुं स्वरूप नहि जाणवाथी ते धर्मनी साची उपासना तेओ करी शकता नथी, अने
आत्मकल्याणथी तो तेओ वंचित ज रहे छे. आत्मानुं स्वरूप समजीने जे पोतामां उत्तमक्षमादि धर्मनी आराधना
प्रगट करे तेणे ज यथार्थ रीते दस लक्षणी पर्व ऊजव्युं कहेवाय.
पुस्तकरूपे प्रसिद्ध थया छे. दस धर्मोनुं यथार्थ स्वरूप अपूर्व रीते तेमां समजाव्युं छे.
दस धर्मोनुं मूळ पण सम्यग्दर्शन ज छे–ए वात आ प्रवचनोमां यथार्थ रीते समजाववामां आवी छे. तथा आ
उत्तमक्षमादि दस धर्मो, जो के मुख्यतः मुनिओना धर्मो छे तोपण गृहस्थ–श्रावकोने पण सम्यग्दर्शनपूर्वक ए
उत्तमक्षमादि धर्मोनी आराधना कई रीते होई शके छे ते पण आ प्रवचनोमां बताव्युं छे.