शुभराग वडे के सोळभावना वडे ते बांधवा मागे तो बंधाती नथी. श्री तीर्थंकर भगवाननो आत्मा
माताना गर्भमां आववानो होय त्यार पहेलां छ महिना अगाउथी देवो मातानी सेवा करवा आवे छे,
अने कहे छे के अहो, रत्नकूखधारिणी माता! आपने धन्य छे, छ महिना पछी आपनी कूखे जगतना
उद्धारक त्रिलोकनाथ तीर्थंकरदेव आववाना छे. आप भगवानना ज माता नथी पण जगतना माता छो.–
इत्यादि प्रकारे भक्ति करे छे तथा माता–पिताने घेर हंमेशां रत्नवर्षा करे छे. छ महिना बाद माताजीने १६
स्वप्नां आवे छे ने भगवाननो जीव तेमनी कूखे आवे छे.–आवा गर्भकल्याणकनो देखाव अहीं
पंचकल्याणकमां आजे थयो. भगवाननो आत्मा सम्यग्दर्शन तेम ज मति–श्रुत अने अवधिज्ञान सहित ज
माताना गर्भमां आवे छे.
आचार्यदेव कहे छे के धर्मी जीव, आत्मा अने आस्रवोनो भेद जाणतो थको विकारनो कर्ता थतो नथी पण
पोताना स्वभावनी द्रष्टिथी सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप निर्मळ परिणामने ज करे छे. अने अधर्मी जीव
आस्रवोने अने आत्माने एकपणे मानीने विकारनो ज कर्ता थाय छे. परद्रव्यनो कर्ता तो ज्ञानी के अज्ञानी
कोई थई शकतो नथी. श्री तीर्थंकर भगवानना आत्माए पर जीवोनुं कांई कर्युं नथी, पण पोताना आत्माने
विकारथी भिन्न जाणीने, आत्मस्वभावना आश्रये सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रभावने ज कर्या छे. अने ए ज
मुक्तिनो उपाय छे
जाणतो नथी तेथी विकारने अने आत्माने एक मानीने ते विकारनो कर्ता थाय छे. पोतानी अवस्था सिवाय
परमां आत्मा कांइ करी शकतो नथी, केम के एक तत्त्वनो बीजा तत्त्वमां अभाव छे, आत्माना स्वभावमां
विकार नथी एटले स्वभावथी आत्मा विकारनो कर्ता नथी. तेम ज आत्मानी अवस्थामां विकार कोई
बीजाए कराव्यो नथी पण स्वयं अपराधथी कर्यो छे. विकारभाव ते ज मारुं कर्म ने हुं तेनो कर्ता–एवी
विकारबुद्बि वाळो जीव अज्ञानी छे. आत्माना शुद्ध चिदानंद ज्ञाता स्वभावमां विकार नथी पण ते स्वभावने
चूकेली द्रष्टिमां अज्ञानी जीव विकारनो कर्ता थाय छे. शरीरादि पर मारुं कार्य अने हुं तेनो कर्ता–एवी परमां
कर्ताकर्मपणानी बुद्धि ते तो अज्ञान छे ज, अने क्षणिक रागादि भावोनो हुं कर्ता ने ते मारुं कार्य–एवी
विकारमां कर्ताकर्मपणानी अज्ञान छे. अज्ञानथी उत्पन्न थयेली विकारना कताकर्मनी प्रवृत्ति अज्ञानीने
अनादिथी चाली आवे छे. अनादिथी विकारना कर्ताकर्मनी जे प्रवृत्ति छे तेनो अभाव केवी रीते थाय? एम
अहीं शिष्यनो प्रश्न छे. श्री आचार्यदेव तेने उत्तर आपे छे के आ जीव ज्यारे पोताना शुद्ध स्वभावने
विकारथी भिन्न जाणे छे त्यारे ते विकारनो कर्ता थतो नथी, एटले विकार अने आत्माना भेदज्ञानथी ज
अनादिनी विकारना कर्ताकर्मनी प्रवृत्ति नाश पामे छे.