वैराग्य–समाचार
सीतापुरवाळा भाईश्री लक्ष्मीचंद खीमचंद शाह, जेमणे मुंबई मुमुक्षुमंडळना फंडमां पोतानी दसेक
हजारनी मूडीमांथी पांचहजार रूा. अर्पण कर्या हता, तेओ मुंबईमां सोमवार ता. २१–८–प० ना रोज स्वर्गवासी
थया छे. आ संबंधमां मुंबईथी आवेल पत्रमां लख्युं छे के–“सीतापुरवाळा लक्ष्मीचंदभाई गई काले बपोरे त्रण
वागे गुजरी गया, तेमणे शनीवारे सवारे आठ वागे ओपरेशन रूममां केन्सरनुं ओपरेशन करवा लई जता
पहेलां परम उपकारी पूज्य गुरुदेवने नमस्कार पत्र लख्यो छे ते आ साथे मोकल्यो छे, तो गुरुदेवना चरणमां
धरजो. (आ पत्र आ साथे छेल्ले छाप्यो छे) ”
“लक्ष्मीचंदभाई गुरुदेवना परिचयमां लांबो वखत नहि रहेवा छतां शास्त्रअध्ययन अने सत्–रुचि
विशेष होवाना कारणे तेमने सत्नो प्रेम छेवट सुधी रह्यो हतो. जो के ओपरेशन बाद वेदना असह्य हती पण
आपणा मुमुक्षुभाईओने जोतां ज ते वेदनाने भूली जता हता. उत्साही आत्मा थोडा परिचयमां पण आ रीते
परिणामने सुधारी शके छे, तेना उपरथी मुमुक्षुओए दाखलो लेवा जेवो छे. आ बधो प्रताप एक गुरुदेवनो ज
छे. आ पंचमकाळमां हळाहळ झेरनी प्ररूपणा थई रही छे तेमां भव्यजीवोने गुरुदेवनो उपदेश अमृततुल्य छे.”
“ओपरेशन पहेलां लक्ष्मीचंदभाईए पोतानी अंतःकरणनी भावनाथी भगवानश्री सीमंधर स्वामी तथा
पू. गुरुदेवनो फोटो तथा समयसार–त्रणेनी इस्पितालमां भक्ति करी हती. लक्ष्मीचंदभाईनी अहींना
मुमुक्षुमंडळमां खोट पडी छे.”
स्व. भाईश्री लक्ष्मीचंदभाईनी उमर मात्र वर्ष ४० लगभग हती. सत्धर्म प्रत्येनो तेमनो उत्साह अने
तेमनी उदारता वगेरे मुमुक्षुओने अनुकरणीय छे. अने आवी अनित्यताना प्रसंग उपरथी आत्मार्थी जीवोए
शरीरादिनी क्षणभंगुरता समजीने सद्वैराग्य प्रगटावी नित्य शरणभूत आत्माना आश्रय तरफ वळवानी
भावना करवी जोईए.
पूज्य गुरुदेवने नमस्कारपत्र
“जेमणे आ पामरपर अपार उपकार कर्यो छे, जेमनी प्रेरणाथी आ पामर जीवने अद्भुत
आत्मलाभ थयो छे तेवा, अनन्य शरण आपनार सद्गुरुदेव पूज्य श्री कानजी स्वामीने अनंतवार
नमस्कार हो. तेमना उपकारनो बदलो आपवा हुं असमर्थ छुं. म्हारा आत्माने विषे अहर्निश शान्ति वर्ते
ए ज प्रार्थना.
ली. दर्शनाभिलाषी
लक्ष्मीचंद खीमचंद शाहना
अत्यंत विनयपूर्वक चरणकमळमां नमस्कार.”
(उपर मुजब पत्र तेमणे पोताना ज हाथे लख्यो हतो.) मुमुक्षु जीवोने वैराग्यनी वृद्धि अर्थे आ वैराग्य
समाचार अहीं आपवामां आव्या छे.
सुधारो
आत्मधर्ममां आपवामां आवतो सुधारो खास अगत्यनो होय ते ज आपवामां आवे छे; माटे
आत्मधर्मना कोई पण अंकमां आवता सुधारा प्रमाणे सुधारी लेवा दरेक वांचकोने विनंति छे.
आत्मधर्म अंक ८२ मां २१६ मा पाने (६१) मां पारानी पांचमी लीटीमां ‘आत्माने तो बीजो ज जाणे
छे.’ एम छपायुं छे तेने बदले ‘आस्रवोने तो बीजो ज जाणे छे.’ एम सुधारीने वांचवुं.
ग्राहकोने सूचना
आत्मधर्म मासिकनी कोई पण प्रकारनी फरियाद अने वी. पी. मनिओर्डर संबंधी व्यवहार नीचेना
सरनामे करवो–
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर सोनगढ (सौराष्ट्र)