थयेली देशनालब्धिना संस्कार छे ते ज सम्यग्ज्ञान पामे छे. माटे ते बाळकना द्रष्टांत उपरथी एम न समजवुं के
मिथ्याद्रष्टिना उपदेशथी कोई जीवने (पूर्वे ज्ञानीनी देशना वगर पण) सम्यग्दर्शन थई जाय.
परिणामो द्वारा सम्यग्ज्ञानथी रहित ज होय छे.
होतुं.’–परंतु आवी शंका करवी पण ठीक नथी, कारण के शास्त्रोमां एवुं कथन आवे छे के एवा मिथ्याद्रष्टि
मुनिओना उपदेशथी अन्य केटलाय भव्यजीवोने सम्यग्दर्शनपूर्वक सम्यग्ज्ञान प्रगट थई जाय छे ×××”
नथी, पण मिथ्याद्रष्टि द्रव्यलिंगीने पण अगियार अंगना ज्ञाननो परलक्षी उघाड होय छे छतां तेनुं ते ज्ञान
मिथ्या ज छे–एटलुं अहीं सिद्ध करवुं छे. माटे आ कथननो अर्थ समजतां पण ए वात समजी लेवी के जे जीवने
पूर्वे ज्ञानी पासेथी मळेली देशनालब्धिना संस्कारनुं बळ होय ते ज सम्यग्ज्ञान पामे छे.
“जैनदर्शन एवुं गंभीर छे के ज्ञानी पुरुषना सीधा संसर्ग वगर कोई जीव तेना रहस्यने पामी शके नहीं.
एही अनादि स्थित’–अनादिथी एवी ज वस्तुस्थिति छे के गुरुगम वगर एटले के देशनालब्धि वगर कोई जीव
धर्म पामी शके नहि. अने ए देशनालब्धि मात्र शास्त्रना वांचनथी के अज्ञानीना उपदेशथी कोई जीव पामी शके
नहि. पण ज्ञानीना उपदेशनुं सीधुं श्रवण करे तो ज देशनालब्धि पामी शके. माटे धर्मना अभिलाषी जीवोए एकवार
तो अवश्य सत्समागम करीने सद्गुरुगमे देशनालब्धि प्राप्त करवी जोईए. ज्ञानी पुरुषना श्रीमुखथी आध्यात्मिक
उपदेशनुं साक्षात् श्रवण करवुं ते ज आत्मार्थीओने कल्याणनुं मुख्य कारण छे. एक वखत तो सत्नी रुचिपूर्वक
चैतन्यमूर्ति ज्ञानीपुरुष पासेथी अवश्य श्रवण करवुं जोईए. एम करवाथी ज आत्मामां सत्नुं परिणमन थाय छे.
उपदेशथी पण देशनालब्धि थई जाय. तेम कहेनाराओए धर्मना साचा निमित्तने पण जाण्युं नथी.
थई जाय छे; त्यां खरेखर ते जीवने वर्तमान द्रव्यलिंगी पासेथी देशनालब्धि मळी नथी पण पूर्वे ज्ञानी पासेथी मळी
छे. जे जीवोने पूर्वे आत्मज्ञानी पासेथी देशनालब्धि प्राप्त थई न होय अने तेना संस्कार न होय तेवा जीवो कदी
पण द्रव्यलिंगीना उपदेशथी सम्यग्द्रष्टि थई शके ज नहि. आम वस्तुस्थिति होवा छतां अज्ञानीना उपदेशथी पण
जेओ देशनालब्धि अने सम्यग्दर्शन थवानुं माने छे तेओ धर्मना सत्य निमित्तनो निषेध करनारा छे; धर्ममां
सत्पुरुषनो उपदेश ज निमित्तरूप होय–एवो जे व्यवहार तेनुं पण ज्ञान तेमने ऊंधुंं छे. माटे मुमुक्षुओए, धर्ममां
निमित्तरूप ज्ञानी पुरुषोनो ज उपदेश होय एम बराबर स्वीकारीने सत्समागमे स्वभाव समजवानो प्रयत्न
करवो.” *
छे. आ माटे तेमने धन्यवाद!