Atmadharma magazine - Ank 083
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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भाद्रपदः २४७६ः २२७ः
थयेली देशनालब्धिना संस्कार छे ते ज सम्यग्ज्ञान पामे छे. माटे ते बाळकना द्रष्टांत उपरथी एम न समजवुं के
मिथ्याद्रष्टिना उपदेशथी कोई जीवने (पूर्वे ज्ञानीनी देशना वगर पण) सम्यग्दर्शन थई जाय.
(११) मोक्षमार्ग प्रकाशकना उपर्युक्त कथन जेवुं ज कथन लाटी संहिताना पांचमा सर्गनी १८–१९ मी
गाथामां छे. त्यां कहे छे के–
‘कोई मुनि मिथ्याद्रष्टि पण होय छे; ते जो के अगियार अंगना पाठी होय छे अने महाव्रतादि क्रियाओनुं
बाह्यरूपथी पूर्णपणे पालन करे छे, तथापि तेने पोताना शुद्ध आत्मानो अनुभव नथी होतो. तेथी ते पोताना
परिणामो द्वारा सम्यग्ज्ञानथी रहित ज होय छे.
।। १८।। अहीं कदाचित् कोई एवी शंका करे के– ‘एवा
मिथ्याद्रष्टि मुनिने जे अगियार अंगनुं ज्ञान होय छे ते केवळ पाठ मात्र होय छे, तेना अर्थोनुं ज्ञान तेने नथी
होतुं.’–परंतु आवी शंका करवी पण ठीक नथी, कारण के शास्त्रोमां एवुं कथन आवे छे के एवा मिथ्याद्रष्टि
मुनिओना उपदेशथी अन्य केटलाय भव्यजीवोने सम्यग्दर्शनपूर्वक सम्यग्ज्ञान प्रगट थई जाय छे ×××”
–ए खास ध्यान राखवुं के द्रव्यलिंगी मिथ्याद्रष्टि मुनिने परलक्षी ज्ञाननो उघाड होय छे ते मिथ्याज्ञान ज
छे–एम अहीं सिद्ध करवुं छे. मोक्षमार्ग प्रकाशकनी जेम अहीं पण देशनालब्धिनुं स्वरूप विचारवानुं प्रयोजन
नथी, पण मिथ्याद्रष्टि द्रव्यलिंगीने पण अगियार अंगना ज्ञाननो परलक्षी उघाड होय छे छतां तेनुं ते ज्ञान
मिथ्या ज छे–एटलुं अहीं सिद्ध करवुं छे. माटे आ कथननो अर्थ समजतां पण ए वात समजी लेवी के जे जीवने
पूर्वे ज्ञानी पासेथी मळेली देशनालब्धिना संस्कारनुं बळ होय ते ज सम्यग्ज्ञान पामे छे.
(१२) आ संबंधी आत्मधर्म अंक ७४ पृ. ३० ब तथा ३१ मां आवी गयुं छे ते अहीं आपवामां आवे छे–
“जैनदर्शन एवुं गंभीर छे के ज्ञानी पुरुषना सीधा संसर्ग वगर कोई जीव तेना रहस्यने पामी शके नहीं.
एथी शास्त्रोमां देशनालब्धिनुं वर्णन आवे छे. श्रीमद् राजचंद्रजीना शब्दोमां कहीए तो ‘पावे नहि गुरुगम विना
एही अनादि स्थित’–अनादिथी एवी ज वस्तुस्थिति छे के गुरुगम वगर एटले के देशनालब्धि वगर कोई जीव
धर्म पामी शके नहि. अने ए देशनालब्धि मात्र शास्त्रना वांचनथी के अज्ञानीना उपदेशथी कोई जीव पामी शके
नहि. पण ज्ञानीना उपदेशनुं सीधुं श्रवण करे तो ज देशनालब्धि पामी शके. माटे धर्मना अभिलाषी जीवोए एकवार
तो अवश्य सत्समागम करीने सद्गुरुगमे देशनालब्धि प्राप्त करवी जोईए. ज्ञानी पुरुषना श्रीमुखथी आध्यात्मिक
उपदेशनुं साक्षात् श्रवण करवुं ते ज आत्मार्थीओने कल्याणनुं मुख्य कारण छे. एक वखत तो सत्नी रुचिपूर्वक
चैतन्यमूर्ति ज्ञानीपुरुष पासेथी अवश्य श्रवण करवुं जोईए. एम करवाथी ज आत्मामां सत्नुं परिणमन थाय छे.
जे जीव सम्यग्द्रष्टि थाय छे ते जीव पांच लब्धिपूर्वक ज थाय छे; तेमां त्रीजी देशनालब्धि छे. देशनालब्धि
ज्ञानीना उपदेशथी थाय छे, अज्ञानीना उपदेशथी कदापि थती नथी. छतां केटलाक जीवो एम कहे छे के अज्ञानीना
उपदेशथी पण देशनालब्धि थई जाय. तेम कहेनाराओए धर्मना साचा निमित्तने पण जाण्युं नथी.
जेणे आत्मज्ञानी गुरु पासेथी प्रथम वस्तुनुं यथार्थ स्वरूप सांभळ्‌युं होय अने ते वखते ते सम्यग्दर्शन न
पाम्यो होय पण ते देशनाना संस्कार रही गया होय, एवो कोई जीव, द्रव्यलिंगीनो उपदेश सांभळीने सम्यग्द्रष्टि
थई जाय छे; त्यां खरेखर ते जीवने वर्तमान द्रव्यलिंगी पासेथी देशनालब्धि मळी नथी पण पूर्वे ज्ञानी पासेथी मळी
छे. जे जीवोने पूर्वे आत्मज्ञानी पासेथी देशनालब्धि प्राप्त थई न होय अने तेना संस्कार न होय तेवा जीवो कदी
पण द्रव्यलिंगीना उपदेशथी सम्यग्द्रष्टि थई शके ज नहि. आम वस्तुस्थिति होवा छतां अज्ञानीना उपदेशथी पण
जेओ देशनालब्धि अने सम्यग्दर्शन थवानुं माने छे तेओ धर्मना सत्य निमित्तनो निषेध करनारा छे; धर्ममां
सत्पुरुषनो उपदेश ज निमित्तरूप होय–एवो जे व्यवहार तेनुं पण ज्ञान तेमने ऊंधुंं छे. माटे मुमुक्षुओए, धर्ममां
निमित्तरूप ज्ञानी पुरुषोनो ज उपदेश होय एम बराबर स्वीकारीने सत्समागमे स्वभाव समजवानो प्रयत्न
करवो.” *
ब्रह्मचर्य – प्रतिज्ञा
सवाई माधवपुर (राजस्थान) ना रहीश भाई श्री घासीलालजी तथा तेमना धर्मपत्नी वसंतीबेन–ए
बंनेए सजोडे, बीजा अषाढ वद १४ ना रोज पू. सद्गुरुदेवश्री पासे आजीवन ब्रह्मचर्य–प्रतिज्ञा अंगीकार करी
छे. आ माटे तेमने धन्यवाद!