Atmadharma magazine - Ank 085
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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कारतक: २४७७ : ११:
अहो, जीवन बधुं विषयकषायमां वीताव्युं, शरीरना चूंथणामां जीवन गाळ्‌युं, ने आत्मानी दरकार कर्या
वगर जीवनने धूळधाणी करी नांख्युं–छतां जो वर्तमानमां ते रुचि फेरवी नांखे ने आत्मानी रुचि करे तो आ
समजाया वगर रहे नहि. आठ–आठ वर्षनी सम्यग्द्रष्टि कुंवरीओ पण पोताना पूर्ण आत्माने आम माने छे के,
अहो! अमे तो चैतन्य छीए, अमारा आत्माने सिद्ध भगवानथी जराय ओछो मानवो अमने पालवतो नथी,
अमे अमारा आत्माने परिपूर्ण ज स्वीकारीए छीए. अंतरस्वभावना अवलोकन तरफ वळतां आठ वर्षनी
बालिकाने पण आवुं आत्मभान थाय छे, माटे अमने आ न समजाय–एम न मानवुं. बधा आत्मा
चैतन्यस्वरूप छे, ने पूरेपुरुं समजी शके एवी ताकात दरेक आत्मामां भरी छे.
आत्मानो जेवो स्वभाव छे तेवो अनुभव कर्या वगर, मात्र आत्मा ज्ञाताद्रष्टा छे–एम मानी लेवाथी
सम्यग्दर्शन नथी; केम के आत्मा ज्ञानमात्र छे एवुं तो नास्तिक सिवाय बीजा बधा मतवाळा माने छे. माटे
श्री सर्वज्ञभगवाननी वाणीमां जेवो आत्मा कह्यो छे तेवो निर्णय करवो जोईए. श्री सर्वज्ञभगवान एक
समयमां त्रणकाळ त्रणलोकने प्रत्यक्ष ज्ञानथी जाणे छे; एवा सर्वज्ञ भगवाने केवडो आत्मा कह्यो छे? जेवा
पोते पूर्ण छे तेवडो ज आत्मा कह्यो छे, तेनाथी अधूरो कह्यो नथी. सर्वज्ञदेवना ज्ञानमां रागरहितपणे बधी
चीजो प्रत्यक्ष भिन्न भिन्न एक साथे जणाय छे; एवा सर्वज्ञ भगवान आत्मानुं स्वरूप अधूरुं के विकारी
बतावे नहि, पण एकेक आत्मा परिपूर्ण छे–एम सर्वज्ञभगवान बतावे छे. आ रीते, आत्मानुं परिपूर्ण
स्वरूप बतावनार श्री सर्वज्ञदेव केवा होय, तेना साधक संतोनी दशा केवी होय, ने तेमनी वाणी केवी होय–
एम साचा देव–गुरु–शास्त्रनी ओळखाण पहेलांं करवी जोईए. सर्वज्ञ भगवान कहे छे के हे भाई, जो तारे
धर्म करवो होय तो तारे तारा आत्माने अपूर्ण के विकारी मानवो पालवशे नहि. जो तुं अपूर्णतावाळो ने
विकारवाळो ज आत्माने मानी लईश तो तारा आत्मामांथी अपूर्णता ने विकार टळशे शी रीते? आत्माने
अपूर्ण मानवाथी अपूर्णता टळे नहि, पण पूर्ण आत्मानी श्रद्धा करवाथी अपूर्णता क्रमेक्रमे टळी जाय छे. दरेक
आत्मा प्रभु छे, पूर्ण सामर्थ्यवाळा छे; अपूर्णता अवस्थामां भले हो, पण सदा अपूर्णता ज रह्या करे ने
पूर्णता प्रगटी ज शके नहि एवो तेनो स्वभाव नथी. पर्यायथी पण परिपूर्ण थवानुं दरेक आत्मानुं स्वरूप छे.
एकेक आत्मा निर्लेप निर्दोष परिपूर्ण परमात्मा छे–एवो भगवाननी वाणीनो पोकार छे. एवा पोताना पूर्ण
आत्माने ओळखीने तेना अनुभवथी ज सम्यग्दर्शन थाय छे अने त्यारे ज धर्मनी शरूआत थाय छे. ए
सिवाय धर्मनी शरूआत थती नथी.
श्री अरिहंत भगवान कहे छे के–अहो! पूर्ण चैतन्यघन स्वभाव उपर द्रष्टि आपीने अंर्तमुख एकाग्र
थतां में केवळज्ञान प्रगट कर्युं छे; दरेक जीवने अंतरमां चैतन्य दरियो छलोछल छलकाई रह्यो छे, तेनी अंतरद्रष्टि
करवी ते सम्यग्दर्शन छे. आखो परिपूर्ण चैतन्य आत्मा छे तेनुं भान कर्या सिवाय व्यवहारथी अर्थात् देव–गुरु–
शास्त्रनी श्रद्धाथी साचुं सम्यक्त्व थतुं नथी.
आ पोतानुं करवा माटे वात छे. परनुं तो कोई करी शकतो नथी, अज्ञानी मात्र अभिमान करीने रखडे
छे. आत्मानुं कल्याण केम थाय तेनी आ वात छे. भाई, तुं तारुं तो कर, तारुं तो सुधार. तारा हित माटे
तारा अंर्तमुख स्वभावमां जो... तारा पूर्ण स्वरूपने द्रष्टिमां ले भाई! आ देह तो क्षणमां छूटी जशे.
अवस्थामां अल्पता होवा छतां, आखा चैतन्यतत्त्वनो स्वीकार करनार अने अल्पतानो निषेध करनार जीव
सम्यग्द्रष्टि छे. अहो, आत्मतत्त्वनी आ वात तो जगतने पहेली समजवा जेवी छे; बीजुं तो भले आवडे के न
आवडे पण आ वात तो समजवा जेवी छे. आ समज्या विना कल्याण थवानुं नथी. आ समजशे तो भवथी
नीवेडा आवशे.
सर्वज्ञ भगवाननी वाणीमां वस्तुस्वरूपनी परिपूर्णता जाहेर करी छे. दरेक आत्मा पोताना स्वभावथी
पूरो परमेश्वर छे, तेने कोई बीजानी मददनी अपेक्षा नथी, तेम ज दरेक जड परमाणु पण तेना स्वभावथी
परिपूर्ण–जडेश्वर भगवान–छे. जड अने चेतन दरेक पदार्थ स्वतंत्र अने परिपूर्ण छे, कोई तत्त्व कोई बीजा
तत्त्वनो आश्रय मांगतुं नथी. –आम समजीने पोताना परिपूर्ण आत्मानी श्रद्धा करवी ते सम्यक्त्व छे.