निश्चय एटले के साचुं सम्यक्त्व कोने कहेवुं? –ते सम्यक्त्व अनंतकाळथी संसारमां रखडनारा अनंत
आत्मानो जेवो स्वभाव छे तेनी समजण करीने तेनुं अंतरमां घोलन करवुं ते ज सम्यग्दर्शननो उपाय छे, ने
ते प्रथम धर्म छे.
प्रतीति करवी ते सम्यग्दर्शन छे. ते सम्यग्दर्शन तो कार्य छे, तेनो उपाय शुं? के स्वभाव तरफनी रुचि करीने
तेनो अंतरविचार करवो ते सम्यग्दर्शननो उपाय छे. शुद्ध आत्मस्वभावनी रुचि अने लक्ष छे ते ज
सम्यग्दर्शननो निश्चय उपाय छे.
जेटलुं ज परिपूर्ण सामर्थ्य छे. अमारी अवस्थामांथी रागादि टळी गया छे केम के ते अमारुं स्वरूप न हतुं, तो
तारी अवस्थामां जे मिथ्यात्व रागादि छे ते तारुं स्वरूप नथी, पण विकाररहित ध्रुव चैतन्यस्वरूप तुं छो;–ए
प्रमाणे तारा परमार्थस्वभावनुं अनुमान करीने तेनी रुचि कर, ते ज सम्यग्दर्शननो उपाय छे. शरीर, मन,
वाणी वगेरे तो जड छे–अजीव छे, ते आत्माथी जुदा छे–एम देखाय छे; अने क्रोधादि विकारी भावो पण नवा
नवा करे तो थाय छे, न करे तो थता नथी–एम अनुभवमां आवे छे. पूर्वे काम–क्रोधादिनी तीव्र विकारी वासना
थई, तेनो वर्तमान ज्ञानमां विचार करतां तेनुं ज्ञान थाय छे पण ते विकारीवासना वर्तमान प्रगट थती नथी,
माटे ते विकारीवासना आत्मानुं खरुं स्वरूप नथी पण ज्ञान ज आत्मानुं स्वरूप छे–एम अनुमान वडे
आत्माना स्वभावने लक्षमां लईने नक्की करवो ते सम्यग्दर्शननुं कारण छे.
वर्तमानमां आवतो नथी; केम के ते चैतन्यनो स्वभाव नथी. आ तीव्र विकारनी मोटी वात करी, ते ज प्रमाणे
बीजा पण पाप के पुण्यना जे विचार आवे ते बीजी क्षणे टळी जाय छे माटे ते मारुं स्वरूप नथी; विकारनुं ज्ञान
करनारो हुं पोते विकार वगरनो ज्ञानस्वरूप छुं–एम पहेलांं अनुमान करवुं जोईए. ते अनुमान पण यथार्थ छे,
तेमां फेर पडे नहि. एवुं स्वभावनुं अनुमान कर्युं ते सम्यग्दर्शननो उपाय छे.
अशरणपणे मरे छे. ध्रुव चैतन्यस्वरूपने जाण्या विना कोनां शरणे शांति राखे? अरे भाई! शुं आवुं ज स्वरूप
हशे? शुं कोई शरणरूप चीज नहि होय! अंतरमां चैतन्यतत्त्व शरणभूत छे तेनुं लक्ष कर.
निर्णय थईने सम्यक्प्रतीति प्रगटे छे. आमां अंतरमां आत्माना विचारनी जे क्रिया छे तेनुं माहात्म्य अज्ञानीने
आवतुं नथी. पहेलांं नवतत्त्वना रागमिश्रित विचार वगर सीधुं एक आत्माना अनुभवमां आवी