Atmadharma magazine - Ank 085
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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कारतक: २४७७ : ३ :
श्री तीर्थंकर भगवानो आदेश
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संसारनी चोरासी लाख योनिमां रखडता भिखारीओने जोईने केवळज्ञानी भगवाने धर्मसभामांथी
आज्ञा करी के, ‘बधा आत्मा प्रभु छे, सिद्धस्वरूप छे’ –एम हे मुनिओ! तमे जगतने संभळावो. ‘तमे पूर्ण छो,
प्रभु छो, तेथी परनी कांई ईच्छा करवी पडे तेवुं तमारुं स्वरूप नथी.’ पर पदार्थनी ईच्छा करवी पडे ते
मागणपणुं छे. झाझुं मागे ते मोटो मागण, थोडुं मागे ते नानो मागण, –एम बधा परवस्तुना नाना–मोटा
मागण छे. (पोताना आत्माने विकार जेटलो तुच्छ अने परनो ओशियाळो मानवो ते भिखारीपणुं छे.).....
एवा जे चोराशीना रखडता भिखारी तेने माटे शाश्वत उद्धारनो उपाय बताववा तीर्थंकर प्रभुए संतोने कह्युं के
‘जगतने कहो के तमे प्रभु छो, तमारी पूर्ण स्वाधीन ताकातनो महिमा संभाळो. अमे तमने तमारी
शुद्धपरिणति साथे लग्न (लीनता) करावीए.’
आ समयसारमां भगवान कुंदकुंदाचार्य आ चोराशीना भिखारीओने बोलावी, तेओना हृदयमां तेओनुं
सिद्धपणुं स्थापे छे के– ‘तमे दरेक आत्मा प्रभु छो, अनंत पुरुषार्थ, अनंत ज्ञान–आनंदस्वरूप छो.’ आवी
आत्मानी प्रभुतानी ने पूर्ण स्वतंत्रतानी वात सांभळतां, जेओ आत्मार्थी छे, पुरुषार्थी छे तेने तो पहेले धड के
पूर्णनी श्रद्धा आवे छे, तथा ते पूर्णनी अपूर्व रुचि लावी विशेष समजवानी होंश बतावे छे अने तेनो विश्वास
करे छे; तेओ तो स्वाधीन स्व–घरमां पेसे छे...
जे जीव ज्ञानी पासेथी सांभळीने ‘हा’ पाडी, आत्मामां निर्णय करी कहेशे के ‘हुं पूर्ण सिद्धसमान
परमात्मा छुं, प्रभु छुं’ तो ते, पूर्ण सिद्धपद शक्तिरूपे छे तेनी निर्मळ परिणति प्रगट करी मुक्तदशा साथे
परिणमशे, अखंड आनंद लेशे. पण जे भिखारीने रखडवानी अनादिनी रुचि छे तेने ज्ञानी संभळावे के
‘आत्मा पुण्य–पाप विनानो प्रभु छे, तेने शुभविकल्पनी मददनी जरूर नथी’, तो ते सांभळी ‘हाय हाय! ए
केम बने?’ एम ते राड नांखे छे...
...पण एकवार तो श्रद्धाथी कहे के ‘पुण्यादि कांई जोईतुं नथी, कारणके सिद्ध परमात्मामां ए कोई
उपाधिनो अंश नथी, अने मारुं स्वरूप पण तेवुं ज छे.’
परने माटे लागणी ऊठे ते पण विकारी भाव छे, मारो स्वभाव नथी–एम अंतरथी एकवार हा पाडवी
जोईए. पण सांभळतां ज जे नकार करे छे–राड नांखे छे तेने संसारमां पुण्यादि पराश्रयनी मीठाश वडे भटकवुं
गोठे छे, मुक्त थवानी वात गोठती नथी; तेथी ते कहे छे के ‘आटला आटला काळनुं अमारुं करेलुं ते बधा उपर
मींडा वळे छे, माटे अमारा पुण्यनुं कर्तव्य राखीने जो वात होय तो कहो’ पण भाई! जे रीते मार्ग होय तेनाथी
विरुद्ध केम कहेवाय? आत्मा तो परथी निराळो चिदानंदस्वरूप छे. पुण्य–पापनी वृत्ति–दया–हिंसानी वृत्ति ते
तारुं स्वरूप नथी. –प्रथम आवो विश्वास कर... आत्माना सिद्धपणानी आ वात सांभळतां जे राड नांखे छे–
नकार करे छे तेने पोतानुं भगवानपणुं मानवुं बेसतुं नथी. चोराशीमां रखडतां भीखाराने ज्ञानीए अनंत
दुःखथी छूटी अनंत सुखनो उपाय बताव्यो, त्यां पहेले घडाके नकार आवे छे, कारणके ते भिखाराने पोतानी
महत्ता, पूर्णतानो विश्वास नथी. अंतरमां सिद्धपणुं रुचतुं नथी–पुरुषार्थ देखातो नथी तेथी ते भविष्यमां अनंत
संसारनो भिखारी रहेवा मांगे छे.
जेटलुं वीर्य पुण्य–पापरूप बंधनभावमां रोकाय छे ते आत्मानो स्वभाव नथी. जेम हिंसा, जूठ, अव्रत
आदि अशुभभावथी पापबंधन छे तेम दया, सत्य, व्रत आदि शुभभावथी पुण्यबंधन छे, धर्म नथी. एकला
आत्माना शुद्धभावथी ज धर्म थाय छे. ––आम पहेली वात सांभळतां ज ऊंधो जीव ककळाट–उकळाट करे छे
अने कहे छे के आमां स्वर्ग के पुण्य पण न रह्युं, अमारे शरूआतमां तो जोईए ज ने? पछी छोडवानुं भले
कहो. पण ज्ञानी कहे छे के श्रद्धामां प्रथमथी ज छोड. हुं सिद्ध जेवो ज छुं, मारे कांई जोईतुं नथी–एम एकवार तो
हा पाड. तुं मोक्षस्वरूप छो एनी एकवार हा पाड. तारा आत्मामां सिद्धपणाने स्थापीने