Atmadharma magazine - Ank 085
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म: ८५
मोक्षनुं पस्तानुं मूक. आचार्यप्रभु मोक्षना मांडवा नांखी तारामां मोक्षपद स्थापे छे... ...जेवा सिद्ध परमात्मा
तेवो ज तुं छो. वर्तमान क्षणिक अपूर्णताने न जोतां, तारा अविनाशी पूर्ण स्वभावने जो. ‘हुं सिद्ध छुं’ एवो
विश्वास अंतरथी लावे अने तेनो महिमा कर्या करे ते सिद्ध परमात्मा थया विना न रहे. पण जेणे पहेलेथी
‘प्रभुपणुं नहि’ एम राड नांखी छे अने ‘पुण्य विना एकलो आत्मा नहि’ एम बेठुं छे ते तो ‘केवळी पासे
रही गयो कोरो’ –क्रियाकांड करी थाक्यो, पुण्यना भावमां अटवाणो. पुण्य तो क्षणिक संयोग आपीने छूटी जशे,
तेमां आत्माने शुं? ‘हुं परथी जुदो छुं, पुण्यादिनी सहाय विना एकलो पूर्ण प्रभु छुं’ ए विश्वासे जेणे अंतरमां
काम लीधुं नहि ते पुण्यादिमां मीठाश मानी बाह्यमां संतोष मानी रोकाणो छे. तेने भगवान चोराशीना
भिखारा कहे छे.
जेने जेनी रुचि तेने तेनी भावनामां हद न होय. पूर्ण, पूर्ण, पूर्ण! तुं अखंडानंद एकलो परमात्मा प्रभु
ज छो. भगवान आचार्य कहे छे के ‘सांभळो! त्रिलोकनाथ तीर्थंकरदेवनो आ हुकम छे के हे जीवो! पूर्णनी रुचि
करो, बेहद स्वभावने स्वतंत्रपणे जाहेर करो. परम कल्याण पोताथी ज पोताना पूर्ण पदने मानवा जाणवाथी
अने तेमां एकाग्र थवाथी ज थाय छे. ’
अहो, अजब वात कही छे! आ वात जेने बेसे तेने कज्यिां कंकास टळी जाय छे. बधा आत्माने सिद्ध
समान प्रभु अने स्वतंत्र जाण्या तेमां विरोध क्यां? जेणे सिद्ध परमात्मा साथे पोतानो मेळ कर्यो एटले
सिद्धसमान पोते छे एम जाण्युं, ते कोनी साथे विरोध करे? सिद्धमां जे नथी ते मारुं स्वरूप नथी अने सिद्धमां
जेवुं छे तेवुं मारुं स्वरूप छे. जेणे आवो परमात्मभाव दीठो तेने, तेनाथी विरुद्ध एवा जे शुभा–शुभ परिणाम
देखवामां आवे तेने काढी नांखवाथी एकलुं पूर्णस्वरूप रहेशे, एटले के ते सिद्ध थशे. जेणे जेणे पोताना पूर्ण
परमात्मपदने ओळखी पोतामां तेनुं स्थापन कर्युं छे ते पुण्य–पापादि बीजानुं स्थापन नहि करे... सिद्ध अमारा
ईष्ट छे, तेमने अमे अमारा आत्मामां स्थापीए छीए. अखंड ज्ञायकरूप निर्मळ निर्विकल्प सिद्धपणुं मारुं स्वरूप
छे, छे ते सदाय रहे छे; ए सिवाय जे कांई शुभ–अशुभरागनी वृत्ति ऊठे ते पर छे. –एम जाणीने, ‘हुं सिद्ध
आत्मा अशरीरी छुं’ एम जेणे आत्मामां सिद्धपणानुं स्थापन कर्युं तेणे पोतामां महा मांगळिक मोक्षनी
शरूआत करी छे.. आत्मा शुद्ध ज्ञाता ज छे; तेमां पूर्ण प्रभुत्व स्थापन कर्या विना बीजो कोई उपाय त्रणकाळ
त्रणलोकमां मुक्ति माटे नथी... अहो! केटली विशाळ द्रष्टि! प्रभुपणुं अने प्रभु थवानो उपाय पोतामां ज छे.
अनुपम मोक्षमार्ग
पुण्य–पाप विकारभावथी रहित मोक्षगतिने कोईनी उपमा मळती नथी. माटे ते पंचमगतिथी विरोधी
भाव एवा पुण्य–पाप अने देहादिनी जे क्रिया तेनाथी मुक्ति न मळे, कारणके पुण्य–पापना भाववडे चार
गतिनुं बंधन थाय छे; जे भाववडे बंधन मळे ते ज भावे मुक्ति न मळे, अने ते वडे मुक्तिना मार्गनी शरूआत
पण न थाय. तथा जे भावे मुक्ति थाय, धर्मनी शरूआत थाय, ते भाववडे किंचित् बंधन न पडे. माटे मोक्षनी
जेम मोक्षना मार्गने पण कोई पुण्यादिनी उपमा नथी; कारणके पुण्य–पापनी मदद विनानो अंतरनो ते मार्ग छे,
बाह्य क्रियाकांडनो ते मार्ग नथी. माटे आत्मस्वभावमां धर्म साधवा माटे शरूआतमां ज, पुण्य–पापनी उपाधि
रहित पराश्रय विनानो स्वतंत्र सिद्ध परमात्मा जेवो स्वभाव ज एक उपादेय छे तेम मानवुं पडशे; ते
स्वभावनी श्रद्धा, तेनी समजण अने ते स्वरूपमां स्थिरता करवारूप अंतरंग क्रिया–ए ज स्वतंत्र उपाय छे–ए
ज मोक्षनो मार्ग छे... मोक्षमार्गने बाह्यनी शुभप्रवृत्ति साथे कांई समानता नथी; माटे मोक्षने तेम ज मोक्षना
मार्गने कोई उपमा आपी शकाती नथी. कारण के मोक्ष अने मोक्षमार्ग–ए बंने स्वरूप आत्माना परिणाम
आत्मामां ज छे; मोक्ष अने मोक्षनो उपाय बंने पराश्रयरहित स्वतंत्र छे.
[जुओ, समयसार प्रवचनो भा–१, पृ. ४८–४९]