Atmadharma magazine - Ank 085
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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कारतक: २४७७ : ७:
() जी जा त् जा ज्ञ जा . : आंख वडे
आत्मा पुस्तकने देखतो नथी पण पोताना ज्ञानवडे ज जाणे छे. आंख तो जड पुद्गलनी रचना छे, ते अचेतन
छे, ते अचेतन आंखवडे आत्मा ज्ञान करतो नथी; तेम ज ते अचेतन आंखनी ऊंची–नीची थवानी क्रिया
चैतन्यना आधारे थती नथी. आंखनी क्रिया भिन्न छे ने ज्ञाननी क्रिया भिन्न छे. ज्ञान आंखना आधारे
जाणवानी क्रिया करतुं नथी, पण पोताना ज्ञानना आधारे ज जाणे छे. पोतानी वर्तमान ज्ञानदशा स्वतंत्रपणे शुं
काम करी रही छे तेनुं जेने भान नथी तेने त्रिकाळी चैतन्यनो अनुभव थईने सम्यग्दर्शन थाय नहीं. पोताना
ज्ञानने स्वतंत्र न मानतां, हुं परना अवलंबने जाणुं छुं–एम जे माने छे तेणे ईन्द्रियोथी आत्माने जुदो जाण्यो
नथी. तेवा मूढ जीवने अहीं समजावे छे के आत्मा रस–रूप वगरनो छे, ते जड ईन्द्रियोवडे जाणतो नथी.
आत्मा ईन्द्रियो वडे जाणतो नथी एटले आत्मा अरस छे–एम समजतां, ईन्द्रियोनी सन्मुखताथी पाछुं
फरीने ज्ञान पोताना आत्मस्वभावनी सन्मुख थाय तेणे खरेखर आत्माने अरस जाण्यो कहेवाय. ईन्द्रियोथी
आत्मा जाणतो नथी एम समजतां ज्ञान पोताना अतीन्द्रिय आत्मस्वभाव तरफ वळे छे.
() जा र् . : नाकना अवलंबने आत्मा गंधने सूंघतो नथी, पण
पोताना चैतन्यना अवलंबनथी ज गंधनुं ज्ञान करे छे. तेने बदले नाक वडे गंधने जाणवानुं मानवुं ते बे
पदार्थोमां एकपणानी मिथ्याबुद्धि छे. अज्ञानी पण नाक वडे जाणतो नथी परंतु हुं नाक वडे गंधने जाणुं छुं–एम
ते भ्रमथी माने छे, एटले ते पोताना ज्ञानने ईन्द्रियो तरफथी खसेडीने स्वभाव तरफ वाळतो नथी–ए ज
अधर्म छे. हुं ईन्द्रियोथी जाणतो नथी एम समजीने पोताना ज्ञानने स्वतरफ वाळीने आत्मामां अभेद करवुं ते
धर्म छे.
() स् जी ि : वळी नाकनी जेम स्पर्शेन्द्रिय वडे आत्मा पदार्थोना स्पर्शने जाणतो
नथी, आत्माना स्वभावमां स्पर्श नथी, स्पर्शथी आत्मा जुदो छे. स्पर्शेन्द्रिय वडे मने टाढा–उना स्पर्शनुं ज्ञान
थाय छे एम जेणे मान्युं तेणे पोताना ज्ञानने त्रिकाळी शक्तिमांथी आवतुं न मान्युं, पण ईन्द्रियमांथी आवतुं
मान्युं. त्रिकाळी सामान्य ज्ञानमांथी ज विशेष कार्य प्रगट थाय छे तेम न मान्युं तेणे चैतन्यना जीवतरने हण्युं
छे, ते चैतन्यनो हिंसक छे, एनुं नाम जीवहिंसा छे ने ते ज महापाप छे. आत्माना असल स्वभावने समज्या
वगर पुण्य अने पाप करीने अनंतवार चारे गतिना भव आत्माए कर्यां छे, पण पुण्य–पाप बंनेथी रहित
ज्ञानस्वभावी त्रिकाळ स्वरूप शुद्ध छे तेनुं भान कदी कर्युं नथी. जो तेनुं भान करे तो अल्पकाळे भवभ्रमणना
नाश थया वगर रहे नहीं.
(९) बहारनी सामग्रीथी के बहारना त्यागथी पुण्य – पाप थतां नथी पण अंदरना परिणामथी ज
. : लोकोने धर्म केम थाय एनी तो खबर नथी, अने पुण्य–पाप शी रीते थाय छे तेनी पण खबर
नथी; बहारना संयोगथी ने बहारमां लेवा–देवानी क्रियाथी पुण्य–पाप माने छे, पण बहारना संयोगथी पुण्य–
पाप नथी, पुण्य–पाप तो आत्माना अंतरंग शुभ–अशुभ परिणामथी छे. जुओ, अनादिकाळथी एकेन्द्रियमां
रहेला जीवने कोई वार एवो शुभभाव थाय छे के त्यांथी नीकळीने सीधो राजाने त्यां अवतरे छे. तेनी पासे
कयां पैसा के आहार हतो? ते जीवने अंदरमां कांईक शुभ परिणाम थया हता तेथी ते मनुष्य थयो.
अनंतकाळथी आत्माने जाण्या विना एकेन्द्रियमां पण एवां पुण्य कर्यां के एक मिनिटमां अबजोनी
पेदाशवाळो राजा थाय. त्यां बाह्य सामग्री नथी पण अंदरना परिणाममां स्वतंत्रपणे पोते शुभभाव करे छे
संसारमां जीवनो अनंतकाळ निगोदमां जाय छे, निगोदमांथी नीकळीने अनंतकाळे मनुष्यपणुं पामे छे. एवुं
दुर्लभ मनुष्यपणुं पामीने जीव जो सत्य तत्त्वनुं आराधन न करे तो पाछो एकेन्द्रियमां जाय छे. सत्सस्वभावनी
आराधनानुं फळ सिद्धपणुं छे, ने विराधनानुं फळ निगोददशा छे. त्यां निगोदमां एकेन्द्रियने पण शुभभाव थाय
छे. त्यां पुण्यभावनुं साधन शुं? बाह्यसाधन कांई नथी पण अंतरमां वीर्यबळने तीव्र संकलेश भावमां न
जोडतां कंईक मंदराग कर्यो तेथी पुण्य थया. माटे बहारनी सामग्रीथी आत्माने पुण्य–पाप थतां नथी.
वळी जो बहारना त्यागथी पुण्य थतां होय तो ते