कुगुरुओने पुण्य–पाप–आस्रव ने बंधतत्त्व तरीके स्वीकारीने तेनो आदर छोडे तेणे ज नवतत्त्वोने मान्यां
कहेवाय. कुगुरुओ ते पुण्य–पाप–आस्रव ने बंधतत्त्वना कर्ता छे तेथी तेमने ते पुण्य–पाप–आस्रव ने बंधतत्त्वमां
जाणवा जोईए. विकारमां धर्म मनावनारा कुगुरुओने जे साचा माने के तेनो आदर करे तेणे आस्रव वगेरे
तत्त्वोने संवर–निर्जरातत्त्वमां मानी लीधा छे, तेणे नवतत्त्वोने जाण्या नथी.
पुण्यने क्षयोपशमभाव माने अने तेने संवर–निर्जरानुं कारण माने तो ते ऊंधी मान्यतानुं महापाप अनंत
संसारनुं कारण छे.
उत्तर:–चैतन्यभगवानने विकारथी लाभ मानवो ते जराक भूल नथी पण मोटो भयंकर गुन्हो छे. मिथ्या
छे. जेम दररोजना करोडो रू. नी पेदाशवाळा राजानो एकनो एक कुंवर होय ने सवारमां राजगादीए बेसवानी
तैयारी थई होय, ते टाणे कोई तेनुं माथुं कापी नांखे तो ते केवो गुन्हो छे? तेम आ चैतन्यराजा अनंतगुणनो
धणी छे, तेमांथी निर्मळदशा प्रगटे तेवो तेनो स्वभाव छे; ते चैतन्यराजानी निर्मळानंद प्रजा–पर्याय प्रगटवाना
काळे, तेने विकारथी लाभ मानीने निर्मळ प्रजा–निर्मळ परिणतिने ऊंधी मान्यताथी रेंसी नांखे छे, ते चैतन्यनो
मोटो गुन्हो छे; ते चैतन्यतत्त्वना विरोधना फळमां नरक–निगोद दशा थाय छे.
ते धर्म छे, मोक्षनुं कारण छे, ते आत्माना आश्रये ज प्रगटे छे. आवा निर्जरातत्त्वने न जाणे ने पुण्यथी निर्जरा
माने अथवा जडनी क्रियाथी के रोटला न खावाथी निर्जरा माने तेने तो व्यवहारे–पर्यायद्रष्टिथी पण नवतत्त्वनी
खबर नथी. निर्जरा तो शुद्धता छे ने पुण्य तो अशुद्धता छे; अशुद्धतावडे शुद्धता थाय नहीं. छतां जे अशुद्धतावडे
अशुद्धता टळवानुं (–पुण्यथी निर्जरा थवानुं–) माने छे तेणे निर्जरा वगेरे तत्त्वोने जाण्यां नथी. नवतत्त्वनां
विल्परहित चैतन्यद्रव्यना भानसहित एकाग्रता वधतां शुद्धता वधे ने अशुद्धता टळे तथा कर्मो खरी जाय ते
निर्जरा छे. जेने आवुं निर्जरातत्त्व प्रगट्युं होय तेने गुरु कहेवाय छे. संवर अने निर्जरा ए बंने आत्मानी
निर्मळपर्यायो छे, ते धर्म छे.
पोते धर्म छे. आ प्रमाणे नवतत्त्वनी अने देव–गुरु–धर्मनी ओळखाण करवी ते व्यवहारश्रद्धा छे. ‘तपथी
निर्जरा थाय’ एम शास्त्रमां आवे छे, त्यां लोको आहार छोड्यो ते तप अने तेनाथी निर्जरा थई–एम
बाह्यद्रष्टिथी मानी ल्ये छे, तेओने तप शुं अने निर्जरा शुं तेनुं भान नथी. तपथी निर्जरा थाय–ए वात साची,
पण ते तपनुं स्वरूप शुं?–बाह्य तपथी निर्जराधर्म थतो नथी, पण अंतरमां चैतन्यस्वरूपनुं भान करीने तेमां
एकाग्र थतां सहेजे ईच्छानो निरोध थई जाय छे ते तप छे, ने तेनाथी निर्जरा थाय छे. सम्यक्पणे चैतन्यनुं
प्रतपन ते तप छे. जेने चैतन्यनुं भान नथी तेने खरो तप होतो नथी. जेओ पुण्यथी के शरीरनी क्रियाथी
संवर–निर्जरा माने छे तेने तो, नवमी ग्रैवेयक जनार अभव्य जीवने जेवी नवतत्त्वनी व्यवहारश्रद्धा अनंतवार
थाय छे तेवी व्यवहारश्रद्धानुं पण ठेकाणुं नथी. जे पुण्यने क्षयोपशमभाव माने अने तेने धर्मनुं कारण माने तेणे
पुण्यतत्त्वने के धर्मतत्त्वने जाण्युं नथी, ने तेने धर्म थतो नथी.