Atmadharma magazine - Ank 086
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर: २४७७ : ३३ :
मोंघो छे. लक्ष्मी चांदलो करवा आवे त्यारे मोढुं धोवा न जवाय, तेम आ सत् समजवानुं अने चैतन्यलक्ष्मी
प्राप्त करवानुं टाणुं आव्युं छे–अपूर्व कल्याण प्रगट करवानुं टाणुं आव्युं छे–ते टाणे ‘पछी करशुं’–एम न होय.
जो आ टाणे दरकार करीने सत् नहि समज तो फरीने आवुं टाणुं क्यारे मळशे? माटे प्रथम नवतत्त्वने जाणवा
जोईए.
वर्णन थई गयुं छे, हवे नवमुं मोक्षतत्त्व छे. अनंतज्ञान अने आनंदमय आत्मानी पूर्ण शुद्ध दशा थाय ते
मोक्षतत्त्व छे. आवा मोक्षतत्त्वने जे ओळखे ते सर्वज्ञदेवने ओळखे, एटले ते कुदेवादिने माने नहीं. जे
कुदेवादिने माने छे तेणे मोक्षतत्त्वने जाण्युं नथी. मोक्ष ते आत्मानी पूर्ण निर्मळ रागरहित दशा छे, ते
मोक्षतत्त्वने जाणतां अरिहंत अने सिद्ध भगवाननी पण प्रतीत थाय छे. हजी तो, अरिहंत भगवान
अजीव वाणीने ग्रहण करे ने पछी सामा जीवनी योग्यता अनुसार ते वाणी छोडे–एम जे केवळी
भगवानने अजीवनुं ग्रहण–त्याग माने तेणे अरिहंतनुं स्वरूप जाण्युं नथी. जेणे अरिहंतनुं स्वरूप नथी
जाण्युं तेणे मोक्षतत्त्वने पण जाण्युं नथी. मोक्षतत्त्वने जाण्या वगर नवतत्त्व जणाय नहीं अने नवतत्त्वने
जाण्या वगर धर्म थाय नहीं.
दरेक आत्मानो स्वभाव शक्तिपणे अनंत केवळज्ञान–दर्शन–सुख अने वीर्यथी परिपूर्ण छे; तेनुं भान
करीने तेमां एकाग्रताथी जेमने अनंत ज्ञान–दर्शन–सुख ने वीर्यरूप अनंत चतुष्टय प्रगट्या ते देव छे, ने तेमने
मोक्षतत्त्व प्रगट्युं छे. एवी मुक्तदशा प्रगट्या पछी जीवने फरीथी कदी अवतार होतो नथी. अज्ञानी जीवो
आत्माना रागरहित स्वभावने जाणता नथी अने मंदकषायरूप शुभरागने ज तेओ धर्म मानी ले छे, ते
शुभरागना फळमां स्वर्गनो भव थाय, त्यां रहेवानी स्थिति घणी लांबी होवाथी अज्ञानीओ तेने ज मोक्ष मानी
ले छे. तेम ज, ते स्वर्गमांथी पाछो बीजे अवतार थाय छे तेथी अज्ञानीओ मोक्ष थया पछी पण अवतार थवानुं
माने छे. जीवनी मुक्ति थई गया पछी फरीथी पण अवतार थवानुं माने तेओ मोक्षतत्त्वने जाणतां नथी, पण
बंधतत्त्वने ज मोक्ष तरीके माने छे. अवतारनुं कारण तो बंधन छे; ते बंधननो एकवार सर्वथा नाश थई गया
पछी फरीथी अवतार थाय नहि. आत्मानी पूर्ण चिदानंद दशा थई गई तेनुं नाम मोक्षदशा छे, ते मोक्षदशा थया
पछी फरीने अवतार अर्थात् संसारपरिभ्रमण होय नहीं. ते मुक्त थयेला परमात्मा कोईने जगतनां काम करवा
माटे मोकलता नथी, तेम ज जगतना जीवोने दुःखी देखीने के भक्तोनो उद्धार करवा माटे पोते पण संसारमां
अवतार धारण करता नथी, केम के तेमने रागादि भावोनो अभाव छे. जगतमां जीवोने दुःखी देखीने भगवान
अवतार धारण करे एम जेओ माने छे तेओ भगवान–मुक्तआत्मा–ने रागी अने परना कर्ता ठरावे छे,
तेओए मुक्तआत्मा ने ओळख्या नथी. पुनर्भवरहित मोक्षतत्त्वने पामेला श्री सिद्ध अने अरिहंत परमात्मा ते
देव छे. तेमने जे न ओळखे तेने तो साचां पुण्य पण होतां नथी.
अक्षर–अविनाशी चैतन्यस्वभावनी पूर्णानंद दशा ते मोक्षतत्त्व छे. ते दशा पाम्या पछी जीवने कोईनी
सेवा करवानुं न होय. पूर्ण ज्ञान–आनंददशाने पामेला अरिहंत परमात्मा शरीरसहित होवा छतां वीतराग छे;
तेमने पूर्ण ज्ञान–आनंद होय छे, तेमने शरीरमां रोग न होय, दवा न होय, क्षुधा न लागे, खोराक न होय, तेम
ज तेओ कोईने वंदन करे नहि. वळी तेमनुं शरीर स्फटिक जेवुं स्वच्छ–परम औदारिक थई जाय ने आकाशमां
५००० धनुष ऊंचे विचरे. आवा अरिहंत परमात्माने जे न माने तेणे तो मोक्षतत्त्वने व्यवहारे पण जाण्युं
नथी. श्री केवळीभगवानने अनंत ज्ञान अने अनंत आनंद प्रगट्यो त्यां चार घातिकर्मो तो क्षय पाम्यां छे ने
चार अघातिकर्मो बाकी रह्यां छे पण ते बळेली सींदरी समान छे. जेम बळेली सींदरी बांधवामां काम न आवे
तेम चार अघातिकर्मो बाकी छे तेथी कांई अरिहंत भगवानने क्षुधा के रोगादि थता नथी. आवा अरिहंत
भगवान जीवन्मुक्त छे. अने शरीररहित परमात्मा थई जाय ते सिद्ध छे. तेमनी जेने ओळखाण थाय तेने
व्यवहारे नवतत्त्वनी श्रद्धा थई कहेवाय. नवतत्त्वमां मोक्षतत्त्वनी श्रद्धा करतां तेमां अरिहंत अने सिद्धनी श्रद्धा
आवी जाय छे.