Atmadharma magazine - Ank 086
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : आत्मधर्म : ८६
[३]
श्री प्रवचनसारजी गाथा २७२ उपर वीर सं. २४७६ ना जेठ सुद ५ [श्रतुपंचमी] ना रोज ईाठीना
जिनमंदिरजीनी प्रतिष्ठाना वार्षिक महोत्सव प्रसंगे, लाठीमां पू. गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन.
प्रगट करे छे. मोक्षतत्त्व ते आत्मानी निर्विकारी शुद्ध दशा छे. संसार ते आत्मानी भूलवाळी विकारदशा छे ने
मोक्ष ते आत्मानी पवित्रदशा छे, आत्मा तो ते बंने अवस्थाओमां ध्रुवरूप नित्य रहेनार छे. संसार अने मोक्ष
ए बंने, आत्मानी क्षणिक अवस्थाओ छे. संसारनो नाश थतां आत्मानो नाश थई जतो नथी, ने मोक्षदशा
प्रगट थतां आत्मा नवो प्रगटतो नथी. संसारदशानो व्यय अने मोक्षदशानो उत्पाद थाय छे, आत्मा तो
द्रव्यद्रष्टिथी एकरूप ध्रुव छे. जे आत्मा संसारदशामां हतो ते ज आत्मा मोक्षदशामां रहे छे.
संसारतत्त्वनुं वर्णन करतां २७१मी गाथामां तत्त्वनी ऊंधी श्रद्धावाळा द्रव्यलिंगी श्रमणने मुख्य
संसारतत्त्व कह्युं हतुं. अहीं मोक्षतत्त्वना वर्णनमां, भावलिंगी शुद्धोपयोगी श्रमण ते मोक्षतत्त्व छे–एम कहे छे–
अयथाचरणहीन, सूत्र अर्थसुनिश्चयी उपशांत जे,
ते पूर्ण साधु अफळ आ संसारमां चिर नहि रहे. २७२
आ प्रवचनसारनी छेल्ली पांच गाथाओने अमृतचंद्राचार्य देवे पांच रत्नोनी उपमा आपी छे, ते पांच
रत्नोमां आ बीजुं रत्न छे. द्रव्यलिंगी संसारतत्त्व अनंत संसारमां रखडशे एम कह्युं हतुं अने
भावलिंगी श्रमण अल्पकाळे मोक्ष पामशे तेथी ते मोक्षतत्त्व छे–एम अहीं कहे छे.
मोक्षना साधक श्रमण केवा होय छे? त्रण लोकनी कलगीसमान विवेकरूपी दीवीना प्रकाशवाळा होय छे.
संसारतत्त्ववाळो जीव स्वयं अविवेकी हतो, अहीं मोक्षतत्त्वमां प्रथम ज विवेक एटले के भेदज्ञाननी वात करी छे.
केवळज्ञान ने सूर्य छे ने सम्यक् मति–श्रुतज्ञान ते दीवी छे. श्रमणने हजी केवळज्ञान प्रगट्युं नथी पण यथार्थ
मति–श्रुतज्ञान प्रगट्या छे, ते त्रणलोकना चूडामणी समान दीवी छे. सम्यग्ज्ञाननो विवेक प्रगट्या वगर
मुनिदशा होय नहि, तेथी प्रथम विवेकनी वात लीधी. लोको पण कहे छे के–
धर्म वाडीए न नीपजे, धर्म हाटे न वेचाय,
धर्म विवेके नीपजे, जो करीए तो थाय.
धर्म क्यांय बहारथी मळतो नथी पण अंतरना विवेकथी थाय छे. विवेक एटले शुं? स्व–पर पदार्थोनो
स्वभाव जेम छे तेम ज्ञानमां जाणवो ते विवेक छे. प्रथम तो श्रमणने आवा विवेकने लीधे यथास्थित
पदार्थनिश्चय होय छे एटले के पदार्थ जेवा छे तेवी तेनी श्रद्धा होय छे. घडो माटीथी थाय एम मानवुं ते
यथास्थित पदार्थ–श्रद्धा छे, अने कुंभार घडाने करे–एम मानवुं यथास्थित पदार्थश्रद्धा नथी पण विपरीत श्रद्धा छे
ज्यारे पदार्थनी अवस्थानो जे स्वकाळ होय त्यारे ते अवस्था स्वतंत्रपणे तेनाथी थाय छे, बीजी चीजथी तेमां
कांई थतुं नथी–आम समजवुं ते पदार्थनी यथार्थ श्रद्धा छे. एवी यथार्थ श्रद्धा प्रगट करवाथी ज पदार्थो संबंधी
उत्सुकता टळे छे. जो पदार्थनो यथार्थ निर्णय न करे तो ‘पदार्थ आम हशे के तेम?’ एवी शंकाना झूले झूल्या करे
एटले तेने आकुळता मटे नहि ने ते कदी स्वरूपमां ठरी शके नहि. मोक्षना साधक मुनिवरोए विवेकरूपी दीवीना
प्रकाशथी पदार्थोना स्वरूपनो यथार्थ निश्चय कर्यो छे अने ए निश्चयवडे उत्सुकताने टाळी छे.
शुभराग बंधनुं कारण छे, ते मोक्षनुं साधन नथी, पुण्य ते पुण्यतत्त्व छे तेनाथी धर्म थतो नथी,–आ प्रमाणे
नवे तत्त्वोनी बराबर श्रद्धा वडे, ‘आ केम हशे? शुं पुण्यथी धर्म थतो हशे!’ एवा प्रकारनी सर्वशंका टळी जाय छे.
निःशंकपणे नवतत्त्वनो निर्णय न करे त्यां सुधी उपयोग आत्मस्वरूपमां एकाग्र थाय नहि. पहेलांं नवतत्त्वोनो
निर्णय करीने आत्मा शुं छे ते नक्की करे, पछी आत्मामां उपयोग जोडे तो त्यां एकाग्रता थाय. पदार्थनो निश्चय करीने
जेनो उपयोग पोताना स्वरूपमां जामी गयो छे एवा साक्षात् श्रमणने मोक्षतत्त्व कहे छे.
मोक्षतत्त्व एटले शुं? तेनी आ वात चाले छे. स्वरूपमंथर एटले के आत्मस्वरूपमां जे जामी गया छे
एवा भावलिंगी मुनिने वर्तमानमां केवळज्ञान नथी पण भेदज्ञानरूपी दीवी प्रगटी छे, ते दीवीना प्रकाश वडे
पदार्थना स्वरूपनो निर्णय करीने आत्मामां ठर्या छे, प्रशांत आत्मा थया छे, तेने भविष्यमां अल्पकाळे मुक्ति
थवानी छे, तेथी तेने ज अहीं मोक्षतत्त्व कही दीधुं छे. हजी साक्षात्