Atmadharma magazine - Ank 086
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर: २४७७ : २३ :
[२]
श्री प्रवचनसारजी गाथा २७१ उपर लाठीमां वीर सं. २४७६ ना जेठ सुद ३
तथा ४ना रोज पू गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन
संसार शुं छे अने ते क्यां रहेतो हशे? तेनुं वर्णन श्री आचार्यदेवे आ गाथामां कर्युं छे. संसार आत्मानी
क्षणिक विकारी दशा छे. नवतत्त्वमांथी पुण्य–पाप–आस्रव अने बंध ए चार तत्त्वो संसारतत्त्वमां आवी जाय छे.
अजीवतत्त्वमां संसार नथी, तेम ज शुद्ध जीवतत्त्वमां पण संसार नथी. संसार कहेतां विकारनुं सूचन थाय छे;
स्वरूपमांथी संसर्यो अर्थात् स्वरूपमांथी खस्यो ते संसार छे. आत्मानो संसार परमां–अजीवमां नथी, तेम ज
धु्रव ज्ञानस्वभावमां पण संसार नथी. तथा आत्मस्वभावनुं भान थतां जे संवर–निर्जरा–मोक्षतत्त्व प्रगट थाय
तेमां पण संसार नथी, केम के ते तो निर्मळ धर्मदशा छे. संसार एटले अधर्मदशा, विकारदशा. ते जडमां नथी
तेम ज आत्माना स्वभावमां पण नथी. जो स्वभावमां संसार होय तो ते टळी शके नहि, अने जो जडमां संसार
होय तो आत्मा तेने टाळी शके नहि तेम ज तेनुं फळ आत्मामां न होय. आत्मानी एक समयपुरती पर्यायमां जे
विकारने अधर्मदशा छे ते ज संसार छे. तेने ओळखे तो टाळे. संसार क्यां छे ने तेनुं यथार्थ स्वरूप शुं छे ते
ओळख्या वगर संसार टाळवानो साचो उपाय करी शके नहि. ‘पाडाने गूमडुं ने पखालने डाम’ एटले गूमडुं
क्यां छे ते जाण्या वगर पखालने डाम दे तो कांई गूमडुं रुझाय नहीं. तेम संसार आत्मामां, अने माने जडमां;
आत्मानो संसार जडमां माने तो ते टाळवानो उपाय पण जडमां करे, तेने कदी संसार टळे क्यांथी?
संसारतत्त्वनो मुख्य मालिक कोण? ते अहीं कहे छे. द्रव्यलिंगी मुनि के जे तत्त्वनी अयथार्थ श्रद्धा करे छे
ते संसारतत्त्वनो स्वामी छे. सामान्यपणे तो बधाय मिथ्याद्रष्टि जीवो संसारतत्त्व ज छे, पण अहीं संसारना
मुख्य नायक तरीके द्रव्यलिंगी जैन–साधु सिद्ध करवो छे. जैन संप्रदायमां रहीने, द्रव्यलिंगी साधु थईने एम माने
के ‘आत्मा पर जीवोने बचावी शके–आत्मा पर जीवोने मारी शके, आत्मा जडनी क्रिया करी शके, व्य्वहारना
आश्रये आत्मानुं कल्याण थाय, निमित्तथी आत्माने लाभ–नुकशान थाय के परनी दया वगेरेना शुभरागथी
धर्म थाय’ तो एवुं माननारो ते जीवतत्त्वनी ऊंधी श्रद्धा करनारो, मोहमळथी मलिन, संसारमां रखडनारो,
संसारतत्त्व छे.
आत्मा परनी अवस्था करे एम माननार भले पंचमहाव्रतनुं पालन करनार द्रव्यलिंगी जैन–साधु होय
तोपण मिथ्याद्रष्टि संसारतत्त्व ज छे. कोईने बहारथी एम लागे के आटलुं बधुं कर्युं माटे ते संसारतत्त्वथी बहार
नीकळी गयो हशे! तो एम बिलकुल नथी, अनादिथी जे दशा छे एनी ए ज दशा छे. निगोदनो जीव जेम
संसारी छे, तेम ते ऊंधी श्रद्धानी पुष्टि करनार द्रव्यलिंगी पण संसारी ज छे, संसारतत्त्वनी अपेक्षाए ते बंने
सरखा छे. जगतना बीजा जीवो ईश्वरने जगत्कर्ता माननार वगेरे–तो मिथ्याद्रष्टि छे, ते तो संसारतत्त्व छे ज.
अने जैनवाडामां रहेलो द्रव्यलिंगी पण, पुण्य–पाप बंनेने बंधन न मानतां पुण्यथी धर्म माने, कां परनुं आत्मा
करे एम माने, तो ते पण स्वयं अविवेकथी तत्त्वनी ऊंधी श्रद्धा करनार संसारतत्त्व ज छे.
दयादिभाव ते पुण्यतत्त्व छे, हिंसादिभाव ते पापतत्त्व छे अने शरीरादि अजीवतत्त्व छे, तेमां क्यांय
आत्मानो धर्म नथी. आत्मा पर पदार्थो त्रिकाळ जुदो होवा छतां, जुओ ‘आत्मा परनुं करे अने पर पदार्थो
अनुकूळ होय तो आत्माने ठीक पडे’ –एम ऊंधी श्रद्धाथी, तत्त्वने ‘आम ज छे’ एम ऊंधुंं नक्की करता थका
नित्य अज्ञानी छे तेओ द्रव्यलिंगी साधु होय तो पण ते संसारतत्त्व छे. द्रव्यलिंगी पण बाह्यमां तद्न नग्न
दिगंबर होय ने पंचमहाव्रत चोकखां पाळता होय तेने ज कहेवाय, बीजानो तो द्रव्यलिंगी पण न कहेवाय.
आचार्यदेव कहे छे के ते जीवे ‘आ आम ज छे’ एम ऊंधी श्रद्धाथी तत्त्वने नक्की करी राख्युं छे, एटले कोई
सवळुं कहेनार मळे तो पण ते समजवानो तेने अवकाश राख्यो नथी. आत्मानी यथार्थ श्रद्धा–ज्ञान करीने तेमां
एकत्व करवुं जोईए, तेने बदले ते