वधारी रह्यो छे.
वर्तमानमां तो मिथ्यात्वभावने पोषे छे, ने ते ऊंधा भावना सेवनथी भविष्यमां पण अनंत कर्मफळना
उपभोगराशिथी भयंकर एवा अनंतकाळ सुधी विकारमां भावांतररूप परावर्तन तेने थया ज करे छे, एटले
तेनी परिणति सदाय अस्थिर रह्या करे छे पण आत्मामां कदी स्थिर थती नथी, तेथी ते ज संसारतत्त्व छे.
संसारतत्त्वनुं संसरण बताववा माटे भावांतररूप परावर्तननी वात लीधी छे. मिथ्याश्रद्धावाळो जीव
कोई भावरूपे स्थिर रहेतो नथी पण विकारी भावोमां क्षणे क्षणे तेनो पलटो थया ज करे छे; माटे ते ज
संसारतत्त्व छे, एम जाणवुं.
अज्ञानी विकारनो कर्ता थाय छे. अने, आत्मा पुण्य–पापनो ज्ञाता–द्रष्टा छे, ते विकारनो कर्ता नथी–एम
समयसारना कर्ता कर्म अधिकारमां कह्युं छे, त्यां धर्मीनी वात छे. शुद्धात्मस्वभावनी द्रष्टिवाळो धर्मी जीव
विकारनो कर्ता थतो नथी. अहीं ससारतत्त्वनुं वर्णन छे एटले अधर्मी जीव पोते विकारभावे परिणमे छे–एम
बताव्युं छे. अधर्मीनो अधर्मभाव एटले के संसार तेनी अवस्थामां थाय छे, जडमां थतो नथी.
छे, हुं सारो उपदेश दउं छुं तेथी तेनी असरथी मारे घणा शिष्यो थाय छे एटले मारा उपदेशनी असर पर उपर
पडे छे,–आवुं माननारा बधा मिथ्याद्रष्टि संसारमां रखडनारा छे. ऊंधी मान्यतावाळा द्रव्यलिंगी साधु पोते
संसारतत्त्व छे तेम ज ते साधुने गुरु तरीके मानीने ऊंधी मान्यताने पोषनार श्रावकत्व गृहस्थो पण
संसारतत्त्व छे; ऊंधा भावे ते जीवो भविष्यमां अनंतसंसारमां रखडशे. अने सवळी श्रद्धावाळा जीवोना
अल्पकाळे संसारना आरा आवी जवाना छे.
माननार मिथ्याद्रष्टि छे, ते कदी बाह्यद्रष्टि छोडीने अंतरस्वभावमां वळे नहि, ने तेनो संसार टळे
नहि. ‘तत्त्वनो निर्णय करवानुं शुं काम छे? छेवटे तो रागद्वेष घटाडवा छे ने! माटे राग–द्वेष घटाडवा मांडो,
अने राग–द्वेषने घटाडवा माटे बाह्य वस्तुओनो त्याग करो’–आम माननारा तथा कहेनारा, भले त्यागी होय
तोपण मिथ्याद्रष्टि छे ने ते संसारमां रखडनार छे. बाह्य संयोग छोडये राग–द्वेष छूटता नथी, बाह्य संयोग तो
अभव्य जीवे पण अनंतवार छोडया. तत्त्वनिर्णय करीने आत्मस्वभाव तरफ न वळे तो कदी राग–द्वेष टळे ज
नहि; माटे तत्त्वनिर्णय करीने आत्माना स्वभाव तरफ वळवुं ते ज संसारने टाळवानो उपाय छे.
छूटतो नथी. छ महिनाना उपवास करीने ऊभो ने ऊभो सूकाई जाय ने अंदर मंदरागमां धर्म माने तथा
रोटला में छोडया–एम माने तो ते जीव संसारतत्त्वने सेवनारो छे. अज्ञानीनी द्रष्टि बाह्य संयोग उपर
छे तेथी ते बाह्य क्रिया देखीने तेमां धर्म मनावे छे, पण अंतरद्रष्टिथी जोनार ज्ञानी कहे छे ते जीव ऊंधी
मान्यताथी अधर्मने ज सेवे छे.