Atmadharma magazine - Ank 086
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : ८६
संयोग तेना कारणे न थाय तेनुं नाम उपवास छे. तेने बदले बाह्य क्रियामां उपवास ने धर्म मनावे छे ते
मिथ्याद्रष्टि, संसारतत्त्व छे. ते भले द्रव्यलिंगी श्रमण होय तोपण अनंत भावांतररूपे परावर्तन पामता थका
अस्थिर परिणतिवाळा रहेशे, तेथी ते संसारतत्त्व छे; वर्तमानमां तो तेनी परिणति अस्थिर छे ने भविष्यमां
पण ते अस्थिर परिणतिवाळा ज रहेशे. परिणति स्वरूपमां ठरे तो ते मोक्षनुं कारण छे. पण ज्यां स्वरूपनो
यथार्थ निर्णय नथी त्यां परिणति स्वरूपमां ठरे क्यांथी? एटले विकारमां ज परिणति बदल्या करे छे, ते ज
संसार छे. विकारी भाव एक सरखो रहेतो नथी, पण क्षणे क्षणे फर्या करे छे. क्यारेक एवो शुभभाव करे के
नवमी ग्रैवेयकनो देव थाय, वळी क्यारेक अशुभभाव करीने नरके जाय. घडीकमां पुण्य ने घडीकमां पाप, क्यारेक
मोटो राजा थशे ने वळी घडीकमां निगोद थशे–आम ऊंधी श्रद्धावाळो जीव अनंत भावांतरना परावर्तनमां रखडे
छे, तेथी ते संसारतत्त्व छे.
अज्ञानीओ, व्रतादिनो शुभराग बंधनुं कारण होवा छतां तेने मुक्तिनुं कारण माने छे. जे भावथी बंधन
थाय ते भाव मुक्तिनुं साधन होय नहीं. पांचमा–छठ्ठा गुणस्थाने पण सात–आठ कर्मो बंधाय छे, बंधनभाव
वगर (अर्थात् बंधना कारणरूप भाव वगर) कर्मो बंधाय नहि, तो त्यां पांचमे–छ
ठ्ठे गुणस्थाने क्यो बंधनभाव
छे?–त्यां जे व्रतादिनो शुभभाव छे ते बंधननो भाव छे, तेनाथी कर्मो बंधाय छे. छतां ते बंधनभावने मुक्तिनुं
कारण माने छे तेओ मिथ्याद्रष्टि छे एटले के निगोदना भावने सेवनारा संसारतत्त्व छे.
छठ्ठा गुणस्थाने पण सात के आठ कर्मो बंधाय छे–एम भगवाने कह्युं छे, तो ते कया भावथी बंधाय छे?
अशुभभाव तो त्यां होय नहि, ने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनो जे शुद्धभाव प्रगट्यो छे ते बंधनुं कारण थाय
नहि, एटले व्रतादिनो जे शुभभाव छे तेनाथी ज कर्मो बंधाय छे, तेथी ते बंधनुं कारण छे; अने रागरहित
ज्ञानस्वभावनो निर्णय करीने तेमां लीनता करवी ते कर्मने तोडवानुं–मुक्तिनुं कारण छे. आम होवा छतां जे
रागने धर्मनुं के मुक्तिनुं कारणमाने छे ते अनवस्थित परिणतिवाळा रहेवाने लीधे संसार तत्त्व ज छे. कोईनी
कृपाथी जीवने मोक्ष मळतो नथी ने कोईनी अकृपाथी ते संसारमां रखडतो नथी; मिथ्याश्रद्धाथी जीवनी अस्थिर
परिणतिने संसार कह्यो छे.
आत्मानुं वास्तविक ज्ञानमय स्वरूप छे तेनो जेणे निर्णय प्रगट कर्यो नथी ते जीव भले त्यागी हो के
भोगी हो, ते बधा संसारमां रखडनारा संसारतत्त्व छे–एम जाणवुं. ए रीते संसारतत्त्वनुं स्वरूप बताव्युं, हवे
ते संसारतत्त्वथी विरुद्ध एवा मोक्षतत्त्वनुं वर्णन २७२मी गाथामां करशे.
।।२७१।।
होंशथी हा पाडो.....
हे भव्य! तारामां शक्ति छे एम जोईने आचार्यभगवान कहे
छे के आत्मा आवो छे तेने तुं जाण. ज्ञानी जेनामां त्रेवड भाळे तेने
आत्मा जाणवानुं कहे छे, कांई पत्थरने अजडने के पाडाने कहेता नथी के
तुं आत्माने जाण! माटे, ‘अमे समजीए नहि’ एवो नकार लावशो
नहि. हुं हमणां तैयार नथी, मारे माटे सारो अवसर के सारो संयोग
नथी एम ओथ लेशो नहि. बराबर न्याय, युक्ति, प्रमाणथी शुद्ध
आत्मानुं स्वरूप कहेवामां आवशे, तेनी होंश लावी हा ज पाडजो. जेम
बूंगियो ढोल वागे त्यारे रजपूत छूपे नहिं, बूंगियो ढोल सांभळीने
साडात्रण क्रोड रोमेरोममां रजपूतनुं शौर्य ऊछळी जाय छे. तेम तत्त्वनो
महिमा सांभळतां पात्र चैतन्यनुं वीर्य ऊछळी जाय छे. सिद्ध भगवंतो
पूर्ण निर्मळदशाने पाम्या तेनी नात–जातनो वारसदार हुं छुं, में मारी
स्वतंत्रतानो बूंगियो सांभळ्‌यो–ए प्रमाणे, स्वतंत्रतानी वात सांभळी
हे जीव! तेनो महिमा लाव! श्री कुंदकुंद भगवान समयसारना बूंगिया
वगाडी गाणां गाय छे, ते सांभळी तुं न ऊछळे ए केम बने?
–श्री समयसार प्रवचनो भा. १ पृ. ६२–६३