शकतो नथी, छतां हुं करुं–एम माने छे ते अज्ञान छे. हजी परथी भिन्न आत्मानी वात अत्यारे समजतो नथी ने
समजवानी. रुचि पण करतो नथी, तो मरवा टाणे क्यांथी लावीश?
उत्तर:–एम नथी; पैसा जड छे, ते जडनी आववा–जवानी अवस्था तेने कारणे थाय छे, आत्मा
नथी. ‘आणे पैसा मेळव्या, आणे आम कर्युं ने आ मेळव्युं’ एम बोलाय छे ते तो मात्र व्यवहारनी
भाषा छे.
चैतन्यस्वभावनी निर्विकल्प श्रद्धा करवा माटे, प्रथम रागमिश्रित विचारथी जीव–अजीवने जुदा जाणवा ते
व्यवहारश्रद्धा छे.
जडनी क्रियाथी पण थया नथी. जीवद्रव्यमांथी पुण्य आव्यां–एम माने तो जीव अने पुण्यतत्त्व जुदां रहेतां नथी.
ने जडनी क्रियाथी पुण्य माने तोपण अजीव अने पुण्यतत्त्व जुदां रहेतां नथी. पुण्य तो क्षणिक अवस्थाथी थाय
छे.–आम नवतत्त्वने जाण्या विना व्यवहारश्रद्धा पण थाय नहीं.
माने छे तेने आस्रवतत्त्वनी श्रद्धा नथी. पुण्य अने पाप बंने विकार छे, आस्त्रव छे. ते पुण्य–पाप रहित
सिद्धसमान सदा पद मेरा–एम विचारे ते तो व्यवहारे नवतत्त्वनो स्वीकार छे. जेम कोई पासेथी नाणां लीधा
होय, पण ते हजी चूकव्या न होय, त्यार पहेलांं ते नाणां पूरेपूरा चूकववानुं स्वीकारे ते व्यवहारमां–बोलणीमां
शाहुकार थयो, ने ज्यारे नाणां चूकवी आपे त्यारे खरो शाहुकार थयो कहेवाय. तेम चैतन्यद्रव्यनी
अखंडनिधि सिद्धसमान छे, अनंत गुणनो भंडार छे, तेमां एकाग्र थईने तेनो अनुभव करवारूप नाणुं चूकवतां
पहेलांं तेनी व्यवहारे श्रद्धा करवी ते व्यवहारमां शाहुकारी छे एटले के व्यवहारश्रद्धा छे. ने पछी एक अखंड
चैतन्यद्रव्यनी प्रतीत करीने तेनो अनुभव करवो ते परमार्थे शाहुकारी छे–परमार्थश्रद्धा छे. एवा परिपूर्ण
आत्मस्वभावनी श्रद्धा करवामां कांधा न होय–क्रम न होय; पूर्णनी श्रद्धा पछी चारित्रमां क्रम पडे छे.
काणांवाळी होडीमां पाणी बहारथी भराय छे, तेम आत्मामां आस्रवभावो कांई बहारनी क्रियामांथी नथी
आवता, पण पर्याय द्रष्टिथी जीवनी अवस्थामां आस्रवभाव थाय छे. आस्रव त्रिकाळ जीवद्रव्यथी थतो नथी
तेम ज अजीवद्रव्यथी पण थतो नथी. अहो, घणा लोकोने ज्यां नवतत्त्वनी पण बराबर खबर नथी त्यां
अंतरस्वभावनी द्रष्टि क्यांथी थाय? ते जीवो तो आत्माना भान वगर जेवा जन्म्या तेवा ज कागडा–
कूतरांनी जेम अवतार पूरो करी, मरीने चाल्या जाय छे, तेमणे जीवनमां कांई अपूर्व कर्युं नथी. बहारमां
कुदेवादिनी ऊंधी मान्यता छोडीने, आ सर्वज्ञदेवे कहेला नवतत्त्वने बराबर जाणे ते तो हजी धर्मनी
व्यवहाररीतमां आव्यो छे, हजी परमार्थधर्म तो तेनाथी जुदी चीज छे.