असत् (व्ययरूप) छे. ने पहेलांं–पछीना भेद पाड्या वगर सळंग प्रवाहने जुओ तो बधाय परिणामो धु्रव छे.
ज्यारे जुओ त्यारे द्रव्य पोताना वर्तमान परिणाममां वर्ती रह्युं छे. द्रव्य त्रिकाळ होवा छतां ज्यारे जुओ त्यारे
द्रव्यना त्रणेकाळना जे जे वर्तमान परिणाम छे ते पोतानी पहेलांंना परिणामना अभावस्वरूप छे, ने
स्वपरिणामपणे ते उत्पादरूप छे, तथा ते ज सळंग प्रवाहपणे धु्रवरूप छे.
माटे अत्यारे विकार थाय छे–एम नथी. वर्तमान–वर्तमान परिणाम स्वतंत्रपणे द्रव्यना आश्रये थाय छे. आ
निर्णय थतां ज्ञान अने श्रद्धा द्रव्यस्वभावमां ज वळी जाय छे. जेम त्रिकाळी जडद्रव्य पलटीने चेतन, के
चेतनद्रव्य पलटीने जड न थाय तेम तेनो वर्तमान एकेक अंश पण पलटीने बीजा अंशपणे न थाय. जे जे
समयनो जे अंश छे ते ते–पणे ज सत् रहे. बस! भगवान सर्वज्ञपणे जाणनार छे तेम आवी प्रतीत करनार
पोते पण प्रतीतमां जाणनार ज रह्यो.
नक्की करनारने अंशबुद्धि टळीने अंशीनी द्रष्टि थतां सम्यक्त्वपरिणामनो उत्पाद, ने मिथ्यात्वपरिणामनो व्यय
थई जाय छे.
ओछो–वधारे के आगळ–पाछळ करी शके एवो तारो स्वभाव नथी, तेम परना परिणाममां पण फेरफार थई
शकतो नथी. स्व–पर समस्त ज्ञेयोने जेम छे तेम जाणवानो ज तारो स्वभाव छे. आवा जाणकस्वभावनी
प्रतीतमां ज आत्मानुं सम्यक्त्व छे.
उत्तर:– जुओ, जाणवाना स्वभावनी प्रतीत करतां सम्यग्दर्शन थयुं तेमां मिथ्यात्व टळेलुं ज छे.
क्यां रह्युं? मिथ्यात्व टाळीने सम्यक्त्व करुं एवा लक्षे सम्यकत्व थतुं नथी पण द्रव्य सामे द्रष्टि थतां सम्यक्त्वनो
उत्पाद थाय छे तेमां पूर्वना मिथ्यात्वपरिणामनो अभाव थई ज गयो छे. माटे ते परिणामने पण फेरववानुं
रहेतुं नथी. मिथ्यात्व टळीने सम्यक्त्व पर्याय थई तेने पण आत्मा जाणे छे, पण परिणामना कोई क्रमने ते
आघापाछा फेरवतो नथी.
गयो. आ ९९ मी गाथामां बे नवडा भेगा थाय छे, ने तेमांथी सम्यक्दर्शन अने सम्यक्चारित्र बंने भेगां थई
जाय तेवा ऊंचा भावो नीकळे छे. जेम ‘नव’ नो अंक अफर गणाय छे तेम आ भावो पण अफर छे.
के शास्त्रनी वात बेठी नथी, अने खरेखर तेणे ते कोईने मान्यां नथी.
करे छे. जेम त्रिकाळी सत् पलटीने चेतनमांथी जड थई जतुं नथी, तेम तेनो एकेक वर्तमान अंश छे ते सत् छे ते
अंश पण पलटीने आघोपाछो थतो नथी. जेणे आवो वस्तुस्वभाव जाण्यो तेने पोताना एकला