Atmadharma magazine - Ank 087
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: पोष: २४७७ : ५१:
ज्ञायकपणानी प्रतीत थई, ते ज धर्म थयो. अने तेणे देव–गुरु–शास्त्रने पण खरेखर मान्यां कहेवाय.
त्रणेकाळना समयमां त्रणेकाळना परिणामो उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप छे; कोई पण एक समयनो जे परिणाम
छे ते परिणाम पहेलांं न हतो ने पछी ऊपज्यो, एटले पूर्वपरिणामनी पछीना तरीके ते उत्पादरूप छे, तथा ते
परिणाम वखते पूर्वना परिणामनो व्यय छे,–पूर्वना परिणामनो व्यय थईने ते परिणाम ऊपज्यो छे माटे
पूर्वना परिणामनी अपेक्षाए ते ज परिणाम व्ययरूप छे, ने त्रणे काळना परिणामना सळंग प्रवाहनी अपेक्षाए
ते परिणाम ऊपज्यो पण नथी ने विनाशरूप पण नथी,–छे तेम छे एटले के धु्रव छे. ए रीते अनादिअनंत
प्रवाहमां ज्यारे जुओ त्यारे दरेक परिणाम उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभावरूप छे.
कोई पण वस्तुना पर्यायमां फेरफार करवानी होंश ते पर्यायबुद्धिनुं मिथ्यात्व छे; तेने ज्ञानस्वभावनी
प्रतीत नथी तेम ज ज्ञेयोना उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभावनी पण खबर नथी. अरे भगवान! वस्तु ‘सत्’ छे ने?
तो ते सत्ना ज्ञान सिवाय तेमां बीजुं तुं शुं करीश? तुं सत्मां फेरफार करवानुं मानीश तो कांई सत् तो नहि
फरे पण तारुं ज्ञान असत् थशे. जे प्रमाणे वस्तु सत् छे ते प्रमाणे तेने केवळज्ञानमां भगवाने जाणी, ते ज
वाणी द्वारा कहेवायुं छे, नवुं नथी कहेवायुं. भगवाने तो मात्र जेम सत् हतुं तेम ज्ञान कर्युं छे, वाणी जड छे ते
पण भगवाने करी नथी. भगवाननो आत्मा पोताना केवळज्ञानपरिणाममां वर्ती रह्यो छे, ने वाणीनी पर्याय
परमाणुओना परिणमनप्रवाहमां वर्ती रही छे, तथा समस्त पदार्थो पोताना सत्मां वर्ती रह्या छे. ज्ञायकमूर्ति
आत्मा तो जाणवानुं काम करे छे के ‘आम सत् छे.’ बस! आनुं नाम सम्यग्दर्शन अने वीतरागतानो मार्ग छे.
भगवान केवा छे?–के ‘सर्वज्ञ’–सर्वना जाणनारा; कोईमां फेरफार के राग–द्वेष करनारा नहि. भगवाननी
जेम मारा आत्मानो स्वभाव पण जाणवानो छे–एम तुं पण तारा आत्माना जाणनार स्वभावनी श्रद्धा कर, ने
पदार्थोमां फेरफार करवानी बुद्धि छोड. जेणे पोताना ज्ञानस्वभावनी श्रद्धा करी ते अस्थिरताना राग–द्वेषनो पण
जाणनार ज रह्यो. जेणे आवा ज्ञानस्वभावने मान्यो तेणे ज अरिहंतदेवने मान्या, तेणे ज आत्माने मान्यो,
तेणे ज गुरुने तथा शास्त्रने मान्यां, तेणे ज नवपदार्थने मान्या, तेणे ज छ द्रव्योने तथा तेमना वर्तमान अंशने
मान्या; तेनुं ज नाम सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान छे.
‘जाणवुं’ ते आत्मानो स्वभाव छे. बस, जाणवुं ते ज आत्मानो पुरुषार्थ, ते ज आत्मानो धर्म, तेमां ज
मोक्षमार्ग ने तेमां ज वीतरागता. अनंता सिद्धभगवान पण समये समये पूरुं जाणवानुं ज कार्य करी रह्या छे.
ज्ञानमां स्व–पर बंने ज्ञेयो छे. ‘ज्ञान जाणनार छे’ एम जाण्युं तेमां ज्ञान पण स्वज्ञेय थयुं. ज्ञानने
रागादिनुं करनार के फेरवनार माने तो तेणे ज्ञानना स्वभावने जाण्यो नथी,–पोते पोताने स्वज्ञेय बनाव्युं नथी
एटले तेनुं ज्ञान मिथ्या छे. वस्तुना बधाय परिणामो पोत–पोताना समयमां सत् छे–एम कहेतां ज पोतानो
ज्ञायक ज स्वभाव छे–एम तेमां आवी जाय छे. * *
*
आ गाथामां क्षेत्रनो दाखलो आपीने पहेलांं द्रव्यनुं त्रिकाळी सत्पणुं बताव्युं, तेना त्रिकाळी प्रवाहक्रमना
अंशो बताव्या, ने ते अंशोमां (–परिणामोमां) अनेकतारूप प्रवाहक्रमनुं कारण तेमनो परस्पर व्यतिरेक छे एम
सिद्ध कर्युं. अने त्यार पछी आखा द्रव्यना बधाय परिणामोने स्व–अवसरमां वर्तनारा, उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप
बताव्या. एटली वात पूरी थई.
हवे एकेक समयना वर्तमान परिणामने लईने तेमां उत्पाद–व्यय–धु्रवपणुं बतावे छे. पहेलांं समग्र
परिणामोनी वात हती ने हवे अहीं एक ज परिणामनी वात छे. अने पछी छेल्ले परिणामी द्रव्यनी ज वात
लईने द्रव्यना उत्पाद–व्यय–धु्रव बतावशे.
“वळी जेम वास्तुनो जे नानामां नानो (छेवटनो) अंश पूर्व प्रदेशना विनाशस्वरूप छे ते ज (अंश)
त्यार पछीना प्रदेशना उत्पादस्वरूप छे तथा ते ज परस्पर अनुस्यूतिथी रचायेला एकवास्तुपणा वडे
अनुभयस्वरूप छे (अर्थात् बेमांथी एक्के स्वरूपे नथी), तेम प्रवाहनो जे नानामां नानो अंश पूर्व परिणामना
विनाशस्वरूप छे ते ज त्यार पछीना परिणामना उत्पादस्वरूप छे तथा ते ज परस्पर अनुस्यूतिथी रचायेला
एकप्रवाहपणा वडे अनुभयस्वरूप छे.”
(पृ. १६५)