परिणाम वखते पूर्वना परिणामनो व्यय छे,–पूर्वना परिणामनो व्यय थईने ते परिणाम ऊपज्यो छे माटे
पूर्वना परिणामनी अपेक्षाए ते ज परिणाम व्ययरूप छे, ने त्रणे काळना परिणामना सळंग प्रवाहनी अपेक्षाए
ते परिणाम ऊपज्यो पण नथी ने विनाशरूप पण नथी,–छे तेम छे एटले के धु्रव छे. ए रीते अनादिअनंत
प्रवाहमां ज्यारे जुओ त्यारे दरेक परिणाम उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभावरूप छे.
तो ते सत्ना ज्ञान सिवाय तेमां बीजुं तुं शुं करीश? तुं सत्मां फेरफार करवानुं मानीश तो कांई सत् तो नहि
फरे पण तारुं ज्ञान असत् थशे. जे प्रमाणे वस्तु सत् छे ते प्रमाणे तेने केवळज्ञानमां भगवाने जाणी, ते ज
वाणी द्वारा कहेवायुं छे, नवुं नथी कहेवायुं. भगवाने तो मात्र जेम सत् हतुं तेम ज्ञान कर्युं छे, वाणी जड छे ते
पण भगवाने करी नथी. भगवाननो आत्मा पोताना केवळज्ञानपरिणाममां वर्ती रह्यो छे, ने वाणीनी पर्याय
परमाणुओना परिणमनप्रवाहमां वर्ती रही छे, तथा समस्त पदार्थो पोताना सत्मां वर्ती रह्या छे. ज्ञायकमूर्ति
आत्मा तो जाणवानुं काम करे छे के ‘आम सत् छे.’ बस! आनुं नाम सम्यग्दर्शन अने वीतरागतानो मार्ग छे.
पदार्थोमां फेरफार करवानी बुद्धि छोड. जेणे पोताना ज्ञानस्वभावनी श्रद्धा करी ते अस्थिरताना राग–द्वेषनो पण
जाणनार ज रह्यो. जेणे आवा ज्ञानस्वभावने मान्यो तेणे ज अरिहंतदेवने मान्या, तेणे ज आत्माने मान्यो,
तेणे ज गुरुने तथा शास्त्रने मान्यां, तेणे ज नवपदार्थने मान्या, तेणे ज छ द्रव्योने तथा तेमना वर्तमान अंशने
मान्या; तेनुं ज नाम सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान छे.
एटले तेनुं ज्ञान मिथ्या छे. वस्तुना बधाय परिणामो पोत–पोताना समयमां सत् छे–एम कहेतां ज पोतानो
ज्ञायक ज स्वभाव छे–एम तेमां आवी जाय छे. * *
सिद्ध कर्युं. अने त्यार पछी आखा द्रव्यना बधाय परिणामोने स्व–अवसरमां वर्तनारा, उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप
बताव्या. एटली वात पूरी थई.
लईने द्रव्यना उत्पाद–व्यय–धु्रव बतावशे.
अनुभयस्वरूप छे (अर्थात् बेमांथी एक्के स्वरूपे नथी), तेम प्रवाहनो जे नानामां नानो अंश पूर्व परिणामना
विनाशस्वरूप छे ते ज त्यार पछीना परिणामना उत्पादस्वरूप छे तथा ते ज परस्पर अनुस्यूतिथी रचायेला
एकप्रवाहपणा वडे अनुभयस्वरूप छे.”