Atmadharma magazine - Ank 087
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 14 of 31

background image
: पोष: २४७७ : ५३:
स्वकाळ छे. पोताना वर्तमानने छोडीने ते आघोपाछो थाय नहि. एम वर्तमान एकेक परिणामनो उत्पाद–व्यय–
धु्रवस्वभाव छे.
आ गाथामां अत्यार सुधीमां चार बोल आव्या:–
(१) द्रव्यनो सळंग प्रवाह एक छे ने तेना क्रमे थता अंशो ते परिणामो छे.
(२) ते परिणामोमां अनेकता छे, केम के परस्पर व्यतिरेक छे.
(३) त्रणेकाळना परिणामोनुं आखुं दळ लईने बधा परिणामोमां सामान्यपणे उत्पाद–व्यय–धु्रवपणुं कह्युं.
(४) आखा प्रवाहनो एक अंश लईने एकेक परिणाममां उत्पाद–व्यय–धु्रव कह्यां.
–एम चार प्रकार थया. ए प्रमाणे परिणामनुं उत्पाद–व्यय–धु्रवपणुं नक्की करीने, हवे छेल्ले परिणामी
द्रव्यमां उत्पाद–व्यय–धु्रव सिद्ध करे छे.
“आ प्रमाणे स्वभावथी ज त्रिलक्षण परिणामपद्धतिमां (परिणामोनी परंपरामां) वर्ततुं द्रव्य स्वभावने
नहि अतिक्रमतुं होवाथी सत्त्वने त्रिलक्षण ज अनुमोदवुं.”
द्रव्यना बधाय परिणामो उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वरूप छे, ने ते परिणामोना क्रममां वर्ततुं द्रव्य पण उत्पाद–
व्यय–धु्रववाळुं ज छे. जो परिणामनी जेम द्रव्य पण उत्पाद–व्यय–धु्रववाळुं न होय तो ते परिणामोनी परंपरामां
वर्ती ज न शके. द्रव्य छे ते उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप बधाय परिणामोनी परंपरामां वर्ते छे तेथी तेने पण उत्पाद–
व्यय–धु्रव छे. परिणामोनी पद्धति कीधी छे एटले जेम सांकळनां अंकोडा आघापाछा थता नथी तेम परिणामोनो
प्रवाहक्रम बदलातो नथी, जे वखते द्रव्यनो जे परिणाम प्रवाहक्रममां होय ते वखते ते द्रव्यनो ते ज परिणाम
होय, बीजो परिणाम न होय. जुओ, आ वस्तुना सत्स्वभावनुं वर्णन छे. वस्तुनो सत्स्वभाव छे, सत् ते
उत्पाद–व्यय–धु्रववाळो परिणाम छे, ने तेने भगवान द्रव्यनुं लक्षण कहे छे–
सत्द्रव्य लक्षणं. तारो स्वभाव
जाणवानो छे. जेम सत् छे तेम तुं जाण. सत्ने आडुंअवळुं करवानी बुद्धि करीश तो तारा ज्ञानमां मिथ्यात्व थशे.
वस्तुओ सत् छे ने हुं तेनो जाणनार छुं–एवी श्रद्धा थया पछी अस्थिरतानो विकल्प ऊठे, पण तेमां मिथ्यात्वनुं
जोर न आवे. एटले आवी ज्ञान अने ज्ञेयनी श्रद्धाना जोरे ते अस्थिरतानो विकल्प पण तूटीने वीतरागता ने
केवळज्ञान थये ज छूटको!–एवी आ अलौकिक वात छे.
कारतक वद ८ शनिवारना रोज सवारे श्री समयसारजीनी
स्वाध्याय होवाथी प्रवचनसारनुं व्याख्यान बंध हतुं.
कारतक वद ९ रविार [गाथा ९]
आ विषय बहु सूक्ष्म परम सत्य अने गंभीर छे.
सर्वज्ञदेवे केवळज्ञानमां वस्तुनो स्वभाव जेवो छे तेवो पूर्ण जाण्यो, ने तेवो ज वाणीमां आवी गयो.
जेवो वस्तुनो स्वभाव छे तेवो जाणीने माने तो ज्ञान अने श्रद्धा सम्यक् थाय, वस्तुना स्वभावने जेवो होय
तेवो न जाणे ने बीजी रीते माने तो सम्यग्ज्ञान ने सम्यक्श्रद्धा थाय नहि, अने तेना वगर व्रत–तपादि साचां
होय नहीं. वस्तुना स्वभावनी स्थिति शुं छे अने तेना नियमो केवा सत्य छे, तेनुं आ वर्णन छे. आ समजवा
माटे ज्ञानमां एकाग्र थवानी जरूर छे.
जुओ, अत्यार सुधी शुं कहेवायुं छे? दरेक चेतन ने जड पदार्थो स्वयं सत् छे, तेमां एकेक समयमां
परिणाम थाय छे, ते परिणाम उत्पाद–व्यय–धु्रववाळां छे. मूळ वस्तु त्रिकाळ छे, ते वस्तु असंयोगी–स्वयंसिद्ध
छे, ते कोईथी बनेल नथी ने तेनो क्यारेय नाश नथी; ज्यारे जुओ त्यारे ते सत्पणे वर्तमान वर्ती रही छे.
एकेक समयना परिणाममां उत्पाद–व्यय–धु्रव थाय छे तेमां वस्तु वर्ती रही छे. दरेक द्रव्यमां, त्रण काळना
जेटला समयो छे तेटला परिणामो छे. जेम सोनानां सो वर्षो लईए, तो ते सो वर्षमां थयेली कडुं, कुंडळ, हार
वगेरे बधी अवस्थानो एक पिंड ते सोनुं छे, तेम दरेक द्रव्य त्रणकाळना बधा परिणामोनो पिंड छे. ते परिणामो
क्रमेक्रमे–एक पछी एक थाय छे. त्रण काळना समस्त परिणामोनो प्रवाह ते द्रव्यनो प्रवाहक्रम छे, ने ते
प्रवाहक्रमनो एक समयनो अंश ते परिणाम छे. त्रण काळना जेटला समयो छे तेटला ज दरेक द्रव्यना परिणामो
छे. ते एकेक परिणाममां उत्पाद, व्यय ने धु्रव एवा त्रण प्रकार सिद्ध कर्या छे. पोतपोताना निश्चित अवसरमां
दरेक परिणाम उत्पाद–व्यय–धु्रववाळां छे. कोईथी कोईना परिणामनो उत्पाद थाय के कोई परिणामो आघापाछा
थाय ए वात तो अहींथी क्यांय ऊडी