जाय छे.
एम बधी ये अवस्थाओना प्रवाहनो पिंड ते ज्ञानगुण छे. एवा अनंतगुणोनो पिंड ते द्रव्य छे. द्रव्यना समये
समये जे परिणामो थाय छे ते परिणामो पोतानी अपेक्षाए उत्पादरूप छे, पूर्वना अभावनी अपेक्षाए व्ययरूप
छे, ने सळंग प्रवाहमां वर्तनारा अंशपणे ते धु्रव छे. आवो उत्पाद–व्यय–धुववाळो परिणाम छे ते दरेक द्रव्यनो
स्वभाव छे. ने एवा स्वभावमां द्रव्य नित्य वर्ती रह्युं छे तेथी द्रव्य पोते पण उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभाववाळुं छे–
एम अनुमोदवुं.
थई जाय. माटे वस्तु एकली नित्य, के एकली पलटती नथी, पण नित्य टकीने क्षणेक्षणे ते पलटे छे. ए प्रमाणे
नित्य–पलटती वस्तु कहो के ‘उत्पाद–व्यय–ध्रौव्ययुक्तं सत्’ कहो, तेनुं आ वर्णन छे. नानामां नाना काळमां
थता परिणाममां वर्ततुं–वर्ततुं द्रव्य नित्य टकी रह्युं छे. तेना एकेक परिणाममां उत्पाद–व्यय–धु्रवपणुं छे–ए वात
थई गई छे. ने ते द्रव्य पोते पण उत्पाद–व्यय–धु्रववाळुं छे. –ए वात चाले छे.
होय ते वर्तमान–वर्तमानपणे वर्तती रहे ने? –कांई भूत के भविष्यमां न रहे. वस्तु तो वर्तमानमां ज वर्ते.
अने ते एकेक समयनुं वर्तमान पण जो उत्पाद–व्यय–धु्रववाळुं न होय तो वस्तुनुं त्रिकाळ वर्तवापणुं साबित न
थाय. एटले समये समये थता उत्पाद–व्यय–धु्रववाळा परिणाममां ज वस्तु वर्ते छे. जेम द्रव्य त्रिकाळी सत् छे
तेम तेना त्रणेकाळना परिणाम पण एकेक समयनुं सत छे. एकेक परिणामने उत्पाद–व्यय–धु्रवयुक्त सत्
साबित करीने, अहीं परिणाममां वर्तनारा द्रव्यने उत्पाद–व्यय–धु्रवयुक्त सत् साबित करे छे.
वर्ततुं होवाथी द्रव्य पण उत्पाद–व्यय–धु्रववाळुं ज छे. परिणामना उत्पाद–व्यय–धु्रव सिद्ध करतां, ते परिणाममां
वर्तनारा परिणामीना उत्पाद–व्यय–धु्रव सिद्ध थई ज जाय छे. माटे कह्युं के द्रव्यने त्रिलक्षण अनमोदवुं.
अनमोदवुं एटले होंशथी मानवुं, आनंदथी संमत करवुं.
द्रव्यद्रष्टि थतां आनंदनो अनुभव थया विना रहे नहि. माटे कह्युं के... ‘आनंदथी संमत करवुं. ’
परिणाम ते समये ज थाय, आघोपाछो न थाय. जेम त्रिकाळी सत् छे तेम वर्तमान पण सत् छे. जेम त्रिकाळी
सत् पलटीने बीजा रूपे थई जतुं नथी तेम वर्तमान सत् पण पलटीने भूत के भविष्यपणे थई जतुं नथी.
त्रणेकाळना समय समयना वर्तमान परिणाम तेनो स्वसमय (स्व–काळ) छोडीने पहेलांं के पछीना समये न
थाय. जेटला त्रणकाळना समयो तेटला द्रव्यना परिणामो; तेमां जे समयनो जे वर्तमान परिणाम छे ते
परिणाम पोतानुं वर्तमानपणुं छोडीने भूत के भविष्यमां न थाय. बस! दरेक परिणाम पोतपोताना काळमां
वर्तमान सत् छे. ते सतने कोई फेरवी न शके. सतने फेरववानुं माने ते मिथ्याद्रष्टि छे, तेने ज्ञातास्वभावनी
प्रतीत नथी. जेम चेतनने फेरवीने जड करी शकातुं नथी तेम द्रव्यना