Atmadharma magazine - Ank 087
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: ५४: : आत्मधर्म: ८७
गई; कोई परिणामो आघापाछा न थाय ए निर्णयमां तो सर्वज्ञतानो निर्णय ने ज्ञायक द्रव्यनी द्रष्टि थई
जाय छे.
आत्मामां वर्तमान जे ज्ञानअवस्था छे ते अवस्थामां ज्ञानगुण वर्ती रह्यो छे, बीजी अवस्था थशे त्यारे
तेमां वर्तमान वर्तशे ने त्रीजी अवस्था वखते ते त्रीजी अवस्थामां वर्तमान वर्तशे. ए रीते, बीजी–त्रीजी–चोथी
एम बधी ये अवस्थाओना प्रवाहनो पिंड ते ज्ञानगुण छे. एवा अनंतगुणोनो पिंड ते द्रव्य छे. द्रव्यना समये
समये जे परिणामो थाय छे ते परिणामो पोतानी अपेक्षाए उत्पादरूप छे, पूर्वना अभावनी अपेक्षाए व्ययरूप
छे, ने सळंग प्रवाहमां वर्तनारा अंशपणे ते धु्रव छे. आवो उत्पाद–व्यय–धुववाळो परिणाम छे ते दरेक द्रव्यनो
स्वभाव छे. ने एवा स्वभावमां द्रव्य नित्य वर्ती रह्युं छे तेथी द्रव्य पोते पण उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभाववाळुं छे–
एम अनुमोदवुं.
दरेक चीज पलटती–नित्य छे. जो वस्तु एकली ‘नित्य’ ज होय तो तेमां दुःख–सुख ईत्यादि कार्य थई शके
नहि, अने जो वस्तु एकांत ‘पलटती’ ज होय तो ते त्रिकाळी टकी शके नहि, बीजी क्षणे तेनो सर्वथा अभाव
थई जाय. माटे वस्तु एकली नित्य, के एकली पलटती नथी, पण नित्य टकीने क्षणेक्षणे ते पलटे छे. ए प्रमाणे
नित्य–पलटती वस्तु कहो के ‘उत्पाद–व्यय–ध्रौव्ययुक्तं सत्’ कहो, तेनुं आ वर्णन छे. नानामां नाना काळमां
थता परिणाममां वर्ततुं–वर्ततुं द्रव्य नित्य टकी रह्युं छे. तेना एकेक परिणाममां उत्पाद–व्यय–धु्रवपणुं छे–ए वात
थई गई छे. ने ते द्रव्य पोते पण उत्पाद–व्यय–धु्रववाळुं छे. –ए वात चाले छे.
बधा पदार्थो सत् छे. पदार्थ ‘छे’ एम कहेतां ज तेनुं सत्पणुं आवी जाय छे. पदार्थोनुं सत्पणुं पूर्व
(९८मी गाथामां) सिद्ध करी गया छे. पदार्थो सत् छे, ने सत् ते उत्पाद–व्यय–धु्रव सहित छे. कोई पण वस्तु
होय ते वर्तमान–वर्तमानपणे वर्तती रहे ने? –कांई भूत के भविष्यमां न रहे. वस्तु तो वर्तमानमां ज वर्ते.
अने ते एकेक समयनुं वर्तमान पण जो उत्पाद–व्यय–धु्रववाळुं न होय तो वस्तुनुं त्रिकाळ वर्तवापणुं साबित न
थाय. एटले समये समये थता उत्पाद–व्यय–धु्रववाळा परिणाममां ज वस्तु वर्ते छे. जेम द्रव्य त्रिकाळी सत् छे
तेम तेना त्रणेकाळना परिणाम पण एकेक समयनुं सत छे. एकेक परिणामने उत्पाद–व्यय–धु्रवयुक्त सत्
साबित करीने, अहीं परिणाममां वर्तनारा द्रव्यने उत्पाद–व्यय–धु्रवयुक्त सत् साबित करे छे.
द्रव्यनो एक वर्तमान वर्ततो परिणाम पोतापणे उत्पादरूप छे, पोतानी पहेलांंना परिणाम अपेक्षाए
व्ययरूप छे ने सळंग प्रवाहमां ते धु्रव छे. ए प्रमाणे परिणाम उत्पाद–व्यय–धु्रववाळो छे ने ते परिणाममां द्रव्य
वर्ततुं होवाथी द्रव्य पण उत्पाद–व्यय–धु्रववाळुं ज छे. परिणामना उत्पाद–व्यय–धु्रव सिद्ध करतां, ते परिणाममां
वर्तनारा परिणामीना उत्पाद–व्यय–धु्रव सिद्ध थई ज जाय छे. माटे कह्युं के द्रव्यने त्रिलक्षण अनमोदवुं.
अनमोदवुं एटले होंशथी मानवुं, आनंदथी संमत करवुं.
जो समय समयना परिणामनी आ वात समजे तो क्यांय परमां घालमेल करवानो अहंकार रहे नहि ने
एकला रागादि परिणाम उपर पण द्रष्टि रहे नहि पण परिणामी एवा त्रिकाळी द्रव्यनी द्रष्टि थई जाय; ने
द्रव्यद्रष्टि थतां आनंदनो अनुभव थया विना रहे नहि. माटे कह्युं के... ‘आनंदथी संमत करवुं. ’
जेम त्रिकाळी सत्मां जे चैतन्य छे ते चैतन्य ज रहे छे ने जड छे ते जड ज रहे छे, चैतन्य मटीने जड
नथी थतुं ने जड मटीने चैतन्य नथी थतुं. तेम एक समयना सत्मां पण–जे परिणाम जे समयमां सत् छे ते
परिणाम ते समये ज थाय, आघोपाछो न थाय. जेम त्रिकाळी सत् छे तेम वर्तमान पण सत् छे. जेम त्रिकाळी
सत् पलटीने बीजा रूपे थई जतुं नथी तेम वर्तमान सत् पण पलटीने भूत के भविष्यपणे थई जतुं नथी.
त्रणेकाळना समय समयना वर्तमान परिणाम तेनो स्वसमय (स्व–काळ) छोडीने पहेलांं के पछीना समये न
थाय. जेटला त्रणकाळना समयो तेटला द्रव्यना परिणामो; तेमां जे समयनो जे वर्तमान परिणाम छे ते
परिणाम पोतानुं वर्तमानपणुं छोडीने भूत के भविष्यमां न थाय. बस! दरेक परिणाम पोतपोताना काळमां
वर्तमान सत् छे. ते सतने कोई फेरवी न शके. सतने फेरववानुं माने ते मिथ्याद्रष्टि छे, तेने ज्ञातास्वभावनी
प्रतीत नथी. जेम चेतनने फेरवीने जड करी शकातुं नथी तेम द्रव्यना