ज्ञानस्वभावनी प्रतीत नथी एटले ज्ञेयोना आवा व्यवस्थित स्वभावनी प्रतीत नथी बेसती.
वस्तु होय ज नहीं. बंने एम ने एम अनादिअनंत छे. त्रणेकाळमांथी एक पण समयना वर्तमानने काढी नाखो
तो त्रिकाळी वस्तु ज सिद्ध थई शके नहीं. त्रणे काळना वर्तमाननो पिंड ते सत्द्रव्य छे, ने ते त्रणे काळनो दरेक
वर्तमान परिणाम पोताना अवसरमां सत् छे, ते पोतापणे उत्पादरूप छे, पूर्वनी अपेक्षाए व्ययरूप छे ने सळंग
वस्तुना वर्तमानपणे धु्रवरूप छे. आवा उत्पाद–व्यय–धु्रवयुक्त परिणाम ते सत् छे ने ते द्रव्यनो स्वभाव छे.
आवा सत्ने कोण फेरवे? सत्ने जेम होय तेम जाणे पण सत्ने कोई फेरवी शके नहि.
रुचि तरफ श्रद्धा ढळी जाय छे. अंशने अंश तरीके ने अंशीने अंशी तरीके श्रद्धामां लेतां श्रद्धानुं आखुं जोर अंश
उपरथी खसीने त्रिकाळी द्रव्य–गुण तरफ ढळी जाय छे. ए ज सम्यग्दर्शन छे.
जाणतां तेना उपर त्रिकाळी जोर आव्युं, एटले तेनी ज मुख्यता थई अने तेनी रुचिमां श्रद्धानुं बळ वळी गयुं.
आ रीते स्वज्ञेयने जाणतां सम्यक्त्व आवी जाय छे. माटे आ ज्ञेय–अधिकारनुं बीजुं नाम सम्यक्त्व–अधिकार
पण छे.
नथी, राग जड साथे तादात्म्यवाळो छे’–एम कहेवामां आवे छे. त्यां द्रष्टिअपेक्षाए रागने परमां नांखी दीधो
ने, शुद्ध–द्रव्यनी द्रष्टि करावी. अने अहीं, आ प्रवचनसारमां ज्ञान–अपेक्षाए कथन छे तेथी आखुं य स्वज्ञेय
बताववा रागने पण स्वज्ञेयमां लीधो. द्रष्टिअपेक्षाए राग परमां जाय छे ने ज्ञानअपेक्षाए राग स्वज्ञेयमां
आवे छे; परंतु रागमां ज स्वज्ञेय पूरुं थई जतुं नथी. रागरहित द्रव्य–गुणस्वभाव ते पण स्वज्ञेय छे. एम
द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेने स्वज्ञेय तरीके जाण्या त्यां रागमांथी एकत्वबुद्धि छूटीने रुचिनुं जोर द्रव्य तरफ वळी
गयुं. एकला रागने आखुं तत्व स्वीकारतां स्वज्ञेय आखुं प्रतीतमां आवतुं न हतुं. ने द्रव्य–गुण–पर्यायरूप
आखा स्वज्ञेयनी प्रतीत थतां ते प्रतीतनुं जोर त्रिकाळी तरफ वधी जाय छे, एटले त्रिकाळीनी मुख्यता थईने ते
तरफ रुचिनुं जोर वळे छे. ए रीते आमां पण द्रव्यद्रष्टि आवी जाय छे.
मिथ्यारुचि हती; द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेने ज्ञेय तरीके जाणीने अव्यक्त–शक्तिरूप अंर्तस्वभाव तरफ ढळी जाय
छे त्यारे ज स्वज्ञेयने आखुं प्रतीतमां लीधुं छे अने त्यारे ज, तेणे भगवाने कहेलुं द्रव्य–गुण–पर्यायनुं स्वरूप
सांभळ्युं–एम कहेवाय छे.
स्वज्ञेय छे, तेमां द्रव्यने द्रव्य तरीके जाणे, गुणने गुण तरीके जाणे ने पर्यायने पर्याय तरीके जाणे तो ज्ञान साचुं
थाय, पण ज्ञान जेम छे तेम न जाणे के क्षणिक पर्यायने ज आखुं तत्त्व मानी ल्ये अथवा तो क्षणिक पर्यायने
सर्वथा जाणे ज नहि–तो ते ज्ञान साचुं न थाय. अने पदार्थना साचा ज्ञान विना श्रद्धा पण साची न थाय, ने
ज्ञान–श्रद्धान विना सम्यक्चारित्र, वीतरागता के मुक्ति थाय नहीं.