ज्यां वस्तुने त्रिलक्षण जाणी त्यां वस्तु पोते सम्यक्स्वभावमां वळ्या वगर रहे नहि, –वस्तु सम्यक्स्वभावपणे
परिणमे एटले अपूर्व आनंदनो अनुभव थाय ज. माटे अहीं कह्युं के आवा वस्तुस्वभावने आनंदथी मान्य
करवो.
आवा स्वज्ञेयने जाणे अने माने त्यां वस्तुस्वभावनी सम्यक्प्रतीति अने अपूर्व आनंदनो अनुभव थया विना
रहे नहीं.
तरफ वळे छे, ते रुचिना जोरे निर्विकल्पता थया विना रहे नहि. निर्विकल्पतामां आनंदनो अनुभव पण भेगो
ज होय.
उत्तर:– आटला काळमां आटला जीव मोक्षे जाय–एवी गणतरीनी अहीं मुख्यता नथी, पण केम मोक्ष
अने पोतानो मोक्ष थाय. आत्मानो माोक्ष क्यारे थाय– एम काळनी मुख्यता नथी, पण आत्मानो मोक्ष कई
रीते थाय ते ज मुख्य प्रयोजन छे, ने तेनी ज आ वात चाले छे.
थया एटले समभाव–वीतरागता बतावे छे;–क्षायिक–सम्यक्त्व ने क्षायिकचारित्र बंने साथे आवी जाय तेवी
अपूर्व वात छे. आंकडो तो जे छे ते छे, पण अहींथी पोताना भावनो आरोप करवो छे ने!
त्यां ‘मिथ्यात्वने फेरवीने सम्यक्त्व करुं’ ए वात न रही. केम के, जेणे एम स्वीकार्युं तेणे पोताना ज्ञायक
भावने ज स्वीकार्यो ने ते द्रव्यस्वभाव तरफ वळ्यो त्यां वर्तमान परिणाममां सम्यक्त्वनो उत्पाद थयो, ने ते
परिणाममां पूर्वना मिथ्यात्वपरिणामनो तो अभाव ज छे. पूर्वना तीव्रपापना परिणाम वर्तमान परिणाममां
नडता नथी केम के वर्तमानमां तेनो अभाव छे. ‘पूर्वना तीव्र पापना परिणाम अत्यारे नडशे’ एम जेणे मान्युं
तेने ते वर्तमान ऊंधी मान्यता नडे छे, पण पूर्वना पाप तो तेने पण नडतां नथी. ‘पूर्वना तीव्रपापना परिणाम
अत्यारे नडशे’ एम जेणे मान्युं तेणे द्रव्यने त्रिलक्षण नथी जाण्युं. जो त्रिलक्षण द्रव्यने जाणे तो, तेत्रिलक्षण
द्रव्यना वर्तमान उत्पादपरिणाममां पूर्वपरिणामनो व्यय छे, माटे ‘पूर्व परिणाम नडे छे’ एम ते न माने, पण
समय समयना वर्तमान परिणामने स्वतंत्र सत् जाणे, अने तेनी द्रष्टि ते परिणाम जेना छे एवा द्रव्य उपर
जाय;–एटले द्रव्यद्रष्टिमां तेने वीतरागतानो ज उत्पाद थतो जाय. –आ रीते आमां मोक्षमार्ग आवी जाय छे.