Atmadharma magazine - Ank 087
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: पोष: २४७७ : ५७:
अहो, आ तो आखो ज्ञेयनो पिंड प्रतीतमां लेवानो मार्ग कहो के आखा ज्ञायकपिंडनी द्रष्टि कहो, सम्यक्
नियतवाद कहो के यथार्थ मोक्षमार्गनो पुरुषार्थ कहो, वीतरागता कहो के धर्म कहो, –ते बधुं आमां आवी जाय छे.
श्री आचार्यदेव कहे छे के वस्तुनो स्वभाव ज आ (उपर कह्यो तेवो) छे, आवो वस्तुस्वभाव
आनंदपूर्वक मानवो–संमत करवो. जे आवा वस्तुस्वभावने जाणे तेने अपूर्व आनंद प्रगट्या वगर रहे नहि.
ज्यां वस्तुने त्रिलक्षण जाणी त्यां वस्तु पोते सम्यक्स्वभावमां वळ्‌या वगर रहे नहि, –वस्तु सम्यक्स्वभावपणे
परिणमे एटले अपूर्व आनंदनो अनुभव थाय ज. माटे अहीं कह्युं के आवा वस्तुस्वभावने आनंदथी मान्य
करवो.
जुओ, ते ते परिणामने वस्तु ओळंगती नथी, एटले द्रष्टि क्यां गई? वस्तु उपर द्रष्टि गई, –
परिणाम–परिणामीनी एकता थई, एटले आखुं सत् एकाकार थई गयुं, –आखुं स्वज्ञेय अभेद थई गयुं.
आवा स्वज्ञेयने जाणे अने माने त्यां वस्तुस्वभावनी सम्यक्प्रतीति अने अपूर्व आनंदनो अनुभव थया विना
रहे नहीं.
जेम केवळज्ञान लोकालोक–ज्ञेयने सत्पणे जाणे छे, तेम सम्यग्द्रष्टि पण तेने ज्ञेय तरीके कबूले छे, ने तेने
जाणनारा पोताना ज्ञानस्वभावने पण ते स्वज्ञेय तरीके कबूले छे. त्यां तेनी रुचि स्वभाववान् एवा अंर्तद्रव्य
तरफ वळे छे, ते रुचिना जोरे निर्विकल्पता थया विना रहे नहि. निर्विकल्पतामां आनंदनो अनुभव पण भेगो
ज होय.
प्रश्न:– केटला काळमां केटला जीव मोक्षे जाय? एवी तो कांई वात आमां आवती नथी?
उत्तर:– आटला काळमां आटला जीव मोक्षे जाय–एवी गणतरीनी अहीं मुख्यता नथी, पण केम मोक्ष
थाय? तेनी मुख्य वात छे. पोते आवा यथार्थ सवभावने ओळखे तो पोताने सम्यक्त्व ने वीतरागता थाय,
अने पोतानो मोक्ष थाय. आत्मानो माोक्ष क्यारे थाय– एम काळनी मुख्यता नथी, पण आत्मानो मोक्ष कई
रीते थाय ते ज मुख्य प्रयोजन छे, ने तेनी ज आ वात चाले छे.
जे रीते सत् छे ते रीते कबूले तो ज्ञान सत् थाय ने शांति आवे. आ गाथामां बे सम–अंक छे [९९]
अने ते पण बे नवडा. नव प्रकारना क्षायिकभाव छे माटे नवडो ते क्षायिकभाव सूचक छे ने बे नवडा भेगा
थया एटले समभाव–वीतरागता बतावे छे;–क्षायिक–सम्यक्त्व ने क्षायिकचारित्र बंने साथे आवी जाय तेवी
अपूर्व वात छे. आंकडो तो जे छे ते छे, पण अहींथी पोताना भावनो आरोप करवो छे ने!
वर्तमान–वर्तमान वर्तता परिणाममां वस्तु वर्ती रही छे, एटले आखी वस्तु ज वर्तमानमां वर्ते छे. ते
वस्तु उत्पाद–व्यय–ध्रुववाळी छे. अहीं उत्पाद–व्यय–ध्रुव कहीने सत्ने साबित करे छे.
आत्मा सत्, जड सत्, एक द्रव्यना अनंत गुणो सत्, त्रणकाळनां स्वअवसरमां थतां परिणामो सत्,
एकेक समयना परिणाम उत्पाद–व्यय–धु्रवात्मक सत्! बस, आ सत्मां कांई फेरफार थाय नहि. –आम स्वीकार्युं
त्यां ‘मिथ्यात्वने फेरवीने सम्यक्त्व करुं’ ए वात न रही. केम के, जेणे एम स्वीकार्युं तेणे पोताना ज्ञायक
भावने ज स्वीकार्यो ने ते द्रव्यस्वभाव तरफ वळ्‌यो त्यां वर्तमान परिणाममां सम्यक्त्वनो उत्पाद थयो, ने ते
परिणाममां पूर्वना मिथ्यात्वपरिणामनो तो अभाव ज छे. पूर्वना तीव्रपापना परिणाम वर्तमान परिणाममां
नडता नथी केम के वर्तमानमां तेनो अभाव छे. ‘पूर्वना तीव्र पापना परिणाम अत्यारे नडशे’ एम जेणे मान्युं
तेने ते वर्तमान ऊंधी मान्यता नडे छे, पण पूर्वना पाप तो तेने पण नडतां नथी. ‘पूर्वना तीव्रपापना परिणाम
अत्यारे नडशे’ एम जेणे मान्युं तेणे द्रव्यने त्रिलक्षण नथी जाण्युं. जो त्रिलक्षण द्रव्यने जाणे तो, तेत्रिलक्षण
द्रव्यना वर्तमान उत्पादपरिणाममां पूर्वपरिणामनो व्यय छे, माटे ‘पूर्व परिणाम नडे छे’ एम ते न माने, पण
समय समयना वर्तमान परिणामने स्वतंत्र सत् जाणे, अने तेनी द्रष्टि ते परिणाम जेना छे एवा द्रव्य उपर
जाय;–एटले द्रव्यद्रष्टिमां तेने वीतरागतानो ज उत्पाद थतो जाय. –आ रीते आमां मोक्षमार्ग आवी जाय छे.
वीतराग के राग, ज्ञान के अज्ञान, सिद्ध के निगोद, कोई पण एक समयना परिणामने जो काढी नांखो तो