उपादानना परिणाम थाय ए वात आमां क्यांय रहेती नथी. दरेक वस्तु पोते नित्यपरिणामीस्वभाववाळी छे–
‘परिणमतो–परिणमतो नित्य’ स्वभाव छे. आवा स्वभावमां सदाय रहेली वस्तु पोते उत्पाद–व्यय–धु्रव सहित
छे–एम आनंदथी मानवुं–अनुमोदवुं.
‘जेम जेणे (अमुक) लंबाई ग्रहण करेली छे एवा लटकता मोतीना हारने विषे, पोतपोतानां स्थानोमां
पहेलांनां मोतीओ नहि प्रगट थतां होवाथी तथा बधेय परस्पर अनुस्यूति रचनारो दोरो अवस्थित होवाथी
त्रिलक्षणपणुं प्रसिद्धि पामे छे.....’ (पृ. १६५–६)
स्थाने पछीपछीनुं मोती प्रकाशे छे, एटले के मोती अपेक्षाए हारनो उत्पाद छे. तथा एक पछी बीजा मोतीने
लक्षमां लेतां पहेलांनुं मोती लक्षमांथी छूटी जाय छे एटले पहेलांंनुं मोती पछीना स्थाने प्रकाशतुं नथी ते
–ए रीते हार उत्पाद–व्यय–धु्रव एवां त्रण लक्षणवाळो नक्की थाय छे. हारनुं दरेक मोती पोत–पोताना स्थानमां
छे, पहेलुं मोती बीजे न होय, बीजुं त्रीजे न होय. ज्यां जे छे त्यां ज ते छे; पहेलाना स्थानमां पहेलुं मोती छे,
पछीना स्थानमां पछीनुं मोती छे, ने हारनो सळंग दोरो बधे य छे. मोतीनी माळा गणतां पछी पछीनुं मोती
आंगळीना स्पर्शमां आवतुं जाय छे ते अपेक्षाए उत्पाद, पहेलांं पहेलांंनुं मोती छूटतुं जाय छे ते अपेक्षाए व्यय,
ने माळाना प्रवाह तरीके प्रत्येक मोतीमां वर्तती माळा धु्रव छे–ए रीते तेमां उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप त्रिलक्षणपणुं
प्रसिद्धि पामे छे.
‘मोतीना हारनी जेम, जेणे नित्यवृत्ति ग्रहण करेली छे एवा रचाता (परिणमता) द्रव्यने विषे,
परिणामो प्रगट थता होवाथी अने पहेलांं पहेलांंना परिणामो नहि प्रगट थता होवाथी तथा बधे य परस्पर
अनुस्यूति रचनारो प्रवाह अवस्थित (–टकतो) होवाथी त्रिलक्षणपणुं प्रसिद्धि पामे छे. ’ (पृ. १६६)
द्रष्टांतमां लटकतो हार हतो, सिद्धांतमां परिणमतुं द्रव्य छे.
द्रष्टांतमां मोतीओने पोतपोतानुं स्थान हतुं, सिद्धांतमां परिणामोने पोतपोतानो अवसर छे.
उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभाववाळुं आखुं द्रव्य सत् छे, तेमां क्यांय फेरफार थतो नथी. –आम आखुं सत्
ज्ञातापणे रह्युं. एम ने एम आखुं द्रव्य उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभावथी सत् पड्युं छे–एम द्रव्यमां द्रष्टि जतां
सम्यक्त्वनो उत्पाद ने मिथ्यात्वनो व्यय थयो, ने पछी पण ते द्रव्यनी सन्मुखताथी क्रमेक्रमे वीतरागता वधती
जाय छे. –आवो धर्म छे.
आडोअवळो थतो नथी. तेम द्रव्यना त्रणकाळना परिणामनो निश्चित् स्वअवसर छे, द्रव्यना त्रणकाळना
परिणामोनो पोतपोतानो जे अवसर छे ते अवसरमां ज ते थाय छे, आडाअवळा थता नथी. –आवो निश्चय
करतां ज ज्ञानमां वीतरागता थाय छे. आ नक्की करतां अनंतुं वीर्य परथी पाछुं खसीने द्रव्य तरफ वळी गयुं,