Atmadharma magazine - Ank 087
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: ६०: : आत्मधर्म: ८७
पोताना वर्तमानपरिणामने ओळंगीने बीजाना परिणाम करवा जाय एम कदी बने नहीं. निमित्तना बळथी
उपादानना परिणाम थाय ए वात आमां क्यांय रहेती नथी. दरेक वस्तु पोते नित्यपरिणामीस्वभाववाळी छे–
‘परिणमतो–परिणमतो नित्य’ स्वभाव छे. आवा स्वभावमां सदाय रहेली वस्तु पोते उत्पाद–व्यय–धु्रव सहित
छे–एम आनंदथी मानवुं–अनुमोदवुं.
× × ×
हवे मोतीना हारनुं द्रष्टांत आपीने वस्तुनां उत्पाद–व्यय–धु्रव समजावे छे:
‘जेम जेणे (अमुक) लंबाई ग्रहण करेली छे एवा लटकता मोतीना हारने विषे, पोतपोतानां स्थानोमां
प्रकाशतां समस्त मोतीओमां, पछीपछीनां स्थानोए पछीपछीनां मोतीओ प्रगट थतां होवाथी अने पहेलांं–
पहेलांनां मोतीओ नहि प्रगट थतां होवाथी तथा बधेय परस्पर अनुस्यूति रचनारो दोरो अवस्थित होवाथी
त्रिलक्षणपणुं प्रसिद्धि पामे छे.....’ (पृ. १६५–६)
हारमां एक–बे मोती नथी पण घणां मोतीओनो हार छे. अने ते हार एम ने एम पडेलो नथी पण
‘लटकतो’ लीधो छे. १०८ मोतीनो हार ल्यो तो तेमां बधांय मोती पोतपोताना स्थाने प्रकाशे छे ने पछीपछीना
स्थाने पछीपछीनुं मोती प्रकाशे छे, एटले के मोती अपेक्षाए हारनो उत्पाद छे. तथा एक पछी बीजा मोतीने
लक्षमां लेतां पहेलांनुं मोती लक्षमांथी छूटी जाय छे एटले पहेलांंनुं मोती पछीना स्थाने प्रकाशतुं नथी ते
अपेक्षाए हारनो व्यय छे. अने बधां मोतीओमां परस्पर संबंध जोडनारो सळंग दोरो होवाथी हार धु्रवरूप छे.
–ए रीते हार उत्पाद–व्यय–धु्रव एवां त्रण लक्षणवाळो नक्की थाय छे. हारनुं दरेक मोती पोत–पोताना स्थानमां
छे, पहेलुं मोती बीजे न होय, बीजुं त्रीजे न होय. ज्यां जे छे त्यां ज ते छे; पहेलाना स्थानमां पहेलुं मोती छे,
पछीना स्थानमां पछीनुं मोती छे, ने हारनो सळंग दोरो बधे य छे. मोतीनी माळा गणतां पछी पछीनुं मोती
आंगळीना स्पर्शमां आवतुं जाय छे ते अपेक्षाए उत्पाद, पहेलांं पहेलांंनुं मोती छूटतुं जाय छे ते अपेक्षाए व्यय,
ने माळाना प्रवाह तरीके प्रत्येक मोतीमां वर्तती माळा धु्रव छे–ए रीते तेमां उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप त्रिलक्षणपणुं
प्रसिद्धि पामे छे.
ए प्रमाणे द्रष्टांत कह्युं, हवे सिद्धांत कहे छे–
‘मोतीना हारनी जेम, जेणे नित्यवृत्ति ग्रहण करेली छे एवा रचाता (परिणमता) द्रव्यने विषे,
पोतपोताना अवसरोमां प्रकाशता (प्रगटता) समस्त परिणामोमां, पछीपछीना अवसरोए पछीपछीना
परिणामो प्रगट थता होवाथी अने पहेलांं पहेलांंना परिणामो नहि प्रगट थता होवाथी तथा बधे य परस्पर
अनुस्यूति रचनारो प्रवाह अवस्थित (–टकतो) होवाथी त्रिलक्षणपणुं प्रसिद्धि पामे छे. ’ (पृ. १६६)
द्रष्टांतमां अमुक लंबाईवाळो हार हतो, सिद्धांतमां नित्यवृत्तिवाळुं द्रव्य छे.
द्रष्टांतमां लटकतो हार हतो, सिद्धांतमां परिणमतुं द्रव्य छे.
द्रष्टांतमां मोतीओने पोतपोतानुं स्थान हतुं, सिद्धांतमां परिणामोने पोतपोतानो अवसर छे.
उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभाववाळुं आखुं द्रव्य सत् छे, तेमां क्यांय फेरफार थतो नथी. –आम आखुं सत्
लक्षमां आव्या विना ज्ञानमां धीरज थाय नहि. जेने परमां क्यांय फेरफार करवानी बुद्धि छे तेनुं ज्ञान अधीरुं–
आकुळव्याकुळ छे, ने सत्ने जाणतां क्यांय फेरफारनी बुद्धि न रही एटले ज्ञान धीरुं थईने पोतामां ठर्युं–
ज्ञातापणे रह्युं. एम ने एम आखुं द्रव्य उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभावथी सत् पड्युं छे–एम द्रव्यमां द्रष्टि जतां
सम्यक्त्वनो उत्पाद ने मिथ्यात्वनो व्यय थयो, ने पछी पण ते द्रव्यनी सन्मुखताथी क्रमेक्रमे वीतरागता वधती
जाय छे. –आवो धर्म छे.
दरेक द्रव्य नित्य–टकतुं छे; नित्य–टकतुं द्रव्य लटकता हारनी जेम सदाय परिणमतुं छे; तेना परिणामो
पोतपोताना अवसरमां प्रकाशे छे. जेम माळामां मोतीओनो क्रम नक्की गोठवायेलो छे, माळा फरतां ते क्रम
आडोअवळो थतो नथी. तेम द्रव्यना त्रणकाळना परिणामनो निश्चित् स्वअवसर छे, द्रव्यना त्रणकाळना
परिणामोनो पोतपोतानो जे अवसर छे ते अवसरमां ज ते थाय छे, आडाअवळा थता नथी. –आवो निश्चय
करतां ज ज्ञानमां वीतरागता थाय छे. आ नक्की करतां अनंतुं वीर्य परथी पाछुं खसीने द्रव्य तरफ वळी गयुं,
पर्याय–मूढतानो नाश थई गयो, ने द्रव्यनी सन्मुखताथी वीत