Atmadharma magazine - Ank 087
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: ६२: : आत्मधर्म: ८७
द्रव्यनी सत्ता एटले के द्रव्यनुं होवापणुं उत्पाद–व्यय–धु्रववाळुं छे. एकला उत्पादरूपे, व्ययरूपे के धु्रवरूपे
द्रव्यनी सत्ता नथी पण उत्पाद–व्यय–धु्रव एवा त्रण लक्षणवाळी ज द्रव्यनी सत्ता छे. उत्पाद, व्यय अने धु्रव
एवी त्रण जुदी जुदी सत्ता नथी, पण ते त्रणे थईने एक सत्ता छे.
पहेलांं तो जे परिणाम ऊपज्या ते पोतानी अपेक्षाए उत्पादरूप, पूर्वनी अपेक्षाए व्ययरूप अने सळंग
प्रवाहनी अपेक्षाए धु्रवरूप–एम परिणामनी वात लीधी हती. अने अहीं तो हवे छेल्लो सरवाळो करीने द्रव्यमां
उत्पाद–व्यय–धु्रव उतारतां एम कह्युं के द्रव्यमां पछी पछीना परिणाम प्रगट थाय छे तेथी द्रव्यनो उत्पाद छे,
पहेलांं पहेलांंना परिणाम ऊपजता नथी तेथी द्रव्य व्ययरूप छे, अने सर्व परिणाममां सळंगपणे वर्ततुं होवाथी
द्रव्य ज धु्रव छे. ए रीते द्रव्यने त्रिलक्षण अनुमोदवुं.
अहो! बधांय द्रव्यो पोताना वर्तमान परिणामपणे ऊपजे छे, पूर्वना परिणाम वर्तमानमां नथी रहेता
एटले पूर्वपरिणामपणे व्यय पामे छे ने सळंगपणे बधाय परिणामना प्रवाहमां द्रव्य धु्रवपणे वर्ते छे. बस!
उत्पाद–व्यय–धु्रवपणे वर्ततां द्रव्यो नकोर सत् छे. आवा नकोर सत्मां कांई आघुंपाछुं थाय नहि. पोताना
ज्ञानमां आवा नकोर सत्ने स्वीकारतां, फेरफार करवानी बुद्धि के ‘आम केम’ एवी विस्मयता टळी, तेमां ज
सम्यक्श्रद्धा अने वीतरागता आवी गई. एटले ज्ञायकपणुं ते मोक्षनो मार्ग थयो.
आ ‘वस्तुविज्ञान’ कहेवाय छे. पदार्थनो जेवो स्वभाव छे तेवुं ज तेनुं ज्ञान करवुं ते पदार्थविज्ञान छे.
आवा पदार्थविज्ञान वगर कदी शांति थाय नहि. ज्यां, दरेक वस्तु उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभाववाळी छे एम जाण्युं
त्यां वस्तुना जुदापणानी वाड बंधाई गई. मारा उत्पाद–व्यय–धु्रवमां परनो अभाव ने परना उत्पाद–व्यय–
धु्रवमां मारो अभाव, मारा द्रव्य–गुण–पर्यायमां हुं, ने परना द्रव्य–गुण–पर्यायमां पर,–आम नक्की करतां परना
द्रव्य–गुण–पर्यायनुं स्वामित्व छोडीने पोते पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायनो रखोपियो थयो. स्वद्रव्य तरफ वळतां
पोते पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायनो रक्षक थयो एटले के धु्रव द्रव्यना आश्रये निर्मळ पर्यायनो उत्पाद थवा
मांडयो, ते ज धर्म छे. पहेलांं, परनुं हुं फेरवुं–एम मानतो त्यारे पराश्रयबुद्धिथी विकारभावोनी ज उत्पत्ति थती
हती ने पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायनी रक्षा करतो न हतो. तेथी ते अधर्म हतो.
आचार्यभगवाने आ गाथामां सत्ने उत्पाद–व्यय–धु्रवयुक्त बतावीने अद्भुत वात करी छे. वर्तमान
वर्तमान समयना परिणामनी आ वात छे, केम के आखुं द्रव्य वर्तमान परिणाममां साथे वर्ती रह्युं छे.
[अहीं पू. गुरुदेवश्रीनो आशय एम समजाववानो छे के परिणाम अने द्रव्य बंने साथे ज छे. द्रव्य क्यारेय
परिणाम वगरनुं न होय, परिणाम क्यारेय द्रव्य वगरना न होय. परिणाम अत्यारे थया ने द्रव्य गया
काळमां रही जाय–एम न होय; अने द्रव्य छे पण परिणाम नथी एम पण न बने. माटे परिणाम अने द्रव्य
बंने वर्तमानमां साथे छे–एम समजवुं.
] द्रव्यमां स्वकाळे सदाय वर्तमान परिणाम थाय छे, ज्यारे जुओ
त्यारे द्रव्य पोताना वर्तमान परिणाममां ज वर्ती रह्युं छे, एवा वर्तमान वर्तता द्रव्यनी प्रतीत ते
वीतरागतानुं मूळ छे.
‘परिणामनो स्व–अवसर’ कह्यो त्यां परिणामनुं जे वर्तवापणुं ते ज तेनो अवसर छे; अवसर अने
परिणाम–एम बे जुदी चीज नथी. जेनो जे अवसर छे ते वखते ते परिणाम वर्ते छे, ते परिणाममां वर्ततुं द्रव्य
उत्पादरूप छे, तेनी पहेलांंना परिणाममां द्रव्य वर्ततुं नथी तेथी ते व्ययरूप छे अने बधेय सळंगपणानी
अपेक्षाए द्रव्य धु्रव छे. ए रीते द्रव्यमां उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप त्रिलक्षणपणुं प्रसिद्धि पामे छे.
जीव अने अजीव बधां द्रव्यो अने तेना अनादिअनंत परिणामो सत् छे, ते सत् स्वयंसिद्ध छे, ते सत्नो
कोई बीजो रचनार के परिणमावनार नथी. जेम कोई द्रव्य पोतानुं स्वरूप छोडीने आडुंअवळुं न थाय तेम
द्रव्यना कोई परिणाम पण आडाअवळा न थाय. द्रव्यमां पोताना काळे दरेक परिणाम ऊपजे छे, पूर्वना
परिणाम नथी ऊपजता अने द्रव्य सळंग धाराए रह्या करे छे.–आवा उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभाववाळा द्रव्यने
जाणवाथी, पोताना ज्ञायकस्वभावनी प्रतीत थाय छे, ने