एवी त्रण जुदी जुदी सत्ता नथी, पण ते त्रणे थईने एक सत्ता छे.
उत्पाद–व्यय–धु्रव उतारतां एम कह्युं के द्रव्यमां पछी पछीना परिणाम प्रगट थाय छे तेथी द्रव्यनो उत्पाद छे,
पहेलांं पहेलांंना परिणाम ऊपजता नथी तेथी द्रव्य व्ययरूप छे, अने सर्व परिणाममां सळंगपणे वर्ततुं होवाथी
द्रव्य ज धु्रव छे. ए रीते द्रव्यने त्रिलक्षण अनुमोदवुं.
उत्पाद–व्यय–धु्रवपणे वर्ततां द्रव्यो नकोर सत् छे. आवा नकोर सत्मां कांई आघुंपाछुं थाय नहि. पोताना
ज्ञानमां आवा नकोर सत्ने स्वीकारतां, फेरफार करवानी बुद्धि के ‘आम केम’ एवी विस्मयता टळी, तेमां ज
सम्यक्श्रद्धा अने वीतरागता आवी गई. एटले ज्ञायकपणुं ते मोक्षनो मार्ग थयो.
त्यां वस्तुना जुदापणानी वाड बंधाई गई. मारा उत्पाद–व्यय–धु्रवमां परनो अभाव ने परना उत्पाद–व्यय–
धु्रवमां मारो अभाव, मारा द्रव्य–गुण–पर्यायमां हुं, ने परना द्रव्य–गुण–पर्यायमां पर,–आम नक्की करतां परना
द्रव्य–गुण–पर्यायनुं स्वामित्व छोडीने पोते पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायनो रखोपियो थयो. स्वद्रव्य तरफ वळतां
पोते पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायनो रक्षक थयो एटले के धु्रव द्रव्यना आश्रये निर्मळ पर्यायनो उत्पाद थवा
मांडयो, ते ज धर्म छे. पहेलांं, परनुं हुं फेरवुं–एम मानतो त्यारे पराश्रयबुद्धिथी विकारभावोनी ज उत्पत्ति थती
हती ने पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायनी रक्षा करतो न हतो. तेथी ते अधर्म हतो.
काळमां रही जाय–एम न होय; अने द्रव्य छे पण परिणाम नथी एम पण न बने. माटे परिणाम अने द्रव्य
बंने वर्तमानमां साथे छे–एम समजवुं.
वीतरागतानुं मूळ छे.
उत्पादरूप छे, तेनी पहेलांंना परिणाममां द्रव्य वर्ततुं नथी तेथी ते व्ययरूप छे अने बधेय सळंगपणानी
अपेक्षाए द्रव्य धु्रव छे. ए रीते द्रव्यमां उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप त्रिलक्षणपणुं प्रसिद्धि पामे छे.
द्रव्यना कोई परिणाम पण आडाअवळा न थाय. द्रव्यमां पोताना काळे दरेक परिणाम ऊपजे छे, पूर्वना
परिणाम नथी ऊपजता अने द्रव्य सळंग धाराए रह्या करे छे.–आवा उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभाववाळा द्रव्यने
जाणवाथी, पोताना ज्ञायकस्वभावनी प्रतीत थाय छे, ने