प्रवाहमां पोते सळंगपणे धु्रव रहे छे, ए रीते वीतरागता थईने केवळज्ञान अने मुक्ति थाय छे.
हार वगेरे परिणाममां वर्ते छे, कुंडळ के हार वगेरे परिणामथी जुदुं सोनुं वर्ततुं नथी. तेम दरेक पदार्थ
पोताना वर्तमान वर्तता परिणाममां वर्ते छे, पोताना परिणामथी जुदुं कोई द्रव्य रहेतुं नथी. कोई पण
पदार्थ पोताना परिणामस्वभावने ओळंगीने परना परिणामने स्पर्शतो नथी; ने पर वस्तु तेना परिणामने
ओळंगीने पोताने स्पर्शती नथी. दरेक वस्तु जुदी जुदी पोत–पोताना परिणाममां ज रहे छे. आत्मा
पोताना ज्ञान के रागादि परिणाममां रहेलो छे, पण शरीरनी अवस्थामां आत्मा रहेलो नथी. शरीरनी
अवस्थामां पुद्गलो रहेला छे. अने शरीरना अनंत रजकणोमां पण खरेखर तो दरेक रजकण भिन्न भिन्न
पोतपोतानी अवस्थामां रह्यो छे. आवो वस्तुस्वभाव जोनारने परमां क्यांय एकत्वबुद्धि थती नथी ने
पर्यायबुद्धिना राग–द्वष थता नथी.
ते स्वभाव छे ने वस्तु स्वभाववान् छे. स्वभाववान्–द्रव्य पोताना परिणामस्वभावमां रहेलुं छे. कोई पण
वस्तु पोतानो स्वभाव छोडीने बीजाना स्वभावमां वर्ते अथवा तो बीजाना स्वभावने करे–एम कदी बने नहि.
शरीरनी अवस्थाओ छे ते पुद्गलना परिणाम छे, तेमां पुद्गलो वर्ते छे, आत्मा तेमां वर्ततो नथी; छतां
आत्मा ते शरीरनी अवस्थामां कांई करे–एम जेणे मान्युं तेनी मिथ्या मान्यता छे. जेम अफीणना कडवाश
वगेरेना उत्पाद–व्यय–धु्रवपरिणाममां अफीण ज रहेलुं छे, तेमां कांई गोळ रहेलो नथी, अने गोळना गळपण
वगेरेना उत्पाद–व्यय–धु्रवपरिणाममां गोळ ज रहेलो छे, तेमां कांई अफीण रहेलुं नथी. तेम आत्माना ज्ञान
वगेरेना उत्पाद–व्यय–धु्रवपरिणामस्वभावमां आत्मा ज रहेलो छे, तेमां कांई ईन्द्रियो के शरीरादि रहेलां नथी, –
माटे तेमनाथी आत्मा जाणतो नथी. अने पुद्गलना शरीर वगेरेना उत्पाद–व्यय–धु्रवपरिणामस्वभावमां
पुद्गलो ज रहेलां छे, तेमां कांई आत्मा रहेलो नथी, –माटे आत्मा शरीरादिनी क्रियाने करतो नथी. आम दरेक
पदार्थ पोतपोताना स्वभावमां ज रहेलो छे. बस, आवा पदार्थना स्वभावने जाणवो ते वीतरागीविज्ञान छे,
तेमां ज धर्म आवे छे.
स्वतंत्र अस्तित्वपणे रही शके. आ ज वात अस्ति–नास्तिरूप अनेकांतथी कहीए तो, दरेक पदार्थ पोताना
स्वचतुष्टयथी (द्रव्य–क्षेत्र–काळ ने भावथी) अस्तिरूप छे, ने परना चतुष्टयथी ते नास्तिरूप छे. आ प्रमाणे, दरेक
तत्त्व भिन्न भिन्न टकी रह्युं छे एम नक्की करतां, स्वतत्त्वने परतत्त्वथी जुदुं जाण्युं, ने पोताना स्वभाव–मां