Atmadharma magazine - Ank 087
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: ६४: : आत्मधर्म: ८७
वर्तता स्वभाववान् द्रव्यनी द्रष्टि थई, ए ज सम्यक्रुचि अने सम्यग्ज्ञान, तथा वीतरागतानुं कारण छे.
जेवी वस्तु होय तेवी जाणवी ते ज सम्यग्ज्ञान छे. जेम लौकिकमां गोळने गोळ जाणे ने अफीणने अफीण
जाणे तो गोळ अने अफीणनुं साचुं ज्ञान छे, पण जो गोळने अफीण जाणे के अफीणने गोळ जाणे तो ते
मिथ्याज्ञान छे. तेम जगतना पदार्थोमां जडचेतन दरेक पदार्थ स्वतंत्र छे, दरेक पदार्थ पोते पोताना उत्पाद–व्यय–
धु्रवस्वभावथी टकेलो छे–एम जाणवुं ते सम्यग्ज्ञान छे, ने एक पदार्थमां परने लीधे कांई थाय एम माने तो ते
मिथ्याज्ञान छे, तेणे पदार्थना स्वभावने जेम छे तेम जाण्यो नथी, पण विपरीत मान्यो छे.
आत्मानो ‘ज्ञायक’ स्वभाव छे ने पदार्थोनो ‘ज्ञेय’ स्वभाव छे; पदार्थोमां फेरफार–आघुंपाछुं थाय एवो
तेमनो स्वभाव नथी, ने तेमना स्वभावमां कांई फेरफार करे एवो ज्ञाननो स्वभाव नथी. जेम आंख अफीणने
अफीण तरीके ने गोळने गोळ तरीके देखे, पण अफीणने फेरवीने गोळ न बनावे ने गोळने फेरवीने अफीण न
बनावे, तेम ज ते अफीण पण पोतानो स्वभाव छोडीने गोळपणे थाय नहि ने गोळ पोतानो स्वभाव छोडीने
अफीणपणे थाय नहि. तेम आत्मानो ज्ञानस्वभाव बधाय स्व–पर ज्ञेयोने जेम छे तेम जाणे, पण क्यांय कांई
फेरफार करे नहि. तेम ज ज्ञेयो पण पोताना स्वभावने छोडीने बीजारूपे थाय नहि. बस; ज्ञान अने ज्ञेयना
आवा स्वभावनी प्रतीत ते वीतरागी श्रद्धा छे, आवुं ज्ञान ते वीतरागी विज्ञान छे.
स्वतंत्र ज्ञेयोने जेवां होय तेवां जाणवां ते सम्यग्ज्ञाननी क्रिया छे. ज्ञान शुं कार्य करे? –के जाणवानुं
कार्य करे. ए सिवाय क्यांय फेरफार करवानुं काम ज्ञान न करे. दरेक पदार्थ स्वयंसिद्ध सत् छे, ने तेनामां
पर्यायधर्म छे, ते पर्यायो उत्पाद–व्यय–धु्रव स्वभाववाळा छे. एटले पदार्थमां समये समये पर्यायनां उत्पाद–
व्यय–धु्रव थाय छे तेमां ते पदार्थ वर्ती रह्यो छे. आम स्वतंत्र द्रव्यस्वभावने जाणवो ते सम्यग्ज्ञान छे. जो
एकेक पर्यायनी स्वतंत्रता न जाणे तो तेणे द्रव्यनी स्वतंत्रताने पण जाणी नथी. केम के ‘सत्’ पोताना
परिणाममां वर्तीने टकेलुं छे. जो वस्तु पोताने टकवा माटे बीजाना परिणामनो आश्रय मागे तो ते वस्तु ज
‘सत्’ नथी रहेती. ‘सत्’नो स्वभाव पोताना ज परिणाममां वर्तवानो छे. सत् पोते स्वयं उत्पाद–व्यय–
ध्रौव्यात्मक छे. सत्ने पोताना परिणामनो उत्पाद जो बीजाथी थतो होय तो ते पोते ‘उत्पाद–व्यय–धु्रवयुक्त
सत्’ ज नथी रहेतुं. माटे उत्पाद––धु्रव– व्यय सत् छे–एम मानतां ज परिणामनी स्वतंत्रतानो स्वीकार तो
आवी ज गयो. अने, परिणाम परिणाममांथी आवता नथी पण परिणामी(द्रव्य)मांथी आवे छे एटले तेनी
द्रष्टि परिणामी उपर गई, ते स्वद्रव्यनी सन्मुख थयो, स्वद्रव्यनी सन्मुखतामां सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रनी
उत्पत्ति थाय छे, ते मोक्षनुं कारण छे.
प्रश्न:– सोनुं अने ताबुं ए बंनेनुं मिश्रण थतां तो तेओ एकबीजामां भळी गयां ने?
उत्तर:– भाई! वस्तुस्थिति समजो. सोनुं अने तांबुं कदी भेगां थतां ज नथी. संयोगद्रष्टिथी सोनुं अने
तांबुं भेगां थयां एम कहेवाय छे, पण पदार्थना स्वभावनी द्रष्टिथी तो सोनुं अने तांबुं कदी भेगां थयां ज नथी,
केम के जे सोनाना रजकणो छे तेओ पोताना सोना–परिणाममां ज वर्ते छे ने जे तांबाना रजकणो छे तेओ
पोताना तांबा–परिणाममां ज वर्ते छे; एक रजकण बीजा रजकणना परिणाममां वर्ततो नथी. सोनाना बे
रजकणोमांथी पण तेनो एक रजकण बीजा रजकणमां वर्ततो नथी. जो एक पदार्थ बीजामां, ने बीजो त्रीजामां
भळी जाय तो तो जगतमां कोई स्वतंत्र वस्तु ज न रहे. वळी सोनुं अने तांबुं ‘मिश्र थया’ एम कहेतां पण ते
बंनेनी भिन्नता ज साबित थाय छे, केम के ‘मिश्र’ बे–नुं होय, एकमां ‘मिश्र’ न कहेवाय. माटे मिश्र कहेतां ज
पदार्थोनुं भिन्न–भिन्न होवापणुं साबित थई जाय छे.
दरेक वस्तु पोताना स्वभावपणे सत् रहे छे, बीजो ऊंधुंं माने तो तेथी कांई वस्तुनो स्वभाव फरी न
जाय. अफीणने कोई गोळ माने तो तेथी कांई अफीणनी कडवाश मटी न जाय; अफीणने गोळ मानीने खाय तो
ते कडवुं ज लागे. तेम– तत्त्वने जेम छे तेम स्वतंत्र न मानतां परना आधारे टकेलुं माने तो, वस्तु तो कांई
पराधीन थई जती नथी पण, तेणे सत्नी विपरीत मान्यता करी तेथी तेनुं ज्ञान मिथ्या थाय छे, अने ते
मिथ्याज्ञानना फळमां तेने चोराशीना अवतार थाय छे.