वस्तुस्वरूपने विपरीत जाण्युं तेथी ते अज्ञानना फळमां तेने चोराशीना अवतारमां रखडवानुं थशे.
रचनार कहो तो ते पहेलांं वस्तु न हती एम ठरे एटले वस्तुनुं नित्यपणुं न रहे. वस्तु त्रिकाळ सत् छे, अने ते
वस्तु परिणामस्वभाववाळी छे, त्रिकाळी द्रव्य ज पोताना त्रणेकाळना वर्तमान–वर्तमान परिणामने रचे छे, ते
परिणामो पण स्वअवसरमां सत् छे, माटे ते परिणामनो रचनार पण बीजो कोई नथी. जेम त्रिकाळी द्रव्यनो
कर्ता कोई बीजो–ईश्वर वगेरे–नथी, तेम ते त्रिकाळी द्रव्यना वर्तमान परिणामनो पण कर्ता कोई बीजो (निमित्त,
कर्म के जीव वगेरे) नथी. पोताना एकेक समयना उत्पाद–व्यय–धु्रवमां टके छे माटे द्रव्य सत् छे. जो द्रव्य
बीजानां उत्पाद–व्यय–धु्रवने अवलंबे तो ते पोते सत् रही शके नहीं. माटे जे जीव द्रव्यने खरेखर ‘सत्’ जाणतो
होय ते द्रव्यनो के द्रव्यनी कोई पर्यायनो कर्ता बीजाने न माने; द्रव्यनो के द्रव्यनी कोई पर्यायनो कर्ता बीजाने
माने ते जीवे खरेखर ‘सत्’ ने जाण्युं नथी.
रागरहित पडी छे–तेनो विश्वास करे, एटले रागनी रुचिनुं जोर तूटीने आखी वस्तु उपर रुचिनुं जोर वळ्युं,
एटले के सम्यक्रुचि उत्पन्न थई, राग अने आत्मानुं भेदज्ञान थयुं. हुं परमां नथी वर्ततो, मारा परिणाममां
परवस्तु नथी वर्तती, पण हुं मारा परिणाममां ज वर्तुं छुं–आम परिणाम अने परिणामीनी स्वतंत्रता जाणतां,
रुचि परमां नथी जती, परिणाम उपर पण नथी रहेती पण परिणामी द्रव्यमां घूसी जाय छे, एटले के सम्यक्–
रुचि थाय छे.
केवळज्ञान पर्यायने जोवानुं न रह्युं, पण द्रव्य सामे ज जोवानुं रह्युं; द्रव्यनी सन्मुखतामां अल्पकाळे केवळज्ञान
थया विना रहे नहि.
उत्पाद छे, मिथ्याज्ञानपर्यायपणे व्यय छे ने ज्ञानमां सळंग परिणामोपणे धु्रवता छे. –ए रीते आमां धर्म आवे छे.
परिणाम परिणामीना छे–एम परिणाम अने परिणामीनी स्वतंत्रतानी रुचिमां स्वद्रव्यनी सम्यक्रुचि उत्पन्न
थईने मिथ्यारुचिनो नाश थई जाय छे.
कर तो तारुं ज्ञान साचुं थशे ने भवनुं परिभ्रमण टळशे. जो वस्तुना स्वभावने विपरीत मानीश तो असत्
वस्तुनी मान्यताथी तारुं ज्ञान मिथ्या थशे अने तारुं परिभ्रमण मटशे नहि; केम के मिथ्यात्वने ज सौथी मोटुं
पाप गणवामां आव्युं छे, ते ज अनंत संसारनुं मूळ छे.