Atmadharma magazine - Ank 087
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 27 of 31

background image
: ६६: : आत्मधर्म: ८७
उत्पाद–व्यय–धु्रवयुक्त परिणाम छे ते स्वभाव छे, अने स्वभाव छे ते स्वभाववान्ने लीधे छे. –आम
स्वभाव अने स्वभाववानने द्रष्टिमां लेतां, क्यांय परनां उत्पाद–व्यय–धु्रवने हुं करुं के मारा उत्पाद–व्यय–धु्रवने
पर करे ए वात रहेती नथी, एटले पोते पोताना स्वभाववान् तरफ वळीने ज्ञान थई जाय छे, तेमां ज धर्म
आवी गयो. लोकोए बहारमां धर्म मान्यो छे, पण वस्तुस्थिति अंतरनी छे. लोकोए मानेला धर्ममां अने
वस्तुस्थितिमां आथमणो–उगमणो फेर छे.
‘वस्तु’ तेने कहेवाय जे पोताना गुण–पर्यायमां वसे, पोताना गुण–पर्यायथी बहार वस्तु कांई न करे,
ने वस्तुना गुण–पर्यायने बीजो न करे. आवा भिन्न भिन्न तत्त्वार्थनुं श्रद्धान ते सम्यग्दर्शन छे. पहेलांं
सम्यग्दर्शन थाय पछी श्रावकनां अने मुनिनां व्रत वगेरे होय. सम्यग्दर्शन वगर व्रतादि माने ते तो ‘छार पर
लींपणुं’ जाणो. आत्मानी प्रतीत थया वगर क्यां रहीने व्रतादि करशे?
जेम गाडा नीचे चालतुं कूतरुं जाणे के मारे लईने गाडुं चाले छे, पण गाडाना परिणाममां तेना दरेक
परमाणु वर्ती रह्यां छे, ने कूतराना रागादि परिणाममां कूतरुं छे, गाडुं अने कूतरुं कोई एकबीजाना परिणाममां
वर्तता नथी. छतां कूतरुं मफतनुं माने छे के ‘माराथी गाडुं चाले छे.’ तेम पर वस्तुना परिणाम स्वयं तेनाथी
थाय छे, तेने देखीने अज्ञानी जीव मफतनो एम माने छे के परना परिणाम माराथी थाय. पण तेम थतुं नथी.
दरेक तत्त्वना परिणाम सत् छे, तेमां बीजो शुं करे? आवो स्वतंत्र वस्तुनो स्वभाव छे, ते ज सर्वज्ञ भगवाने
ज्ञानमां जोयो छे. कांई भगवाने जोयो माटे तेवो वस्तुनो स्वभाव छे–एम नथी, तेम ज तेवो वस्तुनो स्वभाव
छे माटे भगवानने तेनुं ज्ञान थयुं–एम पण नथी. ज्ञेय वस्तुनो स्वभाव सत् छे, ने ज्ञान पण सत् छे. प्रथम
आवा सत् स्वभावने समजो. जे आवा स्वभावने समजे तेणे ज वस्तुने वस्तुगते ओळखी कहेवाय.
कर्म–परिणाममां पुद्गलो वर्ते छे, ने आत्माना परिणाममां आत्मा वर्ते छे; कोई एकबीजाना
परिणाममां वर्तता नथी, एटले कर्मो आत्माने रखडावतां नथी. पोताना स्वतंत्र परिणामने न जाणतां, कर्म
मने रखडावे एम मान्युं छे ते ऊंधी मान्यताथी ज जीव रखडी रह्यो छे, पण कर्मे तेने रखडाव्यो नथी; ते
रखडवाना परिणाममां आत्मा वर्ती रह्यो छे. समये समये उत्पाद–व्यय–धु्रव थवानो दरेक वस्तुनो स्वभाव छे–
ए समजे तो परिणामी द्रव्य उपर द्रष्टि जाय छे, अने द्रव्यद्रष्टिमां सम्यक्त्व ने वीतरागतानो उत्पाद थाय छे, ते
धर्म छे.
जो द्रव्यना एक समयनुं सत् बीजाथी थाय तो ते द्रव्यनुं वर्तमान सत्पणुं नथी रहेतुं; अने वर्तमान
सत्नो नाश थतां त्रिकाळी सत्नो पण नाश थई जाय छे, अर्थात् वर्तमान परिणामने स्वतंत्र सत् मान्या
विना त्रिकाळी द्रव्यनुं सत्पणुं साबित थतुं नथी; माटे द्रव्यनुं वर्तमान बीजाथी (–निमित्तथी) थाय–ए
मान्यतामां मिथ्यात्व थाय छे, तेमां सत्नो स्वीकार आवतो नथी. सत्नो तो नाश थतो नथी, पण जेणे सत्ने
ऊंधुंं मान्युं तेनी मान्यतामां सत्नो अभाव थाय छे. त्रिकाळी सत् स्वतंत्र, कोईना कर्या वगरनुं छे तेम ज
एकेक समयनुं वर्तमान सत् पण स्वतंत्र, कोईना कर्या वगरनुं छे.–आवा स्वतंत्र सत्ने ऊंधुंं–पराधीन मानवुं
ते मिथ्यात्व छे, ते ज मोटो अधर्म छे. लोको काळाबजार वगेरेमां तो अधर्म माने छे पण ऊंधी मान्यताथी
आखा वस्तुस्वरूपने हणी नाखे छे ते ऊंधी मान्यताना पापनी खबर नथी. मिथ्यात्व ते तो धर्मनो मोटो
काळोबजार छे, ते काळाबजारथी चोरासीना अवतारनी जेल छे. सत्ने जेम छे तेम माने तो मिथ्यात्वरूप
काळाबजारनुं मोटुं पाप टळे ने साचो धर्म थाय. माटे सर्वज्ञदेवे कहेला वस्तुस्वभावने बराबर समजवो जोईए.
‘आत्मधर्म’ ना ८६ मा अंकमां, पृ. २२ कोलम २ लाईन २१ मां
धरमसीभाईनी पाछळ दान संबंधी जे विगत लखी छे तेमां आ प्रमाणे
नामनो फेरफार करीने वांचवुं–“धरमसी भाईना स्वर्गवास पाछळ
तेमना सुपुत्र रायचंदभाई (हस्ते पानीबेन) तरफथी सोनगढनी
संस्थाना जुदा जुदा खातामां एकंदर हजारेक रूा. आप्या हता.”