पर करे ए वात रहेती नथी, एटले पोते पोताना स्वभाववान् तरफ वळीने ज्ञान थई जाय छे, तेमां ज धर्म
आवी गयो. लोकोए बहारमां धर्म मान्यो छे, पण वस्तुस्थिति अंतरनी छे. लोकोए मानेला धर्ममां अने
सम्यग्दर्शन थाय पछी श्रावकनां अने मुनिनां व्रत वगेरे होय. सम्यग्दर्शन वगर व्रतादि माने ते तो ‘छार पर
लींपणुं’ जाणो. आत्मानी प्रतीत थया वगर क्यां रहीने व्रतादि करशे?
वर्तता नथी. छतां कूतरुं मफतनुं माने छे के ‘माराथी गाडुं चाले छे.’ तेम पर वस्तुना परिणाम स्वयं तेनाथी
थाय छे, तेने देखीने अज्ञानी जीव मफतनो एम माने छे के परना परिणाम माराथी थाय. पण तेम थतुं नथी.
ज्ञानमां जोयो छे. कांई भगवाने जोयो माटे तेवो वस्तुनो स्वभाव छे–एम नथी, तेम ज तेवो वस्तुनो स्वभाव
छे माटे भगवानने तेनुं ज्ञान थयुं–एम पण नथी. ज्ञेय वस्तुनो स्वभाव सत् छे, ने ज्ञान पण सत् छे. प्रथम
आवा सत् स्वभावने समजो. जे आवा स्वभावने समजे तेणे ज वस्तुने वस्तुगते ओळखी कहेवाय.
मने रखडावे एम मान्युं छे ते ऊंधी मान्यताथी ज जीव रखडी रह्यो छे, पण कर्मे तेने रखडाव्यो नथी; ते
रखडवाना परिणाममां आत्मा वर्ती रह्यो छे. समये समये उत्पाद–व्यय–धु्रव थवानो दरेक वस्तुनो स्वभाव छे–
ए समजे तो परिणामी द्रव्य उपर द्रष्टि जाय छे, अने द्रव्यद्रष्टिमां सम्यक्त्व ने वीतरागतानो उत्पाद थाय छे, ते
विना त्रिकाळी द्रव्यनुं सत्पणुं साबित थतुं नथी; माटे द्रव्यनुं वर्तमान बीजाथी (–निमित्तथी) थाय–ए
मान्यतामां मिथ्यात्व थाय छे, तेमां सत्नो स्वीकार आवतो नथी. सत्नो तो नाश थतो नथी, पण जेणे सत्ने
ऊंधुंं मान्युं तेनी मान्यतामां सत्नो अभाव थाय छे. त्रिकाळी सत् स्वतंत्र, कोईना कर्या वगरनुं छे तेम ज
एकेक समयनुं वर्तमान सत् पण स्वतंत्र, कोईना कर्या वगरनुं छे.–आवा स्वतंत्र सत्ने ऊंधुंं–पराधीन मानवुं
ते मिथ्यात्व छे, ते ज मोटो अधर्म छे. लोको काळाबजार वगेरेमां तो अधर्म माने छे पण ऊंधी मान्यताथी
काळोबजार छे, ते काळाबजारथी चोरासीना अवतारनी जेल छे. सत्ने जेम छे तेम माने तो मिथ्यात्वरूप
काळाबजारनुं मोटुं पाप टळे ने साचो धर्म थाय. माटे सर्वज्ञदेवे कहेला वस्तुस्वभावने बराबर समजवो जोईए.
नामनो फेरफार करीने वांचवुं–“धरमसी भाईना स्वर्गवास पाछळ
तेमना सुपुत्र रायचंदभाई (हस्ते पानीबेन) तरफथी सोनगढनी